मानव जीवन -- मुक्ति-अमरता पाने का साधन

 मानव जीवन -- मुक्ति-अमरता
पाने का साधन
       क्या आप लोगों का मानव जीवन है ? यदि ये सदानन्द भी ऐसा ही सांसारिकता-पारिवारिकता वाला ठकरा लटका लिये होता तो ठक-ठक-ठक से मुक्त होकर के यहाँ तक कैसे पहुँचा होता ? ये आपके मानव जीवन का पाठ कौन पढ़ा रहा होता ? ये दो-चार गो झूल-झूलाकर के वहीं पड़ा रहता । जैसे आप लोग पड़े हुए हैं विनाश में, विनाश में । वाह रे मनुष्यत्त्व वाह ! एक बार मौत नहीं चाहिए और उस लाइन में लगे हैं जहाँ करोड़ों बार मृत्यु के नारकीय यातनाओं से गुजरना है, गुजरना है, गुजरना है और गुजरना ही है । हम तो ऐसे विद्वान् जी लोगों को खोजते हुए घूम रहे हैं 28 साल हो गया। जो पैदा हुआ है, किसी में विद्वता है एक बार प्रकृति और परमेश्वर के विधान को गलत ठहरा कर तो दिखा दे । दिखला तो दे कि बीबी-बच्चा वाले, माता-पिता वाले करोड़ों बार नाश के मुँह में जाने वाले हैं कि नहीं ? हैं । हैं । हर किसी की जिम्मेदारी होती है गिरते को सहारा देना । कुएं में धक्का देकर धकेलना नहीं । हर किसी की जिम्मेदारी होती है कुएं हैं गिरने से रोकना । किसी को डूब रहा हो तो बचाना । और वे माता-पिता हैं जो अपने बच्चों के जीवों को भवकूप में धकेल रहे हैं, भवसागर में डाल रहे हैं कि मैं डूब रहा हूँ, मैं डूब रही हूँ तू भी डूब, तू भी मर। मेरे पास क्यों आया ? तू भी डूब । मैं नाश में हूँ तेरा भी नाश हो। यही मातृत्व है ? यही पितृत्त्व है ? यही मातृत्त्व है ? यही पितृत्व है ? यही अपना हितेच्छु भाव है ? यही कल्याण भाव है ? हितेच्छु भाव, कल्याण भाव तो वह है जो हमें पतन-विनाश से बचावे । क्या वह भवसागर नहीं है ? क्या इसको ग्रन्थों में जहाँ सत्य की जानकारी है, वहाँ संसार को भवसागर घोषित नहीं किया गया है ? क्या इस संसार को भवकूप घोषित नहीं किया गया है । क्या इस संसार को भवकूप घोषित नहीं किया गया है ? माता-पिता आप इसलिए बने हो कि शरण में कोई जीव आए हों तो धक्का देकर के भवकूप में, नाश में डाल दो ? चाहे करोड़ों बार जन्में या नाश हो ? भव सागर में डाल दो सुनामी लहर की तरह से शिकार बनता रहे । डूबता-मरता रहे, पैदा होता रहे ! नारकीय यातनाओं को झेलता रहे ? 
       मानव जीवन जन्म-मृत्यु से मुक्ति-अमरता के लिए मिला है । मानव जीवन जन्म-मृत्यु से पार होकर के अमरत्त्व, मुक्त होने के लिए, इसी से तो मुक्त होना है । जन्म-मृत्यु से भवसागर से भवकूप में गिरने से मृत्यु को जाने से मुक्त होने के लिए मानव जीवन मिला है । जन्म-मृत्यु में बने रहो, जन्मते मरते रहो, नारकीय यातनाओं में जाते आते रहो, पाप कुकर्म झेलते रहो । जन्मत मरत दुसह दुःख होई पीड़ाओं से गुजरते रहो इसीलिए न बन्धन है ? जब बँध ही जाओगे तो बँधुआ गाय-बैल के तरह से जिधर माया चाहेगी नाचएगी । जिधर माया चाहेगी नचाएगी । माया इस शरीर को नचा सकती है क्या ? माया को नचाने वाला है। माया के आगे नाचने वाला नहीं । ये सबको माया से मुक्त करने के लिए आया है । बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की - जय । परमप्रभु परमेश्वर की - जय । परमप्रभु परमेश्वर की - जय ।
         मैं भी देख रहा हूँ इस शरीर को लेकर के इस शरीर के माध्यम से इस दुनिया में चारों तरफ घूम-फिरकर देख रहा हूँ । मुझे जो लगता है कि परिवार में सब लोग हैं । एक दूसरे को सुख का साधन बना करके एक दूसरे के सहायता में रह-चल रहे हैं । लेकिन परिणाम क्या है ? मैं देख रहा हूँ कि इतना बिक चुके हैं इतना करोड़ों-करोड़ो जन्मों के पाप-कुकर्म में, माया जाल में इतना बिक चुके हैं, इतना बिक चुके हैं कि आप लोग से बतलाया था कि ९८-९९ प्रतिशत हमारी ऊर्जा जो है इस माया से मुक्त करने में खर्च हो रही है । २-१ प्रतिशत ऊर्जा भी ज्ञान में नहीं लग रही है ज्ञान में । इसका जो ऊर्जा है ९८ से ९९ प्रतिशत आप लोगों को माया से मुक्त बनाने में लगी है, खर्च हो रही है । २ से १ प्रतिशत, १ से २ प्रतिशत आपको ज्ञान देने में . . . . . अफसोस ! इसके वाबजूद भी आप लोगों को अपना कल्याण नहीं चाहिए ? आप लोगों को मानव जीवन का अर्थ नहीं चाहिए ? आप लोगों को मानव जीवन जो सृष्टि की देव दुर्लभ सर्वोत्तम उपलब्धि है इसकी
सर्वोत्तमता आपको नहीं चाहिए । इस ब्रह्माण्ड का सर्वश्रेष्ठ फल आपको नहीं चाहिए । वाह रे वाह ! क्या जाना-समझा आप लोगों ने अपने मानव जीवन को । ये तो हो गया - ‘अजब तेरी कुदरत अजब तेरा खेल, छछचूंदर के सर पर चमेली का तेल ।’ आप जीवात्माओं को तो भेड़-बकरी बनाना चाहिए, गाय-भैंस बनाना चाहिए सारा कीड़ा-मकोड़ा बनाना चाहिए, खूब भोगो-भोगो- भोगो । मानव जीवन जैसे अनमोल रतन लेकर के जिसको पता ही नहीं है । आप लोगों को भगवान् ने बुद्धि और विवेक दिया कि पहले मानव जीवन को जानो-समझो, इसका सही समुचित लाभ पावो । मानव जीवन से ज्ञान अर्जित नहीं करेंगे, मानव शरीर से संसार नहीं जानेंगे-देखेंगे, शरीर नहीं जानेंगे-समझेंगे, मानव जीवन नहीं जानेंगे-देखेंगे जीव को नहीं जानेंगे-देखेंगे आत्मा-ईश्वर- ब्रह्म-शिव को नहीं जाने-देखेंगे, परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म-खुदा-गाॅड- भगवान् को नहीं जानेंगे-देखेंगे तो क्या गाय-भैंस की शरीर से जानेंगे-देखेंगे ? क्या भेड़-बकरी के शरीर से जानेंगे-देखेंगे ? क्या हाथी-घोड़ा के शरीर से अपने को मुक्त बनायेंगे ? मानव जीवन ही तो एक जीवन है चैरासी लाख योनियों में जिसमें जीव को इस जन्म-मृत्यु से रक्षा करने की क्षमता-शक्ति है । मानव जीवन ही तो एक ऐसा जीवन है जो जीव को अमरत्त्व दिला सकता है । जीव को शिव बनाकर के अपने आप को भगवान् से जोड़ सकता है । ये क्षमता-शक्ति केवल मानव योनि में है । यह मानव जीवन में है । आप लोगों को यह लाभ नहीं चाहिए ? आप लोगों को नौकरी चाहिए ! कर्मचारी बनना चाहिए, अधिकारी बनना चाहिए, भोगी-व्यसनी नेता बनना चाहिए, महापुरुष-सत्पुरुष आत्मा- ईश्वर-ब्रह्म-शिव बनने में परता नहीं है ! महापुरुष-सत्पुरुष बनने में परता नहीं है । क्या मानव जीवन है ? भोगी-व्यसनी कर्मचारी-अधिकारी बनेंगे, भोगी-व्यसनी नेता बनेंगे लेकिन थोड़ा सा संयम बरत कर के ईमान से महापुरुष-सत्पुरुष नहीं, दिव्य पुरुष नहीं ? क्या मानव जीवन है ? मानव जीवन नहीं, क्या मानव जीवन ? मानव जीवन बिल्कुल नहीं ही देता तो ठीक था । छछूंदर दुर्गन्धित रहने वाला जन्तु है । चमेली का यदि तेल रख दिया जाए तो अपने ही सुगंध से अपने ही बेचारी छटपटाती रहेगी । वही हालत आप भोगी-व्यसनियों को भगवान् ने मानव तन दे दिया ।
         एक बात बताऊँ ? जो मास्टर, जो अध्यापक, जो गुरुजी किसी गरीब विद्यार्थी को कापी-किताब देकर के पढ़ाते हैं खाना पानी देकर के पढ़ाते हैं बेटे के तरह से भाव प्यार दे करके पढ़ाते हैं, वही गुरुजी, वही मास्टर साहब ये सारा सहायता ३६४ दिन देते हैं । ६५ वें दिन जब इम्तिहान वाला ३ घंटे का पीरियड आता है, परीक्षा वाला जब तीन घंटे का पीरियड होता है, तो गुरुजी यदि सच्चे  गुरुजी हैं तो एक इतना बड़ा चिट एलाउ नहीं करते हैं। कापी-किताब तो आपको देते ही नहीं हैं, इतना बड़ा चिट भी आपको नहीं मिलता है चिट । यदि जबर्दस्ती करके चिट लेना चाहेंगे तो क्या गति विधि होगी-रेस्टीकेट कर देंगे । अगले परीक्षा में भी आप नहीं बैठ पाएंगे । यदि तीन साल का कर देंगे तो ३ वर्ष का जीवन आपका बर्बाद ।
        जिस भगवान् ने सारे प्राणी मात्र के लिए आहार-विहार बनाया है, जिस भगवान् ने सारे प्राणी मात्र के लिए आहार-विहार बनाया है, ऐसे जीव के लिए नहीं जो परमात्मा के हों परमात्मा को पाएं ? और अपने जीवन के मंजिल को पाना चाहें उनके पास तो आहार-विहार का चिट भी नहीं । क्या कहा रामजी ने -- एहि तनु कर फल विषय न भाई । ऐ मेरे भाइयों ! इस तन का फल, मानव तन का फल विषय-भोग नहीं है, विषय भोग नहीं है । अपनी प्रजा ही तो थी । सारे प्रजाजन ही तो थे, जिनको उपदेश दे रहे थे। क्या कह रहे हैं कि - ‘एहि तनु कर फल विषय न भाई’ ऐ मेरे प्रजाजनों ! इस तन का फल विषय भोग नहीं है, विषय भोग नहीं है । कितना आप विषय इकठ्ठा कर लोगे ? कितना धन सम्पदा इकठ्ठा कर लोगे ? कितना सुख-सम्पत्ति इकट्ठा कर लोगे ? स्वर्ग से ज्यादा ? स्वर्ग से ज्यादा ? नहीं । स्वर्ग से ज्यादा सुख-भोग तो मृत्यु लोक में है ही नहीं । स्वर्ग के बराबर भी नहीं है और स्वर्गउ स्वल्प । यदि स्वर्गीय सुख-साधन भी आप अपना लें तो आपका जो मानव जीवन है ये परमशान्ति-परमआनन्द के लिए है । ये सच्चिदानन्द के लिए है । इस मुक्ति-अमरत्त्व का वास्तव में जो आप ईमान से थोड़ा संयम अपना कर के-ये दोनों तो अनिवार्य शर्तें है, ईमान से संयम थोड़ा अपना लेते तो आपको मिलने वाला जो परमधाम-अमरलोक है, वर्तमान में भी है । 

       वर्तमान में भी किससे खराब हम लोग खा-पी रहे हैं ? किससे हम लोग खराब रह रहे हैं ? कौन हम लोगों से बहुत अच्छा जीवन जी रहा है ? कौन हम लोगों से बहुत अच्छा जीवन जी रहा है ? हम लोग संसार का जीवन भी शान से जी रहे हैं मुक्त होकर के, किसी का बंधन नहीं । बिल्कुल मुक्त जीवन जी रहे हैं और अमरत्त्व से, परमेश्वर से युक्त जीवन जी रहे हैं । एक बात बार-बार आप लोगों से कहते आया हूँ इस आश्रम में रहने वाले सदस्यों से जो 20-25वें वर्ष से रह रहे हैं एक बार उनसे पूछिए तो सही रोटी-कपड़ा-मकान-साधन-सम्मान यह भी कोई चिन्तन का विषय उनके पास है ? रोटी-कपड़ा-मकान सोचना पड़ेगा परमेश्वर वाले को ? परमेश्वर वालों को रोटी-कपड़ा-मकान सोचना पड़ेगा ? और आप लोगों का जीवन जगने से लेकर सोने तक रोटी-कपड़ा-मकान से अलग भी कुछ और है क्या ? कुछ नहीं । अब सारा पाप-कुकर्म इसी पेट और परिवार के लिए तो कर-करा रहे हैं आप लोग । कौन गृहस्थ हैं जो कुकर्मी नहीं है, जो बेईमान नहीं है ? कौन गृहस्थ है जो बेईमान, पापी-कुकर्मी नहीं है ? मजबूरी है गृहस्थी में । मेरा कहना है पाप का, बेईमान होने का बीज बोना है । ये शरीर मेरी है यही से झूठ और पाप का बीज पड़ना शुरू हो गया । ये शरीर मेरी है । इस शरीर वाला मेरा है । यही से पाप-कुकर्म का बीज पड़ना शुरू हो गया । और जो बीज होगा वृक्ष तो उसी का बनेगा न ? बीज बोयेंगे बेईमानी की, झूठ की, पाप-कुकर्म की और फसल बनेगा सत्य का, ईमान का, मुक्ति-अमरता का ? 
     बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय !
सन्त ज्ञानेश्वर
स्वामी सदानन्द जी परमहंस