तीन तत्त्वो में ही सीमित --विज्ञान

तीन तत्त्वो में ही सीमित --विज्ञान 
           बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ। परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ। देखिए, आपके देश में प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में सोसायटी बनी है । जो भी प्रधानमन्त्री होंगे वो अध्यक्ष रहते हैं । इसमें विज्ञान की पत्रिकायें छपती हैं, भारत सरकार का अनुदान भी शायद उसमें हैं और वे पत्रिकायें अंग्रेजी में भी हैं, हिन्दी में भी हैं । ‘साइंस रिपोर्टर’ है, ‘विज्ञान प्रगति’ है और किस-किस नाम से यानी जनमानस को विज्ञान की सामान्य जानकारियाँ देने के लिए विश्वसनीय जानकारियाँ देने के लिए ऐसी पत्रिकायें निकलती हैं । शायद ये भारत सरकार के तरफ से है । तो इस तरह से जो है उस विज्ञान प्रगति में एक विशेषांक निकला है-ये ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्डीय उत्पत्ति । जिसमंे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का वर्णन किया है वैज्ञानिकों के तरफ से । लेकिन इन वैज्ञानिकों को क्या पता ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे है ? इन सबों ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कहाँ से लिया है । हाइड्रोजन और हीलियम गैस से । ब्रह्माण्ड किससे उत्पन्न हुआ है भाई तो हाडड्रोजन और हीलियम गैस से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति है । क्या ये हाडड्रोजन, हीलियम जो गैस है वो ब्रह्माण्ड की वस्तु नहीं है ? हाडड्रोजन और हीलियम गैस ही तो है, जब गैस है तो ब्रह्माण्ड की वस्तु नहीं है ! ऐसे साइंस के बड़े-बड़े विद्वान इसी बनारस में ये उत्तर प्रदेश परीक्षा बोर्ड पर डिप्टी सिकेट्री थे । इसी बनारस में उनकी पोस्टिंग थी । पाण्डे - वे इस शरीर के अपने फुफेरा भाई थे। उनको जब पता चला कि यहाँ कार्यक्रम हो रहा है और बातें । आये चाय-पानी   हुआ । हम लोगों की आपसी खुली बात-चीत होती थी; क्योंकि ये तो उनका छोटा भाई था । लेकिन वे लोग इतना भाव-प्यार देते रहे इसको कि उनसे बोलने में झिझक नहीं होता था । तो जब हम लोग चाय-पानी पर बैठे थे तो क्या बोलते हैं ? सदानन्द बेटे ! इस हम लोगों के विज्ञान में जो है न, आप लोगों के धर्म को झूठा ठहरा दिया   है । सीधे बोल रहें हैं हमारा विज्ञान जो है न, आप लोगों के धर्म को झूठा ठहरा दिया है । हम सुने और हँसे । कहे कैसे आपका विज्ञान धर्म को झूठा ठहरा दिया है । कौन सा आपका विज्ञान बड़का शोध कर दिया जो धर्म को लगा झूठा ठहराने वाला । तो कहे वही, आज तक धर्म जो है पाँच तत्त्व कहता है क्यों ? आकाश, वायु, अग्नि, जल और थल । पाँच आपका तत्त्व रहता है न । हमारे विज्ञान ने जो 106 तत्त्व कह दिया   है । 106 तत्त्व का खोज किया है । तो क्या झूठा लग रहा है कि नहीं लग रहा है ? धर्म की मान्यता में पाँच ही तत्त्व है । और विज्ञान में 106 तत्त्व पकड़कर के सबके समाज में रख दिया, बतला रहा है । हमको हँसी आ गई, कहे कि वाह ! इतने बड़े ये साइंस के विद्वान् जी हैं इतने बड़े ये भी विद्वान् जी हैं साइंस के । स्वयं ये बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते प्राइमरी स्कूल के बच्चों जैसी बुद्धि में हो जाते हैं। वैसे ही साइंटिस्ट जो है ये जड़ता का खोज करते-करते वे सब भी जढ़ी हो जाते हैं, इन सबों के पास ----- जड़ ही हो जाता है। सत्य को पकड़ने की क्षमता नहीं रह जाती है । हमारे पास इनकी विज्ञान प्रगति थी, इस समय तो खैर पता नहीं कहाँ है ।
        उसी समय हमारे पास एक विज्ञान प्रगति थी । जिसके मुख्य पृृष्ठ पर ऊपर फ्रन्ट पर 106 तत्त्वों का शुद्ध संयोजकता सब सहित उस पर खाना बना हुआ था । 107 वाँ जो खोज हो रहा था उसका भी उस पर छप गया था । हम तुरंत मँगवाये विज्ञान प्रगति और उनके सामने पेश कराये । कहे कि देखा यही न आपके 106 तत्त्व है । 107 वाँ भी, हाँ देखिए । देखिए 106 तत्त्व है । हम फिर कहे जरा बुद्धि का उपयोग कीजिए न, हम कहे कि थोड़ा बुद्धि का प्रयोग कीजिए, क्या ? हम कहे कि आपके जो 106 तत्त्व है न, अभी धर्म के तीन ही में है । जो आपके 106 तत्त्व है न, धर्म के ये तीन में से है । ये सारे तीन ही में से है । थल, जल और वायु । अग्नि और आकाश तो विज्ञान ने अभी पता ही नहीं किया कि क्या है ? विज्ञान को तो पता ही नहीं चला है ये सब । अग्नि और आकाश क्या है ? कौन है ? इसमें जरा दिखाइए तो कि तीन के बाहर का कौन तत्त्व है ? कहा कि थल, जल और वायु; थल, जल और वायु; ठोस, द्रव और गैस इस तीन के बाहर कौन सा तत्त्व इस तीन के बाहर का है ? ये हमको बता दीजिए । और दूसरे नम्बर पर आकाश और अग्नि से संबंधित इसमें कौन फार्मूला-सू.त्र है ये हमको बता दीजिए । अब बार-बार देखने लगे, देखते-देखते जब दो-चार मिनट हो गया तो बोलिए न, कुछ बताइए । हाँ, भाई ये तो तीन ही में सब है । तीन के बाहर कोई नहीं है । ये तो अग्नि और आकाश वाला कोई इसमें नहीं है । हम कहे कि बस इतने में ही फूल गये थे । बस इतने में । अरे विज्ञान अंतिम सीमा, चरम तक जाकर के जहाँ समाप्त होता है वहाँ से अध्यात्म शुरू होता है । और जहाँ पर अध्यात्म जाकर खतम होता है, वहाँ से धर्म-तत्त्वज्ञान शुरू होता है । तत्त्वज्ञान का एक भुजा विज्ञान है, दूसरा भुजा अध्यात्म है । जड़ वाला क्षेत्र तत्त्वज्ञान का ये विज्ञान है और चेतन वाला क्षेत्र अध्यात्म है । और इन दोनों को अपने में समाहित किए हुए ये दोनों का मालिकान जो है जिसके पास वह धर्म, वह है ‘तत्त्वज्ञान’ । तब जाकर चुपचाप जल-चाय हुआ। तब बोलने के लिए फट से बोल दिया जाता है अरे विज्ञान प्रगति में हम आप सबको दिखायेंगे, यदि कोई देखना चाहे तो। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हाइड्रोजन और हीलियम गैस से दिखा रहे हैं । जब कि प×च भौतिक जड़ पदार्थ में हाइड्रोजन और हीलियम, दूसरे नम्बर के पदार्थ-तत्त्व हैं । अभी तो वो शक्ति में भी नहीं है । इससे और सूक्ष्म आकाश तत्त्व है, और आकाश से भी सूक्ष्म ये पावर-ये शक्ति है । ये शक्ति है, जो पावर है । यानी ये सब जो है, इन सबों को जो है किसी वैज्ञानिक से पूँछिए न, पावर और सोल में अंतर है, ये नहीं मानेंगे सब । जैसे महात्मा ये सब जो हैं, जीव ही आत्मा है, आत्मा ही परमात्मा है, आत्मा ही परमात्मा है, ईश्वर ही परमेश्वर है, जैसे ये बोल रहे हैं सब । वैसे ही जढि़या साइंटिस्ट जो हंै ये भी अब वही बोलते हैं, यही पावर माने, पावर ही ऊर्जा है, ऊर्जा जो है सोल है, सोल ही ऊर्जा है, और बस वही पावर सोल है, वही है । अलग-अलग नहीं है । क्या कहा जाये । पावर एक कान्सेसलेस साउण्ड एण्ड लाइट है, ये पावर जो है, वह ध्वनि और प्रकाश है । इसका नाम ध्वनि है और इसका रूप प्रकाश है। पावर शक्ति का, ये साउण्ड एण्ड लाइट है । ये ध्वनि और प्रकाश है। लेकिन कान्ससलेस है, पावर जो है, कान्ससलेस है । और सोल जो है, ये प्योर कान्सेस है । पावर जो है कान्ससलेस है, और सोल जो है प्योर कान्सेस है । इतना विशालकाय अन्तर दोनों में है । लेकिन साइंटिस्टों के लिए कुछ नहीं । अरे क्या पेपर में दिखाए थे । श्वेताश्वर ऋषि वाला, ये सोल वाली लाइट को ही वे, डिवाइन लाइट को, इस स्पिरिट को, लाइफ लाइट को यही पावर ही --- स एवाग्निः सलिले सन्निविष्टः कर दिए ये योगी-यति, ऋषि-महर्षि भी यही मानते समझते हैं । इन योगीजनों को इन महात्मनों को क्या समझाया जाए । सारे जनमानस में भगवान् के नाम पर ऐसी विकृति भर दिए हैं ये सब कि हम लोगों को इस तरह से रात-दिन घूमते-घूमते अब पात्रता कायम कराते हुए हमको लगता है कि हम लोगों की दस प्रतिशत ऊर्जा आप सबको ज्ञान जनाने में लगा होगा, तो नाइन्टी प्रतिशत इन ढोंगी-आडम्बरी-पाखण्डियों ने जो कूड़ा-करकट भरा है उसकी सफाई में लग रहा  है । नाइन्टी प्रतिशत ऊर्जा का खपत, क्षमता-शक्ति का खपत, ये जो आप लोगों के दिल-दिमाग में सब कुल कचरा भरे हैं  इसकी सफाई में लग रहा है। दस प्रतिशत भी शायद ज्ञान भरने में लगा हो । आज ये सब थोड़ा भी सत्य का मार्ग अपनाये होते, थोड़ा भी सही का मार्ग अपनाये होते, जितने में थे उतने में सही बताये होते, और वही कह दिए होते । जैसे प्राइमरी स्कूल में पाँचवी स्कूल तक की पढ़ाई है । प्राइमरी स्कूल कह दिया इसके आगे पढ़ना है तो जूनीयर हाईस्कूल में जाइए । जूनीयर हाईस्कूल में आठ तक की पढ़ाई है, कह दिया कि अब इससे आगे पढ़ना है तो हाईस्कूल में जाइए । ये मार्कशीट लीजिए, ये टी0सी0 लीजिए। हाईस्कूल में कह दिया कि आपको आगे पढ़ना है तो ये मार्कशीट लीजिए, ये टी0सी0 लीजिए, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में जाइए । उसमें सर्टिफिकेट टी0सी0 देकर के कहा कि अब आगे बढ़ना है तो डिग्री कालेज, पी0जी0 कालेज में जाइए, यूनिवर्सिटी में जाइए । ये लोग तो सहजतापूर्वक बोल दिए, आपको आगे का रास्ता दिखला दिए, लेकिन ये ढोंगी-आडम्बरी-पाखण्डी आशाराम हो, हरदेव हो, बालयोगेश्वर हो, करपात्री हो, किंकर उपाध्याय हो, मुरारी बापू हो, चाहे लेखराज हो, और जो चाहे धर्म का ठेकेदार । ये सब बने हैं रामायणी और चाहे ये अध्यात्मवेत्ता ये सब निकम्मे जो हैं, जनमानस को भरमा-भटका करके और दोहन-शोषण करके राज भोग रहे हैं सब, जनमानस के साथ घात कर रहे । सच बोलने में लज्जा आई  थी । आप इतना धन तो नहीं ही देते, जितना इनको भगवान् बनने में दे रहे हैं। तो प्राइमरी स्कूल में, प्राइमरी की फीस देते । अब एम0ए0 का डिग्रीे प्राइमरी स्कूल देने लगता तो फीस तो एम0ए0 वाला देना पड़ता न ? तो इन सबों के पास जानकारी तो प्राइमरी का भी नहीं है और फीस ले रहे हैं एम0ए0, पी0एचडी0 वाला, शोधवाला जानकारी तो प्राइमरी का नहीं दे रहे हैं । फीस ले रहे हैं, एम0ए0, एम0एस0सी0 यानी एम0काम0, एल0एल0बी, एल0एल0एम0 का ।
 
संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस