परमेश्वर मिलते ही सब कुछ मिल जाता है । परमेश्वर के कृपा का लाभ लीजिए ।

परमेश्वर मिलते ही सब कुछ
मिल जाता है । परमेश्वर के कृपा
का लाभ लीजिए ।

      आप को परमेश्वर अगर मिल जायेगा तो आप दुनियादारी करने जायेंगे ? पहले चिन्तन ही दूर हो जायेगा। जब आप ज्ञान लेंगे तब सब भ्रम ही खतम हो जायेगा । ज्ञान लेकर के समर्पित-शरणागत होंगे तो सब भ्रम और सब चिन्ता दूर होगा । चिन्ता ही तो खतम करने के लिये ज्ञान लेना है। चिन्ता ही छूटने के लिये, भ्रम खतम होने के लिये तो ज्ञान लेना है कि कोई चिन्ता न रह जाय, भ्रम न रह जाय । अरे भगवान् ने तो इतनी कृपा कर ही दिया है कि आप यहाँ आ गये हैं । अब तो पहुँच गये हैं तो जुड़ने की कोशिश कीजिये, जो नहीं पहुँच रहे हैं वह नहीं जान पा रहे हैं । आप तो पहुँच गये । शायद जो समझ में नहीं आ रहा है वह पूछ लीजिये, समझ लीजिये, जब समझ आ गया तो रह जाइये । हमारा कहना है कि समझ मंे तो आ ही रहा है । जब समझ में आ रहा है तो उधर जुड़ने की जरूरत ? आप तो निकल ही गये । फिर गिरने की जरूरत ? अरे जो गिरा है रहने दीजिये उसको। किसी तरह निकल गये, माया ने ढ़केल कर आपको पहुँचा दिया । संस्कारवश यहाँ पहुँच गये । अब तो अपना कल्याण देखिये । इसलिये नहीं जुड़ रहे हैं कि ज्ञान नहीं मिल रहा है । जब रहने लगेंगे तो चिन्ता दूर होने लगेगी । जब नौकरी करने लगेंगे तो तनखाह बनने लगेगी । जब बोआई करने लगेंगे, निराई, कोड़ाई सिंचाई करने लगेंगे तो फसल तैयार होने लगेगी ।
       परीक्षा देने के लिये पास होने की कोशिश स्कूल में, ज्ञानालय में होगी कि परिवार में होगा ? जो भी प्रयास करेंगे ये प्रयास आप आश्रम में रहकर करेंगे कि परिवार मेें रह कर करेंगे ? ‘मलकी छूट मलहि के धोये’ । यानी मल सेे मल तो छूटेगा नहीं, कीचड़ से कीचड़ तो छूटेगा नहीं, साबुन पानी से छूटेगा । तो उसी तरह से आप माया में रहकर के माया से छूटेंगे ? अरे माया से किसी में से निकल रहे हैं !
        सवाल ये है कि समझना उसी के बारे में जो बात होने लगे। समझना उसका नाम नहीं कि सत्य नहीं बोलना चाहिये। ये असत्य नहीं बोलना चाहिये, सत्य ही बोलना चाहिये । भाई असत्य नहीं बोलना चाहिये और सत्य बोलना चाहिये । काम है असत्य बोलने का और जानकारी कह रहे हैं कि असत्य नहीं, सत्य बोलना चाहिये । ये जानकारी है कि सत्य ही बोलना चाहिये। और काम क्या है असत्य बोलने का । असत्य नहीं बोलना चाहिये । काम क्या है ? असत्य  ही बोलना चाहिये । कैसे होगा ? असत्य क्षेत्र छोड़ेंगे तब तो सत्य के प्रभाव में आयेंगे । असत्य के क्षेत्र में रहेंगे ,असत्य बोलना पड़ेगा, असत्य करना पड़ेगा, असत्य का होना-रहना पड़ेगा । तब आप कहाँ छोड़ पायेंगे ? जब सत्य के क्षेत्र में आयेंगे तो सत्य बोलना होगा, सत्य रहना होगा, सत्य करना होगा, सत्य पर चलना होगा, तब यहाँ ठहरेंगे । दोनों का क्षेत्र बना हुआ है माया और भगवान् का। माया के क्षेत्र में रहेंगे तो उसके कर्म-व्यवहार लक्षण होंगे । परमेश्वर के क्षेत्र में रहेंगे उनके लक्षण-कर्म-व्यवहार होंगे और जैसे लक्षण-कर्म-व्यवहार में वैसी प्राप्ति, वैसी उपलब्धि । सवाल ये है कि जो यहाँ लगे, पाये हैं, जाते ही माया चाट जायेगी, क्योंकि हर कोई अपना काम बनाये रखना चाहता है । माया के क्षेत्र से जायेगा तो एक जीव का उद्धार । मतलब करोड़ों जीव माया का खतम हो जायेगा ।  माया का व्यवहार ही उस तरह बाधित हो जायेगा । माया क्यों चाहेगी कि जीव का उद्धार  हो । ये तो परमेश्वर का काम है जीव का उद्धार करना । माया तो चाहेगी कि जीव  भोगी-व्यसनी बने । वह भोगी-व्यसनी बने । हमारा धन्धा खूब चटके । डाक्टर क्यों पूजा करेगा कि कोई मरीज न हो। डाक्टर कहेगा कि घर-घर मरीज हो जाय । हमारा धन्धा चटके । डाक्टर मंदिर में जाकर लगे कहने कि हे अल्ला मालिक, हे प्रभु कोई मरीज न होने पावे तो खायेगा क्या ? वकील लगे मनाने की प्रभु झंझट झमेल न हो तो खायेगा क्या ? वह तो चाहेगा कि रोज झगड़ा हो । रोज केस मुकदमा बने । तब न उनको खाना मिलेगा । तो माया क्यों चाहेगी कि आप मुक्त हों ? जितना भगवान् ने साफ-सुथरा किया है वह जायेगी तो वह उसपर लीपा-पोती कर देगी । माया उसे लीपा-पोती कर देगी कि निकलने न पावे, फिर जाने न पावे । कोशिश कहाँ ? माया में बैठकर निकलने की कोशिश ? दलदल में यानी पड़ गये तो हिले-डुले नहीं, प्रयास मत कीजिये, आवाज दीजिये, निकालो। अपने को निकलने का प्रयास मत कीजिये आवाज दीजिये निकालो और कोई पकड़ पाये तो तुरंत सरक जाइये । ये माया दलदल है जितने कोशिश करेंगे उतने धसेंगे । जितने कोशिश करेंगे, उतने धसेंगे । इसमें बस पुकारिये, आवाज दीजिये हाथ दीजिये वह खींच लेगा । अरे भइया माया काहे को पकड़ेगी । माया काहे को पकड़े आपको, आप पकड़े हैं माया को । क्यों पकड़े हैं छोड़ दीजिये । वह काहे के लिये पकड़ी  है । आप पकड़ें हैं उनको । अरे छोड़ दीजिये न । देखिये छोड़ना क्या   है ? जब छोड़ेंगे तो छूटेंगे ही । अब लीजिये न छूट भी कहाँ है, छोड़ेंगी तो छूटेगी । पकड़े हो आप ।
 
                                                           माया महाठगनी
         बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ। सवाल ये है कि माया फंसाने और विनाश करने वाली है । जितने भी ठग, बटमार होते हैं वे हाव-भाव प्यार देंगे । जब तक हाव-भाव-प्यार देंगे नहीं तब तक आपकी तकलीफ सुनेंगे कैसे ? तो उनकी प्रक्रिया है फट-फट मार । ये इतना हाव-भाव प्यार देंगे कि उसमें आप ठगा जायेंगे और आपकी जीव का करोड़ों जन्म बर्बाद हो जायेगा, सर्वनाश में चला जायेगा । हमारी लाइन है आप दुनिया का ग्रन्थ उठाकर देख लीजिये । नित्य प्रति पीड़ा और यातना मिलती है सुविधा, सहायता छोड़ दीजिये । नित्य प्रति यातनायें मिलती है और पूरी जिन्दगी भर यातना मिलती रहेगी और सामने दिखायी दे कि मोक्ष मिलने वाला है, वे यातनायें कुछ नहीं है । झेलकर के मोक्ष पाने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि झेलना तो है ही है ।
     अरे मोक्ष के लिये नहीं झेलेंगे तो करोड़ों बार नरक की यातना झेलनी पड़ेगी, यमराज की यातनायें झेलनी पड़ेगी और कैसी यातना है यमराज की । एक बात गौर कीजियेगा जरा सा । योनि बदलते ही हर कोई हर कुछ भूल जाता है पिछले जन्म का । योनि बदलते ही एक मानव जीवन जो विवेकशील है वह बुद्धजीवी होने के साथ-साथ विवेकशील प्राणी । विवेकशील कोई प्राणी है नहीं है इस सचराचर जगत में । बुद्धिजीवी तो बहुत प्राणी हैं । लेकिन विवेकशील प्राणी केवल एक मनुष्य है, मानव योनि है । तो ऐसे विवेकशील प्राणी को भी अपने पूर्व जन्म का सब भूला हुआ है, सब भूला हुआ है लेकिन मौत का भय मृत्यु का भय, अरे मनुष्य को तो छोड़ ही दीजिये ऐसा मक्खी, मच्छर भी नहीं है जिसे मृत्यु का भय न हो । ऐसा कीड़ा-मकोड़ा नहीं है जिसे मृत्यु का भय न हो । ऐसा भेड़-बकरी, साँप, बिच्छू, गोजर, हाथी, बाघ, शेर कोई प्राणी नहीं है जिसको मृत्यु का भय न हो । इतनी पीड़ादायक है मृत्यु कि कोई नहीं चाहता कि मृत्यु हो । नाब दान का पिलुवा भी नहीं चाहता कि मृत्यु हो । कीड़े-मकोड़े मच्छर भी नहीं चाहते मृत्यु हो । कितनी दुःसह पीड़ा है मृत्यु में कोई योनि नहीं भूल पा रही है। कोई नहीं भूल पा रहा है मृत्यु की यातना को । सबकी एक ही मंशा है कि मृत्यु नहीं चाहिये । है कि नहीं ऐसी बात ? उस करोड़ों बार की ऐसी दुःसह मृत्यु की यातनाओं-पीड़ाओं से बचने का एकमात्र उपाय है भगवदशरणागति में रहना ।
          मान लीजिये आपका जीवन सौ वर्ष का है । मान लीजिये आप अपनी बात कर रहे हैं जीवन खो चुके हैं। एक लड़का बात कर रहा है, जिसका सारा जीवन अभी आगे शेष है। संयोग कीजिये लड़का है इसका सारा जीवन अभी शेष है । संसार का सारा जीवन अभी आगे है । अब सवाल उठता है जिसका जो उम्र है वह है । मान लीजिये 80 वर्ष 100 वर्ष और जीना है तो ये शरीर जो है 80 वर्ष, 100 वर्ष समय है इसका । जीव के जीवन के सामने ये 80 वर्ष 100 वर्ष जो है एक सौ वर्ष में एक सेकण्ड के अनुपात का नहीं होगा । जीव के जीवन के सामने शरीर के जीवन का अनुपात यदि जीव का जीवन 100 वर्ष माना जाय तो शरीर का जीवन जो है 100 वर्ष वाला एक सेकण्ड बराबर भी नहीं होगा । तो एक सेकण्ड की यातना झेल लेने पर हमारे सौ वर्ष का जीवन खुशहाल हो जाय, सच्चिदानन्दमय हो जाय और मुक्ति और अमरता से युक्त हो जाय तो एक सेकण्ड की यातना झेलने में क्या परेशानी है ? क्यों बड़े-बड़े आपरेशन कराया जाता है। मेडिकल आपरेशन कराया जाता है । पन्द्रहियों दिन, महीनों तक कष्ट आपको झेलना पड़ता है; क्योंकि बाद में हमारा शरीर जो सही हो जायेगा । हम सही खुशहाल जीवन जीयेंगे । घाव हुआ है छूया नहीं जा रहा है रुपया देकर के उसी में चाकू लगाया जाता है । सप्ताह, 10 दिन, 15 दिन बड़ी पीड़ायें होती हैं । फिर भी किया जाता है क्यों ? आगे का जीवन खुशहाल हो जायेगा । तो एक सेकण्ड की यातना ही यदि हो, कोई सुविधा न मिले यातना ही मिले और आगे मोक्ष दिखाई दे रहा हो, वह यातना बहुत सहजता पूर्वक झेल लेनी चाहिये । ये जो सुविधायें आप दिखा रहे हैं हमको ये सर्वनाश का साधन हैं । भूल जाइये उसको । पीड़ा मंजूर करते हुये परमेश्वर के शरण में जाइये । परमेश्वर खुशहाली नहीं देगा तो ब्रह्माण्ड में और कौन देने वाला है । परमेश्वर अभी नहीं चाहेगा न तो वही लड़का आपको धुत्कार के धकेल देंगा । एक काम कीजिये न एक दिन पता चल जायेगा । आप झूठे नाटक कीजिये मरने का छटपटाइये और छटपटाकर थोड़े देर के स्वास को रोक कर दीजिये । देखिये लड़के देखेंगे कि मर रहे हैं तो निकालकर के बाहर दरवाजे पर कर देंगे; क्यों भाई मरेंगे घर में तो भूत-प्रेत होंगे । मकान आप ही का बनाया हुआ है तो भी निकाल बाहर कर देगे पता चल जायेगा कि वे कितना भाव-प्यार देने वाले हैं । अभी आपसे  स्वार्थ उनका सध रहा है । जिस दिन स्वार्थ ओझल हो जायेगा न, उस दिन वो आपको ठेंगा बराबर नहीं समझेंगे । सब ममता-मोह किनार हो जायेगा । सब ममता-मोह किनार हो जायेगा । अभी जीव छूट जाये आपको ये लोग भाव-प्यार देंगे न ?
 
                             जीव से ही जीवन का अस्तित्व
        जीव शरीर को छोड़ दे तो ये घर-परिवार वाले सेवा करेंगे न, टहल करेंगे न, सुविधायें देंगे न ? शरीर घर-परिवार की है कि जीव की है ? जीव है तो कहीं भी मान्यता है, जीव है तो कहीं भी भाई-बन्धु है । जीव है तो कहीं भी लड़के-बच्चे हैं और जीव नहीं है तो अपना ही कोई अपना नहीं है, जो आपके सम्पत्ति का अधिकारी बनेगा वही मुँह में लुकारी लगायेगा । सुविधा भुक्त भोगी और भोगी मत  बनिये । भगवान् पाकर के दुःख-कष्ट की यातना झेलने की कोशिश कीजिये । क्योंकि जब रात आयेगी तो याद कीजिये कि जाने के लिये आई है आने वाला दिन है । जब दिन है न तो याद कीजिये कि जाने के लिये आया है आने वाली रात है । सुख-सुविधा है न संसार में, याद कीजिये कि जाने के लिये है । आ रहा है दुःख-दर्द यातना । जब दुःख यातना से गुजरिये तो समझ लीजिये याद रखिये कि जाने के लिये आया है । थोड़ा धीर-गम्भीर होइये । कोई सुख, आनन्द, चिदानन्द आ रहा है । इस क्षेत्र में रहें तो । इसलिये कुछ सुख-सुविधा काल मत सोचिये । जीव है न वह कहीं मिलने लगेगा । ये जीव नहीं होगा न ये शरीर में आग लगा   देंगे । कौनो नहीं पूछेगा । कौनो बापू नहीं कहेगा, कौनो पिताजी नहीं कहेगा, कौनो पतिदेव नहीं कहेगी, कौनो चाचा जी नहीं कहेगा, कौनो मामाजी नहीं कहेगा, कौनो फूफाजी नहीं कहेगा, कोई कुछ कहने वाला नहीं मिलेगा । सब एक बार नाश कर देंगे, फूँक-फाँक करके । तो ऐसा भोगी-व्यसनी मत बनिये आप लोग, सुविधा- भोगी मत बनिये । सन्तों के संग में होने-रहने की कोशिश कीजिये । कल्याण का दूसरा कोई विधान नहीं है । सब लोग खुशहाल हैं, सम्पन्न हैं आपको कोई लोभ-लालच, मोह नहीं है, कोई गर्ज नहीं है तो क्यों वहाँ पड़े हैं ? आपको ममता-मोह ही नहीं है तो क्यों वहाँ पड़े हैं ? क्यों नहीं आ सकते ? जहाँ पतन और विनाश है, उसमें कुढ़कर के बैठे हैं, जहाँ मुक्ति और अमरता है उस क्षेत्र में स्थित होने में चिन्तन हो रहा है । क्या कमाल है ! क्या कमाल है ! जहाँ दुःख-सुख, सुख-दुःख है उसमें तो प्रेम से बैठे हैं और जहाँ दुःख है ही नहीं , जहाँ सच्चिदानन्द है, जहाँ परमानन्द है, जहाँ शाश्वत शान्ति, शाश्वत आनन्द है, वहाँ रहने में पचास ठो चिन्तन है । धन्यवाद है मति-गति का । भूल जाइये आप लोग सुख-सुविधा  को । परमेश्वर को जो देना है, जो मिलना होगा न तो परमेश्वर से अधिक कौन देगा सुख-सुविधा और भगवान् जब छीनना चाहेंगे तो घरवा से ठेंगा दिखाकर निकालेंगे सब । कोई मिल रहा है भगवत् कृपा से मिल रहा है । उन पर भगवत् कृपा है कि मिलेंगे न सबकुछ मिल जायेगा । इसलिये कृपा का लाभ लीजिये आप लोग ।

संत ज्ञानेश्वर सदानन्द जी परमहंस