भगवान-भगवदवतार की परख-पहचान ‘तत्त्वज्ञान’ से

भगवान-भगवदवतार की
परख-पहचान ‘तत्त्वज्ञान’ से

          प्रेम से बोलिए-- परमप्रभु परमेश्वर की ऽऽऽ जय !
        भइया हमारी तो मजबूरी है ‘सत्य’ को देखने की । अब रही बात कि जिस किसी को लग रहा हो कि हम सत्य हैं और हमको झूठा कहा जा रहा है, हमको नीचा दिखाया जा रहा है तो हम सहर्ष तैयार हैं इस बात को प्रमाणित करने के लिए कि सद्ग्रन्थों की मान्यता के आधार पर जो कुछ बोला जा रहा है वह सत्य है । अब आप कह सकते हैं कि वाह ! ये सारे ऋषि-महर्षि, ये सारे सन्त-महात्मन् , ये सारे गुरुजन, ये सारे धर्मोपदेशक झूठे हैं - गलत हैं और एक आप ही सत्य हैं ? मैंने कभी किसी से ऐसा नहीं कहा कि मान लीजिये कि मैं ही ‘सत्य’ हूँ । मैंने यही कहा है कि जान लीजिये, सबको जान लीजिये, अपने को भी और मुझको भी और वास्तव में जो ‘सत्य’ ही हो उसे ही आप ‘सत्य’ कहिये । यदि हम भी झूठे दिखायी देने लगें-ये तत्त्वज्ञान झूठा ज्ञान दिखायी देने लगे तो हम भी झूठ होंगे । और जब हम झूठ हैं तो हम को भी आप झूठ कहिये । चाहे मुझे तीत भी लगे तब भी, मुझे खराब भी लगे तब भी। मुझे निन्दा-आलोचना भी लगे तब भी । हम कैसे कह सकते हैं कि आप अपने ‘सत्य’ को छोड़ दीजिये ? मैं कभी नहीं कहता कि आप मुझे ही ‘सत्य’ मान लीजिये । लेकिन यह जरूर कह रहा हूँ कि यह जो ‘तत्त्वज्ञान’ है, यही ‘परमसत्य’ है ! एकमेव एक यही ‘परमसत्य’ है !! यही परमसत्य है !!! जिस किसी के पास जो कोई कह रहा है कि हमारे पास ‘तत्त्वज्ञान’ है, हम तो बड़े प्रेम से कह रहे हैं कि मौका दें। बन्धुओं के समक्ष मौका है, खुले समाज में मौका दें । हम जनाने-दिखाने को तैयार हैं कि वह जिसको तत्त्वज्ञान कहता है, वह तत्त्वज्ञान नहीं है । और जब वह तत्त्वज्ञान नहीं है फिर भी उसी को तत्त्वज्ञान कहते हैं तो हमको कहना ही पड़ेगा कि ये सब झूठ बोलते हैं ।
         

        झूसी के तरफ जो मार्ग है उसका नाम लिखा है ‘तत्त्ववेत्ता मार्ग’ । बड़ा विचित्र लगा हमको कि इस मार्ग पर कौन तत्त्ववेत्ता है ? किस अर्थ में इस मार्ग का नाम ‘तत्त्ववेत्ता मार्ग’ रख दिया। किसको पता था कि ‘तत्त्ववेत्ता’ क्या होता है--‘तत्त्व’ क्या होता है ? तो अब क्या कहा जाए ! एक अन्धा दूसरे अन्धे का हाथ पकड़ के जब मार्ग दिखाने लगता है तो जिसको मार्ग दिखा रहा है वह तो जइबे करेंगे गड्ढे में, दिखाने वाले महोदय भी जायेंगे। वही-- ‘झूठा गुरु अजगर भया लख चैरासी जाए, चेला सब चींटी भये कि नोंचि-नोंचि के खाय’ कि तुम हमारे जीवन को बर्बाद किये हो, तेरे को नोंच-नोंच कर हम खायेंगे । सब गुरुजी लोग बोल रहे हैं । क्या ही अजीब स्थिति है कि ‘धर्म’ जैसी पवित्रतम् चीज को जो सृष्टि का सबसे पवित्रतम् शब्द है-जो सृष्टि का सबसे पवित्रतम् विधान है-ज परम सत्य का विधान है, इसको भी धन्धा और झूठ-फरेब से युक्त बनाये बिना ये महात्मन् कहलाने वाले, ये गुरुजन जी लोग बाज नहीं आ रहे हैं। क्योंकि यह बड़ा बड़ा ही आसान धन्धा लग रहा है, बिना मेहनत का ही मान-मर्यादा के साथ भोजन, रहन-सहन और मान-सम्मान भी मिल रहा है । सैकड़ों-हजारों पीछे-पीछे भगवान् कहने वाले भी लगे हैं । 
     कोई ॐ को भगवान् मनवाने में लगा है तो कोई ‘अहँ ब्रह्मास्मि’ को भगवान् मनवाने में लगा है तो कोई आत्मा को भगवान् मनवाने में लगा है तो कोई ग्रन्थ ही को भगवान् मनवाने में लगा है । धन्यवाद करूँ कि धिक्कार करूँ ऐसे मति-गति वालों को कि भगवान् जानने की कोशिश नहीं किया और ऊल-जलूल उनके सामने जो पड़ गया, उसी को भगवान् मानना और उसी को भगवान् कहना-कहलवाना शुरू कर दिया। क्या भगवान् इतना कच्चा सौदा है और ऐसा ही है ? भगवान् इतनी ओछी चीज है क्या ? भगवान् सृष्टि का कत्र्ता-भत्र्ता-हत्र्ता है । भगवान् सृष्टि का एक परम शक्ति-सत्ता है । अपने मिथ्यामहत्त्वाकांक्षा के शिकार होने के चलते हमभगवान् को भी अपनी ओछी हरकतों का शिकार बनाने लगे । तो क्या भगवान् हमारी ओछी हरकतों का शिकार हो सकता है ? हम दोपहर के सूरज पर जब थूकने लगेंगे तो क्या वह थूक सूरज पर जाएगा ? उलट करके अपने मुँह पर ही आयेगा । 
        आप बन्धुजन इस पण्डाल की चुनौती--इस पण्डाल के ऐलान पर -- इस पण्डाल के उद्घोषणा पर कि यहाँ जीव एवं ईश्वर और परमेश्वर का साक्षात् दर्शन मिलता है, बातचीत सहित परिचय-पहचान होता है । यहाँ तुलसी वाले राम जी का नहीं; हनुमान जी वाले राम जी का दर्शन होता है । मीरा वाले कृष्ण जी का नहीं; राधा, गोपियाँ, उद्धव, अर्जुन वाले कृष्ण जी का दर्शन होता है । मूर्ति-फोटो वाले राम जी का नहीं, मूर्ति-फोटो वाले कृष्ण जी का नहीं; जिस भगवान् ने राम जी वाले शरीर से काम किया था - कार्य किया था, जिस भगवान् ने कृष्ण जी वाले शरीर को माध्यम बना करके कार्य सम्पादन किया था, उस वास्तविक दर्शन वाले भगवान् जी की बात कर रहा हूँ । हमारे ईश्वर-परमेश्वर कोई पाॅकेट में रखी हुई वस्तु नहीं है- कोई चीज नहीं है। हमारे ईश्वर-परमेश्वर वही हैं जिनके लिए जंगल-पहाड़- कन्दराओं में जा करके लोग यातनायें सह रहे हैं और अपने शरीर को दे रहे हैं- कष्ट सहन कर रहे हैं कि कहीं मुझे ईश्वर का एक झलक मिल जाता । हालांकि उनको यह भी पता नहीं कि ईश्वर ही परमेश्वर नहीं होता है। ईश्वर तो परमेश्वर का एक अंशमात्र है और जीव जो है ईश्वर का अंशमात्र है । 
       ये सब धर्मोपदेशक बनने वाले ऊपर से तो वास्तव में भगवान् वाले और भीतर से घोर नास्तिक, भीतर से अधर्म की वृत्ति से गुजरने वाले ये लोग क्या जानेंगे कि भगवान् क्या होता है ! भगवान् किस चीज का नाम है ! यहाँ तो एक धन्धा बना लिया गया भगवान् को। यहाँ तो धर्म को एक धन्धा बना लिया गया और सारी दुकानें लगी हैं इसी धन्धे के लिये ! ये धन्धे सब खुल रहे हैं । 
        भारत का संविधान धर्म निरपेक्ष है । भारत का संविधान जो है धर्म निरपेक्ष है । यहाँ की पुलिस कहती है आप अपने पण्डाल में अपना कार्यक्रम कीजिये । दूसरे के पण्डाल में चाहे वह कुछ भी कहता हो, चोरी करता हो, ठगाही करता हो, जनता के धन-धर्म का दोहन करता हो; आप उसे करने दीजिये । उसको मत छेडि़ये । आप अपना कीजिये । उसको अपना करने दीजिये । जिस देश में ऐसा कानून और ऐसी पुलिस की व्यवस्था होगी उस देश की क्या स्थिति होगी ? एक नकली इन्सपेक्टर गिरफ्तार कर लिया जाता है, नकली आफिसर गिरफ्तार कर लिया जायेगा, एक नकली चोला पहनने वाला गिरफ्तार कर लिया जायेगा और
इन नकली महात्माओं, नकली धर्मोपदेशकों जो जनता के धन और धर्म दोनों का
शोषण करने में लगे हुए हैं, जो जनता के धन का तो हरण कर ही रहे हैं, उसके धर्म का भी हरण कर रहे हैं, जनता को भगवान् से विमुख बना करके भगवत् शक्ति-सत्ता से दूर ले जा रहे हैं, सच्ची भक्ति-सेवा से दूर कर रहे हैं, के लिये कोई कानून नहीं है ? इन लोगों के लिये पुलिस संरक्षण दे रही है । वे अपने पण्डाल में जो भी कर रहे हैं, उन्हें करने दीजिये ।             

           कालनेमि साधु था हनुमान जी को फंसाने के लिये-मारने के लिये । कपटीमुनि साधु था प्रतापभानु को फंसाने के लिये-- समाप्त करने के लिये । लेकिन देखने में साधु लग रहा था । प्रतापभानु जैसा प्रतापी राजा भी उस कपटी मुनि की चाल को नहीं समझ सके। हनुमान जी जैसा बजरंगबली कालनेमि को नहीं समझ सके तो ये नाजानकार-नासमझदार जनता, ये रोटी-कपड़ा-मकान मात्र के लिये लालायित जनता जिसको पीने का शुद्ध जल भी नहीं मिल पा रहा हैे, ऐसी तड़पती हुई जनता क्या खोज कर पायेगी इन कपटी मुनि-कालनेमियों के बीच ? जो साधु बन करके भगवद् भक्तों को, सच्चे जन को, सच्चे भक्त को सर्वनाश करने में लगे हुये हैं -- सत्यानाश करने में लगे हैं । धन केवल हरण करने में सर्वनाश नहीं हो पाता, धन केवल ठग लेते तो सत्यानाश नहीं कहलाता लेकिन धर्म भी ठग लेना । धन के साथ-साथ जिज्ञासुओं का, भक्तों का धर्म भी हरण कर लेना अपने में भरमा-भटका करके लटकाये रखना सत्यानाश करना ही तो है । 
          कोई सोऽहँ में लटका रहा है तो कोई ¬ में लटका रहा है तो कोई ‘अहँ ब्रह्मास्मि’ में लटका रहा है तो कोई नाम जप वाले में लटका रहा है । देखिये आशाराम तक भगवान् बनने लगा । उसका बेटा तक भगवान् बनने लगा । सतपाल भी भगवान् बनने लगा उसका बेटा भी भगवान् बनने लगा । एक ही परिवार में सब भगवान् ही भगवान् । हंस भगवान् थे, बालयोगेश्वर जी भी भगवान् बने, सतपाल भगवान् बना, उसका लड़का भी भगवान् है । ये सब भगवान् ही भगवान् हुए ? एक ही परिवार में कितने भगवान् जी लोग हैं ? कितने भगवान् होते हैं ? 
          इस तरह से भइया हम तो कहेंगे कि भगवान् जानना हो तो राम जी के उपदेशों को अपना आधार बनाइये । भगवान् को वास्तव में जाँच-परख करना है तो विष्णु जी का जो ज्ञान का उपदेश है, राम जी का जो ज्ञान का उपदेश है, कृष्ण जी का जो गीता का उपदेश है, इसको आधार बनाइये और इनको आधार बना करके यदि कोई कहता है कि हम भगवान् मिलाते हैं तो उस आधार पर आप भगवान् जानने की कोशिश कीजिये । निःसन्देह उसका भण्डाफोड़ हो जायेगा । पता चल जायेगा कि असली कौन है और नकली कौन है । अब रही चीज ये कि इतने बड़े सन्त-महात्मा, इतने बड़े ऋषि-महर्षि, इतने बड़े महापुरुष को लाखों अनुयायी जिनके हैं उनको आप इस तरह से कह रहे हैं ? भइया, ऋषि-महर्षि सतयुग में भी कम नहीं थे, देवी-देवता सतयुग में भी कम नहीं थे । ऋषि-महर्षि त्रेता में भी कम नहीं थे । ऋषि-महर्षि द्वापर में भी कम नहीं थे । विष्णु जी के सिवाय कौन था सतयुग में ? राम जी के सिवाय कौन था त्रेता में ? कृष्ण जी के सिवाय कौन था द्वापर में तत्त्वज्ञान दाता ? 
        बोलिये परम प्रभु परमेश्वर की ऽ ऽ ऽ जय ! कितने बड़े आश्चर्य की बात है कि जब हम दर्शन की बात कर रहे हैं , जब हम प्रभु से मिलाने की बात कर रहे हैं तो ये इतना आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि दर्शन हो जायेगा ? जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों तीन हैं ? नहीं ! तीनों का अलग-अलग दर्शन होता है ? सचमुच दर्शन हो जायेगा ? इन लोगों को सुन करके भीतर भीतर इतनी हँसी आती है ! एक तरफ भीतर हँसी आती है और दूसरी तरफ लगता है कि आखिर ये बेचारे किस योनि में है ? क्या मनुष्य योनि में है ? जिसलिये मनुष्य शरीर मिली है, जिसके लिये मानव चोला मिला है कि अपने आप ‘जीव’ को भी देखें ताकि यह जान सकें कि यह ‘हम’ कौन हैं ? जिसके लिये मानव चोला मिला कि ‘ज्ञान’ प्राप्त करके हम जान-देख सकें कि ये ‘हम’ कौन है ? ‘हम’ जो जीव है, इसको जान-देख सकें कि ‘हम’ जीव है । यह जीव क्या है ? यह कैसा है ? कहाँ से आया है ? इस चोले में किसलिये आया है ? आखिर शरीर छोड़कर जाता है तो कहाँ जाता है ? इसको कहाँ जाना चाहिये ? यह सब जानने के लिये ही तो इस जीव को यह मानव चोला मिला है। इन जानकारियों के लिये कि ‘हम’ (जीव) क्या है ? कहाँ से आया है ? कहाँ रहता है ? किसलिये इस चोला में आया है ? क्या जिसलिये आया है, वही कर रहा है या नहीं ? और शरीर छोड़ करके इसे कहाँ चले जाना है ?
       सर्वप्रथम तो हर किसी का फर्ज है कि वह अपने अपने को (अपने जीव को) जानें । यदि आप अपने को (यानी अपने जीव को) नहीं जान-देख पा रहे हैं-नहीं जान-समझ पा रहे हैं तो निःसन्देह सद्ग्रन्थों की मान्यता में आप मनुष्य कहलाने के हकदार नहीं हैं । आप तो नर-पशु हैं । यानी नर का चोला तो पाये लेकिन भोग-राग के पीछे दौड़ रहे हैं । आहार-निद्रा-भय-मैथुन के पीछे दौड़ रहे हैं । दिन भर जुटाना, शाम-सुबह खाना, सुबह-शाम पखाना । फिर दिन भर जुटाना, शाम-सुबह खाना, सुबह-शाम पखाना । सारा जीवन इसी में गंवाना । नौकरी वाले हैं तो पहली को पाना, तीस तक खाना और तीसों दिन गुलामी बजाना । पहली को पाना, तीस तक खाना, तीसों दिन गुलामी बजाना और इसी में सारा जीवन गंवाना । जनम-करम-भोग-मरण,जनम-करम-भोग-मरण,जनम-करम भोग-मरण । क्या यही जीवन है ? क्या इसीलिये मानव जीवन मिला था ? यही मानव जीवन का लक्ष्य है ? रोटी-कपड़ा-मकान ? यही मानव जीवन का उद्देश्य है रोटी-कपड़ा- मकान ? आप लोगों ने अपने इस अनमोल जीवन को व्यर्थ कर दिया । मैं भी आपका छोटा भाई हूँ। आप वृद्धजन हैं तो मैं भी उनका लड़का हूँ । आपका लड़का, आपका छोटा भाई एक जानकारी जो भगवान् की तरफ से है,भगवान् की है, आपके बीच रखने आया है। आपसे पहले कोई फीस नहीं लेना चाहा, एक पैसा फीस नहीं मांगा । कहे न ! कि हम आपके हैं। 
        आपके लड़के-बच्चे हैं। हम आपके छोटे भाई हैं । हमको भगवान् की तरफ से एक ‘ज्ञान’ मिला है । आप जानिये ! हमने जाना है, देखा है, जाँचा-परखा है । इसमें ‘सम्पूर्ण का ज्ञान’ है। इसमें सम्पूर्ण को भी देखने को मिलता है । इसमें आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म भी जानने-देखने को मिलता है और इसमें परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म भी जानने- देखने को मिलता है । इसमें काकभुसुण्डी जी वाला, कौशल्या जी वाला, यशोदा जी वाला, अर्जुन वाला विराट पुरुष भी देखने को मिलता है । अब एक चीज यह कि इस ‘ज्ञान’ को हम आप सबके बीच रख रहे हैं । यह कौन बड़ा अपराध हो गया ? किसी के लिये कोई पैसा भी तो नहीं रखा फीस में कि मैं आपका पैसा ठग लूँगा । एक मुट्ठी अन्न भी तो इसकी फीस में नहीं रखा कि मैं ठग लूँगा । आप कहें कि मेरा जो 12-13 दिन समय लग रहा है, उसका क्या होगा ? आप आते हैं तो सुनते है और हम आते हैं तो लगाताार अन्धाधुन्ध बोलने में लगे हैं । अब आप अपने से पूछें कि भगवान् जी की तरफ से हम आपको कुछ देने में लगे हैं या आपका कुछ लेने में लगे हैं ? हम जो कुछ भी आपको देने में लगे हैं या बताने में लगे हैं, भगवान् की कृपा से भगवान् के ‘ज्ञान’ के विषय में जो हम जना-दिखा रहे हैं, इसमें जो  गलत लगे, आपको माइक भी दूँगा, आपको कुर्सी भी दूँगा-उस माइक और कुर्सी से उसे गलत काटने की कोशिश करें । भगवत् कृपा होगी तो हम भी सद्ग्रन्थों से-मान्यता प्राप्त सद्ग्रन्थों से आपको जो जनाने-बताने में लगे हैं, उसको सत्यप्रमाणित करने के लिये प्रयास करूँगा ! निःसन्देह ऐसा होगा ! फिर आपको जानने-देखने में परेशानी क्यों हो रही है ? इसलिये कि हमारा घर-परिवार छूट जायेगा ? कहाँ आपका घर-परिवार है ? अरे ! भगवान् जी के लिये अभी भले ही घर-परिवार नहीं छोड़ेंगे लेकिन यमराज जिस दिन घसीट कर ले जायेगा, उस दिन घर-परिवार छूटेगा कि नहीं ? ठीक है भगवान् जी के लिये आप घर-परिवार नहीं छोड़ेंगे, यमदूत-यमराज जिस दिन घसीट कर ले चलेगा उस दिन घर-परिवार छूटेगा कि नहीं ? यमदूत घसीट कर ले जायेगा तो कोई बात नहीं । छूट रहा है तो छूट जाये लेकिन खुशी-खुशी भगवान् को पाने के लिये, भगवान् का होकर रहने-चलने के लिये आप अपना घर-परिवार नहीं छोड़ना चाहते। 
           भगवान् एक परम दयालु, परम कृपालु होता है । भगवान् ने ऐसी भी छूट दिया है कि आप पर जो आश्रित हैं, आपके जो सागिर्द हैं, आपके जो अपने कहलाने वाले हैं, आप अपने पीछे उनको भी ले करके भगवान् की राह पर चल-रह सकते हैं । क्योंकि उसमें भी एक जीव है, उसको भी मोक्ष की जरूरत है, उसको भी भगवान् की जरूरत है । किसी को भगवान् की जरूरत कब नहीं पड़ती है ? जबकि भगवान् के विषय में उसको कुछ अता ही पता नहीं है । जो कोई भी हो चाहे जितना घोर से घोर नास्तिक भी हो, यदि वास्तव में उसके दिल-दिमाग में भगवान् की जानकारी का पता चल जाय तो ऐसा कोई जीवात्मा नहीं है जो परमात्मा को न चाहे। ऐसा कोई नहीं है जीव जो भगवान् को न चाहे । अब रही चीज ये जो व्यसन में इतना लिप्त हो गया है, भोग-राग में इतना लिप्त हो गया है जैसे एक घोर शराबी को, एक घोर गंजेड़ी को, एक घोर नसेड़ी को शराब, गांजा, नशा छोड़ने को कहा जाय तो उसके लिये विपदा हो जायेगा । उसका पेट दर्द करने लगेगा । उसका सिर दर्द करने लगेगा । उसका शौच-पखाना नहीं हो पायेगा । धिक्कार है ऐसे जीवन को । तुम गुलाम बन गये नशा के । इन साधुजनों को देखिये । मार गांजा पर गांजा चढ़ाते हैं सब । तुम गांजा पीते हो, तुम नशा करते हो । नशाखोरी को छिपाने के लिये कहते हो कि शंकर जी पिये थे । क्या शंकर जी को देखे हो पीने में ? धिक्कार है उन गृहस्थियों को, धिक्कार है उन जनमानस को जो ऐसे नसेडि़यों को एक पैसा देते है या एक मुट्ठा अन्न भी देते हों । जब वह नशा पी रहा है तो वह एक मुट्ठा अन्न पाने का भी पात्र नहीं है । एक नसेड़ी कहीं भक्ति कर सकता है ? एक नसेड़ी, गंजेड़ी, भंगेड़ी से कहीं भक्ति-सेवा हो सकती है भगवान् की ? शराबी, नसेड़ी, गंजेडि़यों को भगवान् भक्ति-सेवा में स्वीकार करेगा ? जनता तो बेचारी भीतर से तड़प रही है,कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार का सहारा खोजती है और उस तड़पन और सहारा का नाजायज लाभ ये तथाकथित धन्धेबाज लोग उठा रहे हैं । जाने-अनजाने उस तड़पन का दुरुपयोग हो रहा है । जानते हैं जीव को भी नहीं और बनते हैं भगवान् जी । जीव को भी नही जानते और जनता को देने लगे मोक्ष-कल्याण । जबकि सच्चाई यह है कि मोक्ष- कल्याण सारे ब्रह्माण्ड में देने का अधिकार केवल भगवान् को है । दूसरा किसी को मोक्ष देने का अधिकार नहीं । किसी को भी नहीं ! आदि शक्ति भी मोक्ष नहीं दे सकती । शंकर, ब्रह्मा और इन्द्र भी मोक्ष नहीं दे सकते । आज ये तथाकथित गुरुजन मोक्ष बांट रहे हैं, अमरत्त्व बांट रहे हैं, मुक्ति-अमरता बांट रहे हैं । जब वेद मन्त्र प्रकट हुआ कि ‘ऋते ज्ञानान् न मुक्तिः ।’ यानी ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं । ये जो भागवत् कथा कह रहे हैं, जो भागवत् कथावाचक हैं, जिनकी एकमात्र दृष्टि है चढ़ावे पर, पैसे पर--भक्ति में नहीं, वे मंच पर खूब रोयेंगे, गायेंगे, पब्लिक को हंसायेंगे, रुलायेंगे, लुभायेंगे । ये सारे क्रिया-कलापों के भीतर वास्तविक स्थिति क्या है कि थाल में कितना पैसा चढ़ावा आ रहा है । गिद्ध जैसे ही इन लोगों की स्थिति है गिद्ध जैसे । जो भागवत् कथावाचक होंगे, ऊँचा वे लोग खूब बोलेंगे । गिद्ध कितनी ऊँचाई पर उड़ता है लेकिन उसकी दृष्टि मरे हुए पशु पर होती है । वह इतना ऊँचा उड़ता है आसमान में कि शायद ही कोई पक्षी जाय एक कबूतर को छोड़कर । गिद्ध के इतनी ऊँचाई पर उड़ने पर भी उसकी दृष्टि कहाँ रहती है ? सड़े-गले उस मांस पर , उस डागर पर, उस पशु पर जो जमीन पर पड़ा हुआ है। ऐसे ही ये कथावाचक लोग जब मंच पर बैठते हैं तो ये इतने बड़े भक्त दिखाई पड़ते हैं, जनमानस के बीच वे अपने को भाव विह्वल हुआ दिखाते हुए झूमेंगे-गायेंगे-हंसायेंगे-रुलायेंगे यानी नाटकीय रोल खूब पसंद से करते हैं ये । लेकिन यह सब करने के पीछे यह उनकी भक्ति नहीं है । यह उनकी वह वृत्ति है सब करने के पीछे कि उनकी दृष्टि है पैसे पर, रुपये पर, चढ़ावे पर । तो आप बन्धुजन से हम यही कहेंगे कि भगवान् ने इस धरती पर बीच-बीच में धर्म-मेला को इसलिये यहाँ स्थापित किया-- बीच-बीच में किसी न किसी प्रकार का विधि-विधान लागू करके ऐसे धार्मिक मेला को घोषित कर-करा दिया कि जो भूले-भटके लोग हैं, जो भूले-बिसरे लोग हैं, वे ऐसे मेला में उपस्थित होंगे । और अपने को मिले गुरु के ‘ज्ञान’ का जांच करेंगे । तो इस तरह से भक्ति को पैसे की दृष्टि से नहीं आंक सकते । धन और भौतिक दृष्टि से ‘धर्म’ को नहीं आंक
सकते। हमारे पास कितने अनुयायी हैं, हमारे पास कितना धन है, कितने आश्रम हैं, कितना विशालकाय प्रचार-प्रसार है-- ये कभी धर्म की मान्यता में नहीं हो सकता । धर्म की मान्यता ‘ज्ञान’ पर आधारित है ‘ज्ञान’ पर । ये सब गुरु जी घोषित करते हैं । ये माया है । छोड़ो-त्यागो-फेंको, ये माया है । ये धन-दौलत, घर-गृहस्थी, घर-परिवार छोड़ो-फेंको और वे खुद अपने सागिर्द में बीबी-बच्चा रख करके बच्चा पैदा कर रहे हैं । वे इनकी लक्ष्मी जी हो गयीं । गृहस्थ लोगों की मां है वह । तो इनके बेटा जी हैं । वे पैदा कर रहे हैं तो वे भगवान् जी हैं और आप पैदा कर रहे हैं तो माया है ।
        उनके पास इतना धन, इतने जन, इतने आश्रम हैं । ये कितना धन हो गया है ? क्या कुबेर भण्डारी से भी अधिक ? कहाँ कुबेर को भगवान् के अवतार की मान्यता है ? इनके कितने जन हो गये हैं, क्या देवराज इन्द्र से भी अधिक जो 33 करोड़ देवताओं के राजा हैं । इन्द्र भी भगवान् नहीं कहलाये । कितने आश्रम हैं ? कितना निर्माण करा दिया ? क्या विश्वकर्मा से भी अधिक ? ब्रह्मा जी से भी अधिक जिसने सृष्टि रचना ही कर दिया । ऐसी तिलस्मी सृष्टि जिसका थाह नहीं
मिलेगा। ये शंकर जी तक, महावीर जी तक इसका थाह नहीं पा सके । ऐसी तिलस्मी दुनिया रचने-रचाने वाले ब्रह्मा जी जो भगवान् जी के सकाश से माया के द्वारा रचना किया, क्या इन चीजों की रचना से विश्वकर्मा और ब्रम्हा जी भगवान् जी की श्रेणी में आ गये हैं ? भगवान् घोषित हो गये हैं ? आपके साथ कितने शिष्य चलते हैं, क्या दुर्वासा से भी अधिक ? थोड़ा सा कड़ाई जोड़ दीजिये न, एक गिलास पानी देने वाला भी इन गुरु जी लोगों को नहीं मिलेगा। एक-एक महात्मा जी लोग ऐसे हैं कि पण्डाल भरा है, अपने बैठे हैं । जब पण्डाल उठने लगेगा तो पता चलेगा कि भण्डारी भी नहीं है । वह भी तनखा पर है, कहीं से आया है । अपना भोजन बनाना हो तो भण्डारी नहीं है । वह भी भाड़े-किराये का ही है। पण्डाल और मंच पर महात्मा जी हैं। उनके असिस्टेन्ट लोग रुपया का बंटवारा करेंगे जिस दिन पण्डाल उठेगा । उनका परसेन्टेज है । कमीशन है । इतना परसेण्ट आपका, इतना परसेण्ट आपका, इतना परसेण्ट हमारा । अन्तिम में बंटवारा होगा। ऐसे-ऐसे लोग ‘मन न रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा । ये सब ऐसा है । 

        आप लोग आश्चर्य करते हैं, जो आता है यहाँ आश्चर्य करता है कि जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों तीन हैं ! जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों अलग-अलग हैं ? अब सोचिये न ! इतने महात्मा जी लोग हैं । ये किस बात का उपदेश दे रहे हैं कि अभी तक आपको इतना भी पता नहीं चल पाया कि जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों अलग-अलग होते हैं ? ठीक है वे आपको नहीं दिखा पाये, उनमें दिखाने की क्षमता-शक्ति नहीं है, कम से कम पढ़ करके इतना तो बताना ही चाहिये कि ये तीनों अलग-अलग हैं । तीनों तीन हैं । एक ही का तीन नाम नहीं हैं । आखिर ये लोग उपदेश किस बात का दे रहे हैं जब इतना भी ज्ञान नहीं है कि जीव, आत्मा और परमात्मा -- जीव, ईश्वर और परमेश्वर -- जीव, ब्रह्म और परमब्रह्म -- रुह, नूर और अल्लाहतआला -- सेल्फ, सोल एण्ड गाॅड तीनों तीन हैं और तीनों अलग-अलग हैं । इतनी भी जानकारी नहीं तो किस बात का उपदेश दे रहे हैं ये लोग ? किस बात का धर्म कर-करा रहे हैं ये लोग ? धर्म में जीव ही ‘हम’ है । ‘हम’ जब जीव है तो हम उसी ‘जीव’ को देखने की बात तो कर रहे हैं ! हम उसी को देखने-दिखाने की बात कर रहे हैं । हमका आश्चर्य लगता है कि देखिये न जिसलिये मानव शरीर मिली थी, जिसलिये मानव योनि मिली थी अपने जीव को देखने के लिये, आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म को जानने- देखने के लिये, खुदा-गाॅड-भगवान् को जानने-देखने के लिये -- परमात्मा- परमेश्वर-परमब्रह्म को जानने-देखने के लिये, अपने को बार-बार के ये जन्मना और बार-बार के मरना रूपी इस दुःसह दुःख से बचाने के लिये, इस काल से, इस मृत्यु से अपनी रक्षा करने के लिये यह मानव शरीर मिला है। यही एक शरीर ब्रह्माण्ड में है, सृष्टि में है जो ज्ञान पाने की पात्रता रखती है और इस शरीर क हमको ज्ञान को दे देना चाहिये । सबको चाहिये कि इस शरीर को हम ज्ञान को दे दें। इस शरीर को कोई माता-पिता को देने में लगा है तो कोई बीबी-बच्चा को देने में लगा है तो कोई बेटा-बेटी को देने में लगा है तो कोई नौकरी-चाकरी-बिजनेस- व्यापार को देने में लगा है । यानी ‘ज्ञान’ को देने में उनकी मर्यादा घट रही है ? पता क्या चल रहा है कि कुल क्रिया-कलाप बीबी-बच्चा के लिये हैं । पेट और परिवार उनकी समस्या बनी हुई है । एक नियम बना दिये कि हम दो, हमारे दो । इतनी भी क्षमता-शक्ति नहीं है कि ऐलान कर सकें कि भाई ये तो प्रकृति की देन है। सन्तान भगवान् की देन है । जो आयेगा अपनी व्यवस्था लेकर आयेगा । हमको क्या गर्ज पड़ी है उस प्रकृति के नियम-कानून में बाधा डालने की । अब नसबन्दी होने लगा । पहले ही घोषित हो गया, पहले ही पढ़ाया जा रहा है कि हम इस योग्य नहीं कि परवरिश कर सकें। हिजड़ा बन गये पहले ही नसबन्दी करा करके । भगवान् ने बनाया पुरुष और नसबन्दी करा कर बन गये हिजड़ा । तो कुल मिला करके जो है हर किसी को इस वास्तविकता को समझना चाहिये कि आपकी कितनी क्षमता-शक्ति है । आपको पता नहीं है ये जिस शरीर को आप धारण किये हुये हैं इस शरीर की जानकारी जब खोज करने में लगियेगा, जब खोज करेंगे कि वास्तव में ये शरीर आयी कहाँ से है और किस स्थिति में आयी है । आप अपने पुरुषत्त्व को देखिये इसकी वास्तविकता का पता चलेगा । ये शरीर परमेश्वर की खुद की शरीर है । मानव शरीर जो है परमेश्वर की निज की शरीर है। यही कारण है कि यह तब तक चैन नहीं ले सकती है - शान्त नहीं रह सकती है जब तक कि यह परमेश्वर को प्राप्त नहीं कर लेगी । इसका और का दौड़ बना हीरहेगा। त्रिलोक के विजयी आप सम्राट हो जाइये शान्ति नहीं है और की दौड़ तब भी है । आप देवेन्द्र देवताओं के राजा इन्द्र हो जायेंगे चैन-शान्ति नहीं है । क्योंकि परमेश्वर की शरीर परमेश्वर को प्राप्त करके जब तक परमेश्वर का अपने को नहीं देखेंगे कि ये शरीर जो है ‘हम’ की नहीं, ये हमारी नहीं बल्कि परमेश्वर की है । जानने और देखने में ंजब तक ऐसा नहीं होने लगेगा तब तक इसको चैन कहाँ ? ऐसा जब दिखायी देने लगेगा तो एक बार अपने से तो पूछिये कि शरीर अभाव- कमी से ग्रस्त कब है ? रोटी-कपड़ा-मकान शरीर की समस्या कब है ? जब इसको ‘हम’ कह रहे हैं और हमार कह करके घोषित किये हुये हैं । यही घोर झूठ है । ये शरीर हमार है, शरीर ‘हम’ की है यही अज्ञानता है। यही भ्रम है, यही झूठ है । यही सब अज्ञानता की जड़ है । शरीर हमार है, शरीर ‘हम’ की है और ये घर-परिवार हमार है । यही सब पाप-कुकर्म कराने वाला है । जब तक आप इसके वास्तविकता को नहीं जान लेंगे कि ये शरीर तो हम-हमार की है ही नहीं । ये शरीर तो हमार है ही नहीं, ये शरीर तो ‘हम’ की है ही नहीं । ‘हम’ तो अपने आप में सही नहीं है । ‘हम’ भी अपने आप में वास्तविक नहीं है । यह भी इस झूठी दुनिया के झूठी माया का एक थपेड़ा झेला हुआ बेचारा चैतन्य आत्मा है । माया के थपेड़ा में पड़ा हुआ माया के झमेल में फंसा हुआ बेचारा एक आत्मा है । जब तक परमात्मा के क्षेत्र में था तब तक माया का कुछ प्रभाव नहीं पड़ा । जब तक परमात्मामय भाव था--परमेश्वरमय भाव था, परमेश्वरमय स्थिति थी तब तक माया का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । लेकिन किसी भी परिस्थिति वश परमेश्वर के क्षेत्र से जब बिलग किया और परमेश्वर के क्षेत्र से विलग होने का मतलब माया का क्षेत्र शुरू हो जाना। तो माया ने सबसे पहले इस चैतन्य तेज को
ही समेट लिया, दोष-गुण से आवृ़त्त कर दिया और दोष-गुण से आवृत्त करके इनके तेज को सूक्ष्माकृति में बदल दिया और उस सूक्ष्माकृति में बदल करके न वही अपना खेल खेल रही है । आपको यह भी मालूम नहीं कि माया हमसे खेल रही है, माया हमको नचा रही है । जब तक हम मायाधीन हैं, जब तक हम अज्ञानता के शिकार हैं, जब तक हम भ्रम के शिकार हैं, तब तक ही ये शरीर हमार है और ये घर-परिवार हमार है । जिस समय वास्तविक ज्ञान आपको मिलेगा , जिस समय सच्ची जानकारी आपको मिलेगी, उस समय दिखलायी देने लगेगा कि यह शरीर, घर-परिवार हमारा कुछ है ही नहीं । ये हमार भी नहीं हैं । ये ‘हम’ का भी नहीं हैं । क्रमशः देखते-देखते चलेंगे । अन्त में जब दर्शन की बारी आयेगी, जीव एवं ईश्वर और परमेश्वर के जब दर्शन की बारी आयेगी; उस समय दिखलायी देगा कि ये शरीर सहित सारा ब्रह्माण्ड परमेश्वर का था, परमेश्वर का है और अन्ततः परमेश्वर का ही यह हो-रह करके रह सकता है । जब परमेश्वर से विलग रहेंगे तो माया अपना माया जाल ढील करके आपको जो है अपने जाल में फंसा करके आपको जीव बना करके नचाना शुरू कर देगी और आप नाचने के लिये मजबूर होना-रहना-चलना शुरू कर देंगे। बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की ऽ ऽ ऽ जय ! आप सबको जनाना चाहे लेकिन लाइन दूसरी तरफ बढ़ कर चला जा रहा था । हम जनाना ये चाहे कि बड़ा आश्चर्य है, गजब का आश्चर्य है गजब का आश्चर्य है कि आप सब आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि जीव का दर्शन, ईश्वर का दर्शन, परमेश्वर का दर्शन मिलेगा ! दर्शन में आ सकता है ! आप सब आश्चर्य कर रहे हैं । हम कैसे इसको समझावें कि आप से बढ़कर आश्चर्य तो हमको हुआ है । जितना बड़ा आश्चर्य आप सबको दर्शन शब्द को लेकर हो रहा है । जीव एवं
ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन को ले करके जितना आश्चर्य आपको है उससे बड़ा आश्चर्य तो आप सब पर हमको हो रहा है । किस बात को लेकर भाई। इस बात को लेकर कि देखिये न जिस ईश्वर, परमेश्वर के दर्शन में बने रहने के लिये ये शरीर मिली है । जिसके लिये ही ये मानव योनी मिली है, आज वो मानव शरीर पाकर के भी अभीष्ट और अभीष्ट मंजिल पर ही यह आश्चर्य कर रहा है । बड़ा विचित्र बात है भाई ! आप कैसे मनुष्य शरीर हैं ? ये कैसे मानव हैं ? जिसलिये आपको मानव की शरीर मिली है कि लो लो, यही एकमात्र ज्ञान का पात्र है । यही शरीर जीवन एक ऐसा शरीर जीवन है कि जो जीव को भी जानने-पहचानने-देखने की क्षमता रखता है, आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म को भी जानने-देखने की क्षमता-शक्ति रखता है और परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म को भी जानने-देखने-पहचानने की क्षमता-शक्ति रखता है । यानी ज्ञान को पाने की क्षमता-शक्ति रखता है । ये क्षमता-शक्ति केवल एक मानव योनि में है । और आश्चर्य है कि जिसकी ये मशीन है मानव शरीर उस जीव, ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन के लिये, जिस मुक्ति-अमरता को पाने के लिये ये मानव योनि मिली है । ये जन्म-जन्मान्तर का भोगी जीव जो है इस मानव योनि पर ही संदेह करने लगा । इस मानव योनि के मंजिल-उद्देश्य पर ही संदेह करने लगा । ये आश्चर्य की बात है कि नहीं ? हम देख रहे हैं कि पम्पिंग सेट लगा है - पानी का मशीन लगा है । अब कह रहे हैं कि वाह ! ये पम्पिंग सेट पानी निकाल सकता है ? अरे भइया ! पम्पिंग सेट है चलता है । इसकी परिभाषा जानो, पम्पिंग सेट होता ही इसलिये है कि वह पानी दे और खेतों की सिंचाई हो, जल की आवश्यकताओं की पूर्ति हो । गाड़ी देख रहे हैं । अरे ! ये तो गाड़ी डगर रही है - गाड़ी चल रही है । गाड़ी को ड्राइवर चला कर ले जा रहा है । लो, अब गाड़ी तो चलने के लिये ही बनी है कि गाड़ी पर बैठकर ड्राइवर मंजिल तक ले जाय । गाड़ी का चलना देख कर आप आश्चर्य में पड़ गये। अरे ! गाड़ी तो चलती है । अब लगेंगे व्याकरणाचार्य जी महोदय लोगों की तरह से अर्थ-व्याख्या करने । गाड़ी माने गड़ी हुई । तो जो चल रही है वह गाड़ी कैसे हो सकती है ? हो ही नहीं सकती । नाम है गाड़ी यानी गड़ी हुई, तो कैसे चल सकती है ? मैं नहीं मान सकता कि गाड़ी चलती है । बड़ी विचित्र बात है । सबसे रंगीन फल, दूर से ही आपको दिखायी देगा । उसका नाम है नारंगी । नारंगी - रंग ही नहीं है । सबसे तेज रंग है उसका लेकिन नाम है नारंगी । अब व्याकरणाचार्य जी उसका सही अर्थ व्याकरण से बतायेंगे। क्या करेंगे ? नारंगी -- जिसमें रंग न हो, ऐसा फल जिसमें रंग ही न हो। ये तो नारंगी हो ही नहीं सकता । ये तो नाम है, ये तो दूर से दिखायी दे रहा है नारंगी । ये तो व्याकरणाचार्य जी लोगों का व्याकरण हो
गया है । ये तो बी0 ए0, एम0 ए0, पी0एच0डी0 डिग्री लिये हैं । वेद पर डिग्री-डिप्लोमा ले रहे हैं । पता अपने जीव का भी नहीं । अरे ! अपना ये जीवन उस पढ़ाई में नाश को ले जा रहे हैं । वेद के जो विष्णु मन्त्र हैं, विष्णु सत्य है, जो भगवान् का शब्द है तोड़-ताड़ करके व्याकरण से उसका अर्थ का अनर्थ करकेउसको भी नकार देते हैं । प्रेम से बोलिये परम प्रभु परमेश्वर की ऽ ऽ ऽ जय !

सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस