तत्त्वज्ञान के बगैर परमात्मा का दर्शन/प्राप्ति कदापि सम्भव ही नहीं ।

तत्त्वज्ञान के बगैर परमात्मा का
दर्शन/प्राप्ति कदापि सम्भव ही नहीं ।
       वास्तव में जब असली दर्शन मिलना होगा तो वह ज्ञान से मिलेगा । तत्त्वज्ञान के बिना भगवान् का कभी दर्शन नहीं हो सकता । ब्रह्माण्ड में कोई भी, कहीं भी तत्त्वज्ञान के बिना भगवान् को जान-पहचान नहीं सकता। भाव में बहकर के भक्ति कर लिया जाय बात अलग है । लेकिन जब भगवान् को जानना होगा, भगवान् को जानना होगा और वास्तव में हर प्रकार से जाँच-परख करके उनकी सच्चाई को जानना होगा, तब तो एकमात्र एक ही माध्यम अब तक ब्रह्माण्ड में है और वह है तत्त्वज्ञान । वह है तत्त्वज्ञान । तत्त्वज्ञान के बगैर अब तक ब्रह्माण्ड में  किसी ने न जाना है, न देखा है और न कोई जान, देख सकता है। तत्त्वज्ञान के सिवाय दूसरा कोई विधान ही नहीं बना है परमेश्वर पाने का, भगवान् पाने का, भगवान् का दर्शन करने का और जब तत्त्वज्ञान मिलेगा तो दिखाई देगा कि भगवान् विष्णु भी दिखाई दे रहे हैं, उनका भी दर्शन हो रहा है, जब तत्त्वज्ञान मिलेगा तो दिखाई देगा कि भगवान् राम का भी दर्शन हो रहा है, तत्त्वज्ञान मिलेगा तो दिखाई देगा कि भगवान् कृष्ण का भी दर्शन हो रहा है । वैसे तो अभी-अभी काशी में बनारस में जो है कार्यक्रम चला रहे थे, तो कुछ लोगों को भेजा गया कि जाओ   भाई ! शिवलोक जाकर के शंकर जी का दर्शन करो । देखो ये दुनिया वाले कहते हैं कि है, नहीं है, क्या है ? तो जरा आप लोग जाकर देखो तो, विष्णु लोक जाकर, भेजा कि जाकर देखो तो विष्णु जी मिल रहे हैं कि नहीं मिल रहे हैं, असली और गये लोग दर्शन किये लोग । कृष्ण जी का भी दर्शन करने वाले दर्शन किये । गोलोक भेजा गया कि जाओ तो जरा दर्शन कर लो, ये कृष्ण जी हंै कि नहीं देखों हँसते-बोलते मिलते हैं कि नहीं । विष्णु जी हँसते-बोलते मिलते हैं कि नहीं तेरे पास आवाज देते उठाते हैं कि नहीं । अभी तो काशी में तो प्रायः अधिकतर लोगों को दर्शन कराया गया है, विष्णु जी का, राम जी का, विष्णु लोक भेजकर के जीव को देखा हँसते-बोलते क्षीरसागर में सोने वाले श्री विष्णु जी को । मूर्ति-फोटो नहीं देखे, साक्षात् देखे, हँसते-बोलते हुये देखे, कृष्ण जी को भी, राम जी को भी, विष्णु जी को भी, शंकर जी को भी । तो इस तरह से जो है इसी में हम लोग कोई जादू-मन्तर नहीं करते, कोई मिस्मरिज्म, हिप्टोनिज्म नहीं होता है, कोई मन्त्र-तन्त्र नहीं है, जन्तर नहीं है । वही गीता की पद्धति है, वहीं वेद, उपनिषद्, वेद, पुराण की पद्धति है । वही बाइबिल, र्कुआन की पद्धति है । यानी अलग से हम कुछ नहीं करते । तत्त्वज्ञान है वही देते हैं ।
        तत्त्वज्ञान वेद में भी है, उपनिषद् में भी है, रामायण में भी है, गीता में भी है, पुराण में भी है, बाइबिल में भी है और र्कुआन शरीफ में भी है, सब जगह है । यानी मुसलमान मिले तो उनको जीव, ईश्वर, परमेश्वर का दर्शन थोड़े करायेंगे । उनको रुह, नूर, अल्लातआला का दीदार कराते हैं । यदि ईसाई मिल जाय तो हम जीव, आत्मा, परमात्मा का दर्शन थोड़े कराते हैं । उनको सेल्फ, सोल, गाॅड का दर्शन कराते हैं । हिन्दू मिलते हैं, जीव, आत्मा, परमात्मा; जीव, ईश्वर, परमेश्वर का दर्शन कराते हैं, खाली दर्शन ही नहीं कराते हैं बात-चीत, परिचय-पहचान भी कराते हैं । ठीक वैसे ही जैसे नारद, गरुण ने किया था, जैसे लक्ष्मण, हनुमान, सेवरी सहित उद्धव, अर्जुन गोपियों ने किया था बात-चीत वैसे ही । तत्त्वज्ञान वही है, दर्शन वही है, भगवान् वही है तो बात-चीत भी उसी तरह से होता है । कोई अन्तर नहीं । गीता वाला विराट मिलता है, दर्शन करने के लिये तो आप सब जो है इस कार्यक्रम का हमारा प्रयोजन रहा कि आप सभी इस पूजा-भक्ति के माध्यम से कम से कम और किसी के नहीं तो कृष्ण जी के समीप तो होइये । कृष्ण जी को तो जानने-दर्शन करने का प्रयास कीजिये। ब्रज क्षेत्र वालों को हम कृष्ण जी का ही दर्शन करायेंगे । मथुरा में कार्यक्रम देंगे तो गीता और कृष्ण के दर्शन पर ही देंगे । अयोध्या में कार्यक्रम देंगे तो राम जी और रामायण के दर्शन का ही कार्यक्रम देंगे । यदि मुस्लिम क्षेत्र में कार्यक्रम देना पड़ा तो रुह, नूर, अल्लातआला के दर्शन दीदार का ही कार्यक्रम करेंगे । हमको किसी की इस दर्शन में कोई परेशानी नहीं, सहज विधान है होता है, होगा । जिसमें संस्कार होगा, जिज्ञासा होगी, उसको दर्शन होगा और रही चीजें आप सभी को बार-बार यही कहेंगे थोड़ा खार से निखार के तरफ आगे बढ़ना चाहिये । खार में तो थोड़ा निखार आनी चाहिये । जब निखार आयेगा न तो भाव जगेगा, भाव जगेगा तो निखार की जरूरत है । भगवान् जी कहाँ ठहरे, आप लोग यहाँ भी नहीं ठहरने दिये भगवान् जी को । आप लोगों ने तो ब्रजवासी तो उन्हीं के नाम पर आज सबकुछ बन रहे हैं और उनको ठहरने ही नहीं दिये यहाँ, रहने नहीं दिये (ब्रजवासी) । जाकर के द्वारिकापुरी बसाकर के ठहरे । द्वारिकापुरी जाकर के बसाकर ठहरे । कहाँ उनको रहने दिया गया । अभी जाइये सारे बाहर के लोग आते हैं, बलदेव में, बलदेव में जाइये, गोकुल में जाइये । सारे बाहरी लोग आते हैं देश के, चाहे विदेश के कृष्ण के नाम पर लेकिन गोकुल में जाइये बलदेव में जाइये । तो कौन मिलेगा ? बलदेव जी । कृष्ण जी नहीं, कृष्ण जी नहीं, बलदेव जी । हम सब देखे तो कहे कि इन सबों की मतिभ्रष्टता यहाँ रहने वालों की क्या है ? ये सब सचमुच खारे हैं सब । यानी कृष्ण जी की मर्यादा बलदेव जैसे भी नहीं। जबकि मर्यादा कृष्ण जी की होनी चाहिये, उनके नाम पर बलदेव जी की मर्यादा है । बलदेव जी को कोई जानता है कृष्ण जी के माध्यम से जानता है । लेकिन गोकुल और बलदेव में जाइये न, गोकुल में जाइये, सारी महत्ता, मर्यादा बलदेव जी की । बड़ी विचित्र स्थिति है । इसी तरह से आप लोगों को इस सच्चाई को समझने की कोशिश करनी चाहिये । कृष्ण जी कोई आदमी नहीं थे । कृष्ण जी कोई देवी-देवता नहीं थे । कृष्ण जी परमब्रह्म परमेश्वर के साक्षात् पूर्णावतार थे । कृष्ण जी परमब्रह्म परमेश्वर के साक्षात् पूर्णावतार थे । भगवान् कभी मरता नहीं है, कभी जन्मता नहीं है । न जन्मता है न मरता है । हाँ, भू-मण्डल पर आता है, शरीर धारण करता है और कब, किस परिस्थिति के अनुसार आवश्यकता है वैसे वो जन्म का, नरलीला का नाटक करते हैंै उनकी, उसी नरलीला के अन्तर्गत ये सारी बातें आती हैं । जब आप लोग तत्त्वज्ञान से गुजरेंगे तो वास्तविक परमेश्वर को भी जो विष्णु, राम, कृष्ण थे, वो भी देखने-जानने को मिलेंगे और नरलीला क्या होता है, कैसा होता है, ये भी तत्त्वज्ञान में देखने-जानने को मिलता है । भगवान् तो जानने-देखने को मिलता ही है, क्या होता है ? कैसा होता है ? कैसे आता है ? ये तो जानने-देखने को मिलता ही है, उसकी नरलीलायें भी जानने-देखने-समझने को मिलती हंै और उसके बाद सब दुनिया का कोई भी ग्रन्थ सब सहज हो जाता है । तत्त्वज्ञान से कोई नहीं गुजरेगा, तो दुनिया में किसी भी ग्रन्थ को कुछ नहीं समझ सकता । चाहे वे वेद हो, उपनिषद् हो, रामायण हो, गीता हो, पुराण हो या चाहे बाइबिल हो और चाहे र्कुआन शरीफ हो, दुनिया के किसी भी पन्थ के किसी भी ग्रन्थ को तत्त्वज्ञान के बगैर जाना-समझा नहीं जा सकता । हमारे एक बन्धु जी आये हैं इस समय हमको सुनने को मिला, वे श्रीमद्भागवत् महापुराण पर आचार्य की डिग्री प्राप्त है। क्या हास्यास्पद बात है । वही हाल है ‘अन्धा गुरु बहरा चेला, माँगे गुड़ तो देवे ढेला’ अब भागवत् महापुराण पर गीता पर डिग्री बँटने  लगी । उन अन्धा देने वालों को जिनको अपने जीव का भी पता नहीं है कि ‘हम’ ये जीव कहाँ रहता है ? कहाँ से आया है ? कैसे आया है ? किसलिये आया है ? शरीर छोड़ेगा तो कहाँ जायेगा ? कुछ पता नहीं है उस अन्धे डिग्रीदाता को और डिग्री दे रहा है । हमारे भइया भागवत् महापुराण पर आचार्य डिग्री पाये हैं । पूछा जाय जीव कैसा होता है । चुप हो जायेंगे । पूछा जाय आत्मा कहाँ से आती है कैसे पैदा होती है ? चुप हो जायेंगे । परमात्मा के विषय में ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर नहीं जानते तो ये क्या जानेंगे ? परमात्मा के विषय में ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर ही नहीं जानते तो ये क्या जानेंगे ? अपने जीव के विषय में भी ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर नहीं जानते, भइया क्या जानेंगे ? वह तो केवल परमेश्वर का विषय है । जीव और परमेश्वर केवल परमेश्वर का विषय है । जब वह भू-मण्डल पर आता है शरीर धारण करता है तब उस शरीर के माध्यम से जीव को भी दिखाता है, आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म को भी दिखलाता है, परमात्मा परमेश्वर परमब्रह्म को भी दिखलाता है । रूह, नूर, अल्लातआला को दिखलाता है । लो जानो, देखो और जाँच करो कि सही है कि नहीं ? जाँच की खुली छूट देता है । ऐसा क्या देंगे ? आज हमें खुशियाली हुई आप भी इनके शंका-समाधान से लाभान्वित होंगे । जो बाइबिल है वो कथानक ग्रन्थ है । उसमें ध्यान, ज्ञान का वर्णन कहीं कुछ नहीं है । संकेत है । र्कुआन शरीफ जो है वो भक्ति का ग्रन्थ है। वैसी भक्ति किसी ग्रन्थ में नहीं है । जितनी भक्ति र्कुआन शरीफ में है वैसी भक्ति किसी भी ग्रन्थ में नहीं है । वह भक्ति का ग्रन्थ है । उसमें ध्यान, ज्ञान की कोई महत्ता नहीं है । संकेत है उसमें भी । पुराण जो एक ऐसा सद्ग्रन्थ है कि जिसमें कथानक भी है, जिसमें ध्यान भी है, ज्ञान भी है, भक्ति भी है, कर्म का भी विधान है, निष्काम कर्म का विधान है, आनन्द ही सब कुछ अपने सम्पूर्णता को लिये हुये यानी व्याख्या सहित कोई ग्रन्थ है तो श्रीमद् भागवत् महापुराण है । गीता भी जो है ज्ञान-ग्रन्थ है इसमें कथानक नहीं है । इसमें विशेष एक्सप्लेशन व्याख्या नहीं है । ये गूढ़ है, गहन है लेकिन  पुराण में जो है ज्ञान को एक कथानक के माध्यम से सरलता से प्रवाहित किया गया है । उसको पढ़ने से थोड़ा और सहजता मिलती है ।

 संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस