जीव एवं ईश्वर और परमेश्वर तीनों को जनाने-दिखाने वाला विधान ही ‘धर्म’ है

जीव एवं ईश्वर और परमेश्वर
तीनों को जनाने-दिखाने वाला
विधान ही ‘धर्म’ है


         यह मेला (माघ मेला प्रयाग) जो है बिलकुल धर्म के नाम पर है । प्रायः जो भी धर्मोपदेशक हैं अधिक से अधिक हर किसी धर्मोपदेशक का प्रायः पंडाल यहाँ पड़ता है । कुछ छूट भी जाते होंगे कुछ नहीं भी डालते होंगे पंडाल यानी हर कोई यहाँ धर्म के लिए ही इस मेले में आता है । कोई संगम-स्नान रूपी धर्म को स्वीकार करके आता है तो कोई नाना तरह के सन्त महात्मा के कथा-प्रवचन को सुनने के लिए यहाँ आता है । इसी में यह भी एक पंडाल है । इस पंडाल की अन्य पंडालों की अपेक्षा एक कुछ अलग विशेषता है। और वह है - दर्शन । एक शब्द है- दर्शन । किसका दर्शन ? सम्पूर्ण का दर्शन । सम्पूर्ण का दर्शन । सम्पूर्ण क्या चीज है भाई ? अब सम्पूर्ण जो है संसार है, शरीर है, जीव-रूह-सेल्फ है, आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म- नूर-सोल-स्पिरिट-शिवशक्ति है और परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म-ख़ुदा-गाॅड- भगवान् है ।
      ये इस सृष्टि में अलग-अलग जो नामकरण हंै जैसे- संसार, शरीर, जीव, आत्मा और परमात्मा । संसार, शरीर, जीव, ईश्वर और परमेश्वर । संसार, शरीर, जीव, ब्रह्म और परमब्रह्म। संसार, शरीर, जीव, शिव और भगवान् । खिलकत, जिस्म, रूह, नूर और अल्लाहतआला । World, Body, Self, Soul and God. ये पाँच नाम-नामित-ये पाँच नाम-नामित जो अस्तित्त्व- स्थिति है इन पाँचों को अलग-अलग पृथक-पृथक रूप में जानना कि वास्तव में क्या है । कैसे हो गया ? क्या जरूरत प इसकी । क्या जो हम-आप देख रहे हैं वह संसार वही और वैसा ही है या कुछ और भी है । इस संसार को जो हम-आप सभी जान-देख रहे हैं क्या यह संसार वही है वैसा ही है जैसा हम जान-देख रहे हैं या इससे कुछ अलग भी । ये हम लोगों की शरीर-जिस्म-ठवकल जो है आप-हम सभी के पास जो साढ.े तीन हाथ का पुतला है इसके साथ जो साढ.े तीन हाथ का पुतला है, ये जो मानव शरीर आकृति कहला रही है क्या यह ऐसे ही है या इसकी सच्चाई कुछ और भी है। ये जो आवाज आ रही इस शरीर के अन्दर से ये कौन है। क्या है । ये जीव है कि आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-शिव है कि परमात्मा-परमेश्वर- परमब्रह्म-खुदा-गाॅड-भगवान् है । ये सब जानने-देखने योग्य है और आप-हम सबको चाहिए  कि इन पाँचों को ही इन पाँचों- संसार, शरीर, जीव, ईश्वर और परमेश्वर इन पाँचो को ही सबसे पहले अलग-अलग जाने, देंखें  इसके रहस्यों को भी जाने-देखें और तत्पश्चात इसमें अपने आपको देखें कि इसमें हम कौन हैं ? इसमें हम क्या है ? हम क्या है हम कौन है ? हम संसार है कि शरीर है कि हम जीव है कि हम आत्मा है कि हम परमात्मा है । हम संसार है कि शरीर है कि जीव है कि ईश्वर है कि परमेश्वर है । हम ॅवतसक है कि ठवकल है कि  ैमस ि है कि  ैवनस है कि ळवक है ।  हम संसार है कि शरीर है कि जीव है कि ईश्वर है कि शिव है कि भगवान् है । सबसे पहले आप-हम सबकी आवश्यकता है ये जानने की कि आखिर इसमें हम क्या है ? हम इसमें कौन है ? किसलिए है ? हमारा कर्तव्य क्या है ? सबसे पहली आवश्यकता है हम सबकी होनी चाहिए कि ये जानें कि वास्तव में हम क्या है ? और किसलिए है ? हम कौन है ? और हमारा कर्तव्य क्या है ? ये जानना अनिवार्य है । इसके जानकारी के बगैर इसको जाने-देखे बगैर आप-हम जो संसार में कदम रखते हैं तो भरम-भटकाव केे सिवाय और कुछ नहीं होना है । आप भरम-भटकाव के सिवाय कुछ नहीं हासिल कर पाऐंगे । इसलिए सबसे पहली आवश्यकता है अपने-आप हम को जानने की । ऐसे तो सब मान बैठे हैं कोई हम अपने को शरीर मान बैठा है हम रमेश हैं तो हम दिनेश हैं तो हम मोहन हैं तो हम सोहन है तो हम नाना तरह के नामकरण कर-करा करके हम माधव हैं  तो नाना तरह के नाम-नामित एक आदमी हैं । इसी में कोई अपने को पिता मान लिया, कोई माता मान लिया, कोई भाई मान लिया, कोई बहन मान लिया, कोई पति मान लिया, कोई पत्नि मान लिया कोई हम को यानी मैं डण्।ण् हूँ । मैं डण्ेबण् हूँ । मैं डाक्टर हूँ, मैं इंजीनियर हूँ आदि आदि । नाना तरह के नामकरण करके चलने-चलाने लगे । सच्चाई तो जाननी चाहिए । मानव जीवन क्या है मानव जीवन क्या होता है ये जानना जरूरी है । आप लोग जो जानते हैं मानव जीवन है घर है परिवार है बीवी है माताजी हैं पिताजी हैं बीवी-बच्चा है और कमाना है खाना हैै । ये मानव जीवन है रोटी चाहिए कपड.ा चाहिए मकान चाहिए रहन-सहन चाहिए साधन-सम्मान चाहिए  और क्या यही मानव जीवन है । ये आप-लोग मान बैठे हैं । सच्चाई ऐसी नहीं है, वास्तविकता ये नहीं है । वास्तविकता इतना ही मात्र नहीं है । ये तो इसकी व्यवहारिकता है ।  हमारे-आपके जीवन की वास्तविकता ये नहीं है । जो आप मान बैठे हैं । वास्तविकता आप-हम को जाननी चाहिए । ये तो आपको जो पढ.ाई पढ.ाया जा रहा है स्कूल-काॅलेजांे में प्राइमरी पाठशालाओं को ले करके विश्वविद्यालयों तक जो पढ.ाइयां पढ.ाई जा रही हैं बड़ा अफसोस तरस आ रहा है । इसमें मानव जीवन की पढ.ाई कहीं नहीं है । जहाँ शरीर-डाक्टरी बताई जा रही है शरीर विज्ञान, वहाँ भी मानव जीवन की पढ़ाई नहीं है । जबकि हमारे-आपके लिए पहले जरूरी था मानव जीवन पढ.ना कि वास्तव में मानव जीवन होता क्या है ? जब तक आप-हम इस मानव जीवन को नहीं जानेंगे, नहीं समझेंगे नहीं देखेंगे-परखेंगे-पहचानेंगे तब तक आखिर इस मानव जीवन को जो प्राप्त है इसको किस प्रकार से उपयोग करेंगे, उपभोग करेंगे, किस रास्ते से इसको ले चलेंगे ।
        धर्म जो है कोई बहुत बड़ा हौवा बहुत कोई कठिन कार्य, अतिरिक्त कार्य - हम लंगोटी पहन लिए, हम जटा बढा. लिए, कमण्डल ले लिए, जंगल-झाड. में निकल गए पहाड.-कन्दरा में निकल गए, तीर्थ-स्नान करने निकल गए घूमने निकल गए ये वास्तव में वास्तविक धर्म इसका नाम नहीं है । धर्म कोई बहुत कठोर-कठिन विधान हो ऐसा नहीं है । धर्म हमारा-आपका आप-हम सभी का एक सच्चा सर्वोत्तम जीवन विधान होता है । उन्मुक्तता-अमरता से युक्त एक अनिवार्य सच्चा जीवन विधान सर्वोतम जीवन विधान होता है । दोष रहित, सत्य प्रधान जीवन विधान है । आप-हम सभी को चाहिए कि हम धर्म को जानें । धर्म हमारा-- आपका एक जीवन विधान है ।
   बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की ऽऽऽ जय । परमप्रभु परमेश्वर की  ऽऽऽ जय । धर्म जो है जटा बढ़ा लिए, कंठी-माला ले लिए, राम नाम माला जप रहे हैं ये सब धर्म, वास्तव में धर्म का विधान नहीं है । धर्म जो है हमारा-आपका जो सच्चा जीवन है आप किसी ग्रन्थ में जाइए । हमारा-आपका एक ऐसा जीवन-विधान जो दोष रहित हो, जिसमंे दोष के लिए कहीं कोई गुंजाइस न हो, सत्य प्रधान हो । मुक्ति और अमरता से युक्त हो । सर्वोत्तम जीवन, सर्वोच्च जीवन सर्वोत्तम जीवन दिखलाई दे । आपको देखने को मिले कि हमारे जीवन के आगे अब कोई जीवन नहीं है । इस सृष्टि का जो सर्वोच्च जीवन है, इस सृष्टि का जो सर्वोत्तम जीवन है उस जीवन में हम रह चल रहे हैं ऐसा देखने को मिले । चाहे हमारे साथ जो न रहे हों उनकी बात करूँ या चाहे आप आगन्तुक बन्धु आए हों उनकी बात करूँ यदि आप लोगों को न दिखलाई दे रहा हो कि हम जोे जीवन जी रहे हैं वह सर्वोच्च है, सर्वोत्तम है तो आप लोगों को इससे पूछना चाहिए । इससे जानना चाहिए, इससे आप लोगों को साक्षात देखने का अनुभूत और बोधित होने का प्रयास करना चाहिए । ये आप लोगों के सामने मानव जीवन पढ.ाने आया है । आप लोग परेशान हो जाते हैं इस बात को ले करके कि सर्मपण-शरणागत हर समर्पण कर जाना होगा ? शरणागत हो जाना होगा । किस बात का समर्पण है ? किस बात का समर्पण ? किस बात का शरणागती ? एक बार बैठकर सोचना चाहिए क्या है ये समर्पण-शरणागत ? क्या है ये समपर्ण-शरणागत ? एक ईमान का जीवन जीने वाला जिलाने वाला, एक सच्चा सर्वोत्तम जीवन जिलाने वाला है समर्पण- शरणागति । आप हर कदम-कदम पर इसको अपना रहे हैं अपने जीवन में। झूठ-मूठ में एक हौवा एक खौप बना दिया आप लोगों ने समर्पण, शरणागति अरेे समर्पण कराता है शरणागति कराते हैं। क्या है आपके पास जो समर्पण करना है, शरणागत हो कर चलने में । क्या है ? वही हाल है कुता जो है सूखी हड्डी ले करके भाग रहा था । जंगल में किसी ने पूछा क्यों भाग रहे हो ? क्या बात है ? कहा कि भाई मैं इसलिए लेकर भाग रहा हूँ कि कहीं शेर छीन न ले । क्या जाहिर होता है इससे कि कुता शेर को जानता ही नहीं शेर कहीं हड्डी छीनेगा ?
         आपको परमेश्वर दिखाने वाला, क्या ऐलान कर रहा है आपको हम जीव दिखलायेंगे जनायेंगे-दिखलायंगे । आपको हम आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म जनायेंगे- दिखलायेंगे । आपको हम परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म-खुदा-गाॅड-भगवान् को साक्षात दर्शन-दीदार करायेंगे । बातचीत परिचय-पहचान करायेंगे । वैसा ही जैसा गरुड. ने, नारद ने भगवान् विष्णु से किया था । वैसा ही जैसा लक्ष्मण, हनुमान, शेबरी आदि ने राम जी से किया था । वैसा ही जैसा उद्धव, अर्जुन, मैत्रेय आदि ने भगवान् कृष्ण से किया था । वही और वैसा ही । हम आपको भगवान् मिलाने की बात कर रहे हैं । एक बार सोचिए अपने में बैठकर एकान्त में, अकेले में । भगवान् मिलाने की बात साक्षात् नकली मूर्ति-फोटो नहीं । तुलसी वाला राम   नहीं । हनुमान वाला राम । लक्ष्मण वाला राम । ये मीरा, सूरदास वाला कृष्ण नहीं उद्धव, अर्जुन, गोपियों वाला कृष्ण । हम आपको किस भगवान् को मिलाने-दिखाने की बात कर रहे हैं ? बातचीत-परिचय-पहचान करने की बात कर रहे हैं  ? और आप लोग . . . . . .मत्था पच्ची क्या-क्या करने में लगे हैं । ऐसा भी नहीं है कि मैं कुछ चन्दा लगा दूँ , मैं कुछ टिकट लगा दूँ कि टिकट कटाइए और रोज आइए टिकट देते जाइए चन्दा देते जाइए और दान-दक्षिणा देते जाइए और अन्तिम दिन 5 तारिख को हम आपको दर्शन करा देंगे । ऐसा नहीं है कि 4 की शाम को यहाँ से रात में उठेंगे और भाग जाऐंगे । क्या लेकर भाग जाऊँगा । क्या आप से ले रहा हूँ कि लेकर भाग जाऊँगा। क्या आप दे रहे हैं कि मैं आपका लेकर भाग जाऊँगा । मुझे नहीं दिखाना था तो मुझे ऐसा ऐलान करने की जरूरत क्या पड़ी ? आप सोचिए तो सही । गलत होने के लिए चोर, भगवा होने के लिए ऐलान कर रहा हूँ ? कि हल्ला करूँ, हल्ला करूँ और दर्शन कराने के एक दिन पहले भाग जाऊँ । ये हल्ला करने की जरूरत ही हमको क्या पड. गयी ? इस हल्ला करने की हमको जरूरत क्या पड. गई ? इस पर्चा, पोस्टर, पैम्लेट की जरूरत क्या पड. गई कि हम हल्ला करें, शोर मचाऐं कि भाई हम परमात्मा दिखाऐंगे, परमेश्वर मिलाऐंगे, दिखाऐंगे, बात कराऐंगे क्या सब मेला वाले ऐसे ही हल्ला कर रहे हैं  क्या ? सब धर्मोपदेशक लोग ऐसे ही कर रहे हैं क्या ? उनके तरह से हम बोलना नहीं जानते हैं क्या ? हमको रामायण-गीता पढ.ने का  ढ.ग नहीं आता है क्या ? हम भी आप लोंगो को खूब रिझाते खूब हँसाते, और मंच से थोड़ा रोते-रुलाते और खूब पैसा फेंकवा कर जमा करके नहीं बोरा-बोरी तो झोला भर करके हम भी चले जाते । नहीं बोरा-बोरी तो झोला भर करके हम भी चले जाते । लेकिन हम बोरा नहीं हम कोठरिया सब भर लें गाडि.याँ सब भर लें, तो क्या हम 2-4 रोटी से 10-20 रोटी खाने लगेंगे क्या ? हम जो आज ये वस्त्र-कपड़ा पहन रहे हैं इस पर 2-4-10 गो और पहनने लगेंगे क्या ? हम जो रहन-सहन  जिस रहन-सहन में  इससे और अधिक ऊँचा अधिक रहन-सहन करने लगेंगे क्या ? फिर इस छलावा लूटपाट की जरूरत ? आपको ठगने की आवश्यकता ? आप लोंगो को सोचना चाहिए। प्रयास करता हूँ कि किसी अज्ञानी का किसी अज्ञानी का किसी गैैर भक्त का किसी भगवत् विधान रहित का एक कप चाय भी न पीऊँ । ऐसा प्रयत्न करके चलता हूँ ।