सारा संसार परमेश्वर का मायावी खेल

सारा संसार परमेश्वर का
मायावी खेल
        सद्भावी बन्धुओं ! किसी भी विषय-वस्तु की सम्पूर्णतया जानकारी प्राप्त करना हो तो मूल में आना पड़ेगा । सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करना होगा तो पहले ब्रह्माण्ड में चलना होगा, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति जानना होगा । क्रमशः जहाँ हम लोग हैं यहाँ आना होगा । जानते-जानते परमेश्वर से ईश्वर, ईश्वर से शक्ति, शक्ति से आकाश, अग्नि, वायु, जल, थल । फिर इससे बनने वाले पदार्थ, बनने वाली आकृतियाँ । आदमी का शरीर, फिर ईश्वर आकर इसमें प्रवेश करेगा तो जीव । जीव से शरीर । अब ऊपर से जानते हुये हम लोग नीचे आयेंगे मनुष्य पर । परमेश्वर से जानकारी प्राप्त करते हुये हम लोग आत्मा-ईश्वर होते हुये, जीव होते हुये मनुष्य पर आयेंगे। मानव शरीर और संसार में आयेंगे लेकिन दर्शन करना होगा तो उल्टा   होगा । संसार से खींचकर शरीर को बाहर करना होगा उसको जानना होगा, अलग करके  शरीर से जीव को निकालकर अलग करना होगा । जानने-देखने के लिये जीव से आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म को निकालकर देखना होगा, जानने-देखने के लिये और आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म से परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म को प्राप्त करना होगा । खाली दर्शन के समय हम लोग नीचे से ऊपर की ओर चलेंगे क्योंकि छलाँग लगाकर के एकाएक परमात्मा के यहाँ दर्शन करने जायेंगे नहीं । जानकारी के लिये परमात्मा से ऊपर से नीचे आना होगा, दर्शन के लिये क्रमशः स्टेप बाई स्टेप, सीढ़ी दर सीढ़ी नीचे से ऊपर चलेंगे । इसीलिये कार्यक्रम बना दर्शन का । जिस दिन दर्शन का प्रायौगिक सत्र होगा उस दिन हम लोग संसार, शरीर मिथ्यात्त्व का दर्शन करेंगे । अगले दिन जीव का दर्शन, फिर आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म का दर्शन और अन्तिम दिन परमात्मा- परमेश्वर-परमब्रह्म-खुदा-गाॅड-भगवान् का और उसी में लास्ट में विराट, मुक्ति- अमरता का साक्षात् बोध  भी । विराट, मुक्ति-अमरता का साक्षात् बोध भी । विष्णु-राम-कृष्ण जी का वास्तविक दर्शन, तात्त्विक दर्शन, मूर्ति-फोटो नहीं । यह हम लोगों का दर्शन प्रायौगिक दर्शन का अन्तिम दिन होगा । तो जानकारी ऊपर से नीचे को । जानकारी का क्रम क्या बनेगा ? ऊपर से नीचे को । दर्शन का क्रम क्या बनेगा ? क्रमशः नीचे से ऊपर   को । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ ।
      अब हम लोग जो हैं चलें ब्रह्माण्ड की सृष्टि के मूल में जानकारी की शुरुआत करें । सर्वप्रथम परमात्मा- परमेश्वर-परमब्रह्म था । ये ब्रह्माण्ड नाम का कोई चीज  नहीं । ये थल भी नहीं, कोई मनुष्य नहीं, कोई प्राणी नहीं, कोई पशु-पक्षी नहीं, कोई पेड़-खेत नहीं, ये धरती भी नहीं, जल भी नहीं, अग्नि नहीं, हवा भी नहीं ये आसमान भी नहीं, ये आकाश भी नहीं । इस आकाश को छोडि़ये शक्ति भी नहीं । जब कोई शक्ति भी नहीं थी, शक्ति नाम का कहीं कुछ नहीं, सत्ता यानी आत्मा- ईश्वर-ब्रह्म भी नहीं यानी कहीं कोई कुछ नहीं था । उस समय एकमात्र एकमेव एक परमात्मा- परमेश्वर-परमब्रह्म-खुदा-गाॅड-भगवान् था । एकमात्र एक खुदा-गाॅड-भगवान्- परमात्मा-परमेश्वर था। और कहीं कुछ भी नहीं, अन्धकार भी नहीं, प्रकाश भी नहीं,  असत्य भी नहीं, सत्य भी नहीं । जड़-चेतन तो भी नहीं । कहीं कुछ नहीं, एकमेव एकमात्र परमात्मा, एकमेव एकमात्र परमेश्वर, एकमेव एक परमब्रह्म-खुदा- गाॅड-अल्लाहतऽला-गाॅड फादर । एकमात्र एकमेव एक वही परमात्मा-परमेश्वर । बार-बार रिपोर्ट दोहरा रहा हूँ, यह पुनरावृत्ति दोष में नहीं लीजियेगा आप लोग । पुनभ्र्यास में ले लीजियेगा । इसको पुनभ्र्यास में ले लीजियेगा । कोई स्त्री-पुरुष नहीं, कोई पशु-पक्षी नहीं, कोई कीड़ा-मकोड़ा नहीं, कोई नाम नहीं, कोई रूप नहीं, कोई स्थान नहीं । कोई नाम नहीं, कोई रूप नहीं, कोई स्थान नहीं एकमेव एकमात्र परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म-खुदा-गाॅड-भगवान् ।
नानकदेव जी एक पद बोले थे-
 शब्द ही धरती, शब्द अकास शब्द ही शब्द भयो प्रकास ।। 
सगली सृष्टि शब्द के पाछे नानक शब्द घटा-घट आछे ।।
         ये तीन पंक्तियाँ तो बिल्कुल सही हैं, ये तो बिल्कुल सही है लेकिन चैथी पंक्ति वही साधु-सन्तों वाली, साधु-महात्माओं वाली । ये तीन पंक्ति तो परमेश्वर वाली हंै लेकिन चैथी पंक्ति बोलते-बोलते गये लेकिन चैथी पंक्ति अपने वाली रख दिये कि नानक शब्द घटाघट आछे । वहाँ घटा-घट कहाँ था ? कोई घटा-घट था कहाँ ? जब सगली सृष्टि शब्द के पाछे तो ये घटा-घट कहाँ था ? ये घटा-घट कहाँ था, जब सृष्टि ही नहीं थी ? तो ‘नानक शब्द घटा-घट आछे’ ये नानक देव जी थोड़ा सा मिस कर गये, भूल कर गये । क्यों कहें कि गलती किये, क्योंकि घटा-घट तो था ही नहीं घटाघट आछे होगा कैसे ? बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ ।
सृष्टि के आदि में केवल एकमात्र परमेश्वर, न कोई नाम, न कोई रूप, न कोई स्थान, अब जब परमेश्वर सामने होगा न, तो पर्चा ओपन कर रहे हैं । पर्चा ओपन कर रहे हैं, यही तो समझना है । जब परमेश्वर सामने होगा न तो लगेंगे लोग उसी में शंख खोजने, चक्र खोजने तो गदा-पद्म खोजने और वास्तव में परमात्मा-परमेश्वर वह जब यह शंखधारी ही नहीं थे । ब्रह्मा, विष्णु, महेश नाम का कोई नहीं । जब आदिशक्ति भी नहीं, मूल प्रकृति महामाया भी नहीं, ब्रह्म भी नहीं, आदि शक्ति भी नहीं, कोई कुछ नहीं । कहीं कुछ नहीं एकमात्र एकमेव परमात्मा-परमेश्वर एकमात्र एकमेव एक । एकमात्र एकमेव खुदा-गाॅड-भगवान्-परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म- अकाल पुरुष, सत्पुरुष-परमपुरुष ये सब नाम उसी के हैं । सब टाईटिल उसी के हैं । वास्तव में वही था, है ही और सृष्टि के बाद भी उसे ही रहना है । अब सवाल है, वह किस रूप में था ? कैसा था ? किस रूप में है ? कैसा है ? शब्द रूप, शब्द रूप तत्त्व और तत्त्व रूप शब्द, शब्द रूप तत्त्व और तत्त्व रूप शब्द । उसमें कोई नाम भी नहीं, उसमें कोई रूप भी नहीं, कोई स्थान भी नहीं, जो नाम है वही रूप है और वही स्थान भी है । जो नाम है वही रूप है और वही स्थान है । इसलिये उसे अद्वैत्त कहा गया यानी एकमेव एक । एकमेव एकमात्र एक था । दूसरा कहलाने के लिये कहीं कुछ भी नहीं था। दूसरा कहलाने के लिये कहीं कुछ भी नहीं था एकमात्र एकमेव एक । यह सारी जो सृष्टि देख रहे हैं न, यह सारा जो ब्रह्माण्ड देख रहे हैं न, यह उसी एक का खेल है खेल । उसी एक का, उसी एक से; उसी एक का, उसी एक से, उसी द्वारा होने वाला ये द्वैत्त का खेल है । होने वाला ये सब द्वैत्त में उसी अद्वैत्त का, उसी अद्वैत्त का द्वैत्त में होने-रहने वाला यह एक खेल मात्र है मायावी खेल, मायावी खेल ।
        वास्तव में यह सब कुछ है नहीं । ये सब कुछ है नहीं । इसको वास्तव में देखने का जो ढंग था, परमेश्वर ने आप लोगों को दिया था, आप लोग भुला दिये । इसको देखने का ढंग इस संसारी को इस मायावी संसार को, इस झूठे संसार को, इस पूर्णतः मिथ्या संसार को देखने का ढंग आप लोगों को परमेश्वर ने दिया था, आप लोगों ने उसकी कदर ही नहीं की । आप लोग उसको भुला दिये । पता नहीं कहाँ रख-रखवा दिये आपको याद ही नहीं रहा । आपको याद ही नहीं । धरती पर किसी को भी याद ही नहीं कि परमेश्वर ने हमको इस दुनिया को देखने के लिये क्या दिया था ? पता नहीं कहाँ आप लोगों ने भुलवा दिया। आप लोगों को उसे खोजना चाहिये । कहाँ आप लोगों ने रख दिया है ? खोजें भी तो कैसे खोजे जब याद भी रहे तब न खोजें और आप लोग इस मिथ्या, झूठे जगत् को देखने वाले। इस मिथ्या जगत् को देखने वाले उस आँख को तो आप लोग खो दिये, भूल गये कहीं छोड़ दिये । आप संसार देखेंगे कैसे और फँस गये इस मायावी, झूठे संसार  में । आप फँस गये इस मायावी झूठे संसार में और लगे हमार-हमार-हमार । इस झूठे संसार में जो कहीं कुछ भी नही है । जो कुछ है ही नहीं, स्वप्न तो कुछ है । स्वप्न तो इससे बहुत अधिक सच है । स्वप्न तो इससे बहुत आगे है हालाँकि सच स्वप्न भी नहीं है । स्वप्न भी झूठा है लेकिन ये संसार अरे भइया ! स्वप्न से बद्तर, बदतर, बदतर झूठ है । जिसको हमार-हमार करके आप बटोरने मंे जमा करने में लगे है । ये एक पूर्णतया झूठ, बिल्कुल घोर झूठ है और इसी में ‘हमार-हमार’ करके फँस गये, फँस गये और ऐसे फँस गये, ऐसे फँस गये कि फँसना तो आसान था निकलना आसान नहीं है । इतने दिन से रोज चार घण्टा, साढ़े चार घण्टा, से कम तो शायद कभी मंच पर नहीं रहे  होंगे । रोज आप सबको जनाने-समझाने के लिये कि इस मीठे-मीठे, मिथ्या, झूठे संसार से निकाल कर अपने को निकालकर के आप लोग सच में रखिये । ये कंगाली से भरा कामनाओं से भरा जीवन पुतला है । ये कामनाओं से भरा जो पुतला है कि कामनाओं की पूर्ति के लिये आपको अनमोल रतन जीवन बेचना पड़ रहा है । रोटी, कपड़ा, मकान के  लिये । इसको कर्म क्षेत्र से हटा दीजिये, धर्म क्षेत्र में लगा दीजिये । जब धर्म क्षेत्र में रख देंगे न, संसार का सारा रहस्य, सारा खेल परमेश्वर के तरफ से जानने-देखने को  मिलेगा । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ ।