भेदभाव का मूल कारण
अज्ञानता
अज्ञानता
बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ । परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ। परमप्रभु परमेश्वर की जय ऽऽऽ । सत्यमेव जयते नानृतम् । आज हम लोगों के ये सत्संग कार्यक्रम के तीसरे दिन की दूसरी बैठक है । जैसा कि प्रत्येक बैठकों में ऐसा संकेत करते आ रहे हैं कि यह सत्संग कार्यक्रम जो है मात्र कोई कथा-पुराण नहीं है । ये सत्संग कार्यक्रम पूर्णतया आप बन्धुजनों के जीवन पर आधारित है । यह सत्संग कार्यक्रम आप बन्धुजनों के पूर्णतया जीवन पर आधारित है । आप हम सबका अस्तित्त्व क्या है ? कर्तव्य क्या है और मंजिल क्या है ? इस तीन विषय पर ये सत्संग जो है पूरा का पूरा आधारित है कि हमारा अस्तित्त्व क्या है ? हमारा कर्तव्य क्या है और हम सभी के इस मानवीय जीवन का उद्देश्य क्या है ?
हम बार-बार आप बन्धुजनों से एक बात बतावें ईमान और सच्चाई के साथ कि धर्म किसी को दुर्भावना नहीं सिखाता । दुर्भावित होने को नहीं सिखाता । धर्म हमेशा आप हम सभी को सद्भावित होने-रहने को सिखाता है, अपनत्त्व सिखाता है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि हम सभी सत्य को छोड़कर के अपनत्त्व को अपनावें । सत्य में रहते हुए जो अपनत्त्व होगा वास्तव में वह अन्तःकरण का होगा, अन्तःकरण से होगा । जब तक आप हम सभी अपने अस्तित्त्व को जानेंगे नहीं, अपने कर्तव्य को जानेंगे नहीं, अपने अस्तित्त्व और कर्तव्य को देखेंगे नहीं, अपने मंजिल को जानेंगे-देखेंगे-परखेंगे-पहचानेंगे नहीं, तब तक हमारे आपके अंदर भावना आ ही नहीं सकती यहाँ और जब सद्भावना हमारे आपके अंदर आयेगी तब जाकर के सच्चा अपनत्त्व खिलेगा । निःसन्देह आप हम सभी एक के ही हैं, एक से ही हैं, एक के ही हैं । आप हम सभी एक से ही हैं एक के ही हैं आवश्यकता है जानकारी की । जब तक अज्ञान है, जब तक भ्रम है तब तक आप हम सभी अलग-अलग हैं । अलग-अलग परिवार के हैं, अलग-अलग वर्ग के हैं अलग-अलग जात के हैं, अलग-अलग सम्प्रदाय के हैं कब तक -- जब तक अज्ञानता है जब तक भ्रम और भूल में हैं । जिस समय आप हम सभी एक सच्चे ज्ञान से गुजरेंगे उस समय दिखलाई देने लगेगा कि हम आप सभी जो है एक ही के हैं । एक से ही हैं, एक से ही हैं । किसी प्रकार का भेद नहीं है । भेद-भ्रम तो आता है भ्रम से, भ्रम है अज्ञानता में । किसी भी प्रकार का हमारे आपके में जो भेद है वह भ्रमवश है और भ्रम है अज्ञानतावश ।
बार-बार हम कहते हैं, हर बैठक में हम कहते हैं कि किसी से भी, किसी एक से भी हमारा बैर विरोधी नहीं है । कोई हमारा विरोधी नहीं है । हमारे आँख में कोई हमको विरोधी दिखाई नहीं देता । अब रही चीजें हम आपको सत्य जनाने मेे लगे हैं कि आप बन्धुजन सत्य को समझें । किसी के गुरु से हमारा कोई व्यक्तिगत झगडा. टकराव टेंशन नहीें है । किसी भी गुरु के शिष्य से हमारा कोई झगड़ा टकराव-टेंशन नहीं है । लेकिन सवाल है सत्य का, सवाल है सत्य का । आप बन्धुजन चाहे जिस किसी भी गुरु के शिष्य हों हमको लग रहा है कि आप सत्य के लिए ही गुरु के पास गए हैं । ज्ञान के लिए ही किसी गुरु के पास गए होंगे । अब जब गए हैं , ठीक है , आप सब भी गुरुजी से पूछिए आपको लगा कि सत्य है, आपको लगा कि सत्य ही है ।
हम भी जो बोल रहे हैं इसको जरा जाँच कीजिए, जाँच कीजिए और जो इसमें असत्य हो हम तो सुनने को भी तैयार हैं। हम उस असत्य वाले अंश को सुनने के लिए भी तैयार हैं । जानने को भी तैयार हैं । शायद इन्हीं धारणाओं को लेकर के इन्हीं बातों को लेकरके हमने भरे समाज में खुले मंच से आदर-सम्मान के साथ कुर्सी देने का, माइक देने का कोशिश किया । हमारे तरफ से हर बन्धु का आदर-सम्मान है । हमारे तरफ से हर बन्धु का जो शंका-समाधान के लिए आते हैं या अपने बात को बताने के लिए आते हैं या हमारी कोई बात ग़लत लगी हो उसको हमको जनाने के लिए आते हैं उसका सम्मान है। मेरा कहना किसी भी तरह के किसी दुर्भावना के अन्तर्गत नहीं है। ये एक सच्चाई है जो बोल रहे हैं, वह एक सच्चाई है । आप सभी की उत्थान, विकास और कल्याण जिस किसी, जो कोई भी उसका उत्थान-विकास-कल्याण सत्य में ही स्थित है । आप लोग जाँच कीजिए । हमको भी थोड़ा बताने का कष्ट कीजिए ।
अब रही चीजें हम बार-बार कह रहे हैं कि आप इस भौतिक चकाचैंध में न पड़ें । ये भगवान् का खेल है । ये दुनिया जो आप देख रहे हैं बिल्कुल पूर्णतया मायावी है । पूर्णतया मायावी है । मायावी कहने का मतलब पूर्णतः झूठ है । बिल्कुल अस्तित्त्वहीन है । इसलिए हम बार-बार कह रहे हैं कि इस लौकिक जीवन में फँसकर के आप अपने परलोक को बर्बाद न करें । आप अपने पारलौकिक जीवन को बर्बाद न करें । आपका सच्चा जीवन वास्तव में पारलौकिक जीवन ही है । आपका जो सच्चा जीवन है वह पारलौकिक जीवन ही है ! यह एक ऐसा लोवर-पर्त-एक भ्रम फैला दिया कि परलोक शरीर छोड़ने के बाद, मरने के बाद मिलता है । ऐसा नहीं है । मोक्ष शरीर छोड़ने के बाद मिलता है ऐसा नहीं है । परलोक आपको जीते जी जानने को मिलता है । जब परलोकी के जीवन को आप जानेंगे-देखेंगे, जब परलोक के जीवन को आप जानेंगे-देखेंगे निःसन्देह आपको दिखलाई देगा कि उसमें किसी भी प्रकार की कोई विकृति नहीं है । आवश्यकता ही नहीं है विकृति की । आवश्यकता ही नहीं पड़ती है विकृति की और हमारा मतलब है, आप बन्धुजन जब अपने परलोकी जीवन से जुड़ जायेंगे, और जब उसकी प्रधानता में अपने जीवन को प्रवाहित करने लगेंगे, अपने जीवन को ले चलेंगे तो इस लौकिक जीवन में भी झूठ-फरेब-चोरी-बेईमानी की आवश्यकता नहीं रह जाएगी । कोई कमी रह ही नहीं जाएगी । यानी परलोक का जीवन इसलिए नहीं है कि आप मर जाएँ और परलोक में चले जाएँ । परलोक का जीवन इसलिए है कि पहले आप उसको जानिए । अच्छी प्रकार से समझिए, देखिए-परखिए-पहचानिए । मैं कभी किसी से नहीं कहता कि आँख मूँदकर के मान लीजिए । इस्लाम बन्धुओं की तरह से, ईसाई बन्धुओं की तरह से हमारी लाइन यकीन करो, भरोसा रखो । यकीन करो, भरोसा रखो आगे बढ़ो । यानी कोई ध्यान-ज्ञान नहीं, आगे की कोई जानकारी नहीं । न रूह की, न नूर की, न अल्लाहतऽला की, न सेल्फ की, न सोल की, न गाॅड की कोई जानकारी नहीं, जानकारी की आवश्यकता भी नहीं । यकीन करो, भरोसा रखो, आगे बढ़ो । पूर्णतया अंधविश्वास यानी जानने की जरूरत भी कोशिश मत करो । विश्वास रखो, विश्वास करो, भरोसा रखो आगे बढ़ो । ईसामसीह का कहना है विश्वास करो पिता पर, परमपिता पर भरोसा रखो । दरवाजा खटखटाओ व तुझे मिलेगा, देगा। यानी केवल विश्वास करो, भरोसा रखो, आगे बढ़ो ।
हमारे यहाँ हम ऐसा नहीं कह सकते । किस पर विश्वास करें ? किस पर विश्वास करें ? जो विश्वसनीय चीज है वह पहले हमारे सामने हो । वह जो विश्वसनीय चीज है वह हमारे सामने हो, जिसको हम जानें, देखें, परखें और तब हम अपने को डाल दें कि ठीक है हमको विश्वास है, यकीन है, भरोसा हुआ आगे बढ़ रहे हैं । मैं कभी भी आप बन्धुजनों को ये नहीं कह सकता कि आप अंधेरे में कदम रखिए , आप टटोलकर कर चलिए ऐसा नहीं। आप मनुष्य हैं, आप मानव जीवन वाले हैं । आप अनमोल रतन वाले हैं । आपका जीवन वास्तव में अनमोल रतन है। देव दुर्लभ है । देवता लोगों को भी यदि मोक्ष चाहिए न, तो पहले मानव जीवन में आना होगा, बगैर मानव योनि के कोई देवता जो है, कोई भी देववर्ग का मोक्ष नहीं पा सकता । यदि उनको मोक्ष की आवश्यकता होगी न, तो पहले मानव जीवन में आना होगा । ये मानव जीवन देव दुर्लभ योनि है ।
आप लोग ऐसे अनमोल रतन पाकर के , ऐसे अनमोल रतन पाकर के आप बन्धुजन इसे जानने-समझने का प्रयास ही नहीं किए, सोचने-समझने का प्रयास ही नहीं किए । ये जीवन क्या है बस अन्य योनियों की तरह से बहा दिए इसको भोग-व्यसन में। आप बन्धुजन बहा दिए इसे भोग-व्यसन में। रुपया जानने का तो खूब कोशिश किया आप लोगों ने, धन-दौलत जानने-पहचानने की तो खूब कोशिश किया आप लोगों ने, घर-परिवार हित-नात जानने-समझने का तो खूब कोशिश किया आप लोगों ने, लेकिन अपने आप को नहीं, अपने आप को जानने का कोशिश नहीं किया आप बन्धुजनों ने । वास्तव में आपका सच्चा हित कौन है ? आपका वास्तविक कर्तव्य क्या है ? आपकी मंजिल क्या है ? आप लोगों ने जानने का कोशिश नहीं किया । आप स्वाभाविक सोचिए हमको आज तीन दिन आपके बीच बोलते हुए हो गया । तीन दिन बोलते हुए हो गया । बहुत बन्धुओं को थोड़ा तकलीफ भी हो रहा है । हमारे बोलने से बहुत से बन्धुजन ऐसे भी हैं जो कहीं न कहीं किसी न किसी गुरु से चिपके हुए हैं, सटे हुए हैं । उनसे कुछ पाए हुए हैं, उनसे जुड़े हुए हैं । उनको थोड़ा कष्ट जरूर हो रहा है । लेकिन एक बार हर किसी को उनको भी सोचना-समझना चाहिए, उनको भी सोचना-समझना चाहिए। क्या मैं उनके लिए सत्य की बात नहीं कर रहा हूँ ? क्या उनको सत्य की आवश्यकता नहीं है ? क्या उनको ऐसे सत्य की आवश्यकता नहीं है जो सर्वोच्चता लिए हुए हो, जिसमें सम्पूर्णता हो । निःसन्देह उनको भी सत्य की आवश्यकता होनी चाहिए । हर किसी को सत्य की आवश्यकता होनी चाहिए । झूठ-मूठ में अपना विरोधी मान बैठे हैं कि हमारे गुरुजी की निन्दा कर रहे हैं तो हमारा ये कर रहे हैं, वो कर रहे हैं । किस बात की निन्दा ? किस बात की हमने निन्दा किया ? सत्य की जगह पर असत्य को रखकर सत्य मनवाया गया आप बन्धुओं से । यही तो मैं कह रहा हूँ वह सत्य नहीं है । गुरुजनों ने सत्य की जगह पर, परमेश्वर के जगह पर अन्यथा कुछ चीज रखकर के और मनवाने लगा मनवा दिया आप बन्धुजनों से कि बस-बस यही सत्य है और इसी को धारण किए रहो । मैं क्या कह रहा हूँ ? मैं जब कह रहा हूँ कि वह सत्य है तो ये टकराव का विषय-वस्तु थोड़े है, मैं कह रहा हूँ कि वह सत्य है तो आपको सुख होना चाहिए । हम कहीं असत्य में फँसे थे, कोई हमारा भाई-बन्धु आकर के इस असत्य को हमारे इस फसान का सही रूप दे रहा है । इसको भी समझा रहा है और वास्तव में सत्य को भी समझा रहा है ।
जब हम ये कहें कि गायत्री कोई देवी नहीं है तो मन्त्र का विरोध नहीं किए, ये कहे कि वह मन्त्र जो है सही है ¬देव का है, देवी का नहीं । मन्त्र को तो हमने ग़लत नहीं कहा । आपका जो भ्रम-भटकाव था उसमें हमने सुधार किया । आप भी मन्त्र का अर्थ कीजिए, मन्त्र का अर्थ देखिए । मन्त्र का अभीष्ट को जानिए- समझिए-देखिए वह देव का है कि नहीं । ॐ देव का ही है कि नहीं । निःसन्देह आपको तो प्रसन्न होनी चाहिए, आपको तो खुश होना चाहिए कि हम किसी गलत चीज में भरमे-भटके थे, फँसे थे, हमको उसकी सही जानकारी मिल रही है । मान लीजिए कहा गया कि ये आत्मा है । हरदेव ने निरंकारियों बन्धुओं को बताया कि ये आत्मा (दोनों हथेलियों को उठाकर दोनों हथेलियों के बीच के स्थान को दिखाते हुये) है और ये परमात्मा (दोनों हथेलियों के बीच के स्थान बढ़ाकर दिखाते हुये) है । अब हम आप बन्धुजनों से ये जानना चाहते हैं कि क्या है ये जो आत्मा है ? क्या है जो परमात्मा है ? पहले कुछ तो रखिए इस बीच में । आत्मा के जगह पर कुछ तो इस बीच में लाइए । जिसको जाना-देखा जाए और स्वीकार किया जाए । ठीक है भाई ये आत्मा है और ये परमात्मा है । कुछ तो सामने रखिए ।
अब इसमें कौन सी बात ग़लत हो गई। हम इसकी जगह पर मान लीजिए इसको नकार रहे हैं कि इसमें कुछ है ही नहीं। ये नास्तिकता है । आस्तिकता के चोले में, यानी आस्तिकता क्या हो गया मान्यता । इसके चोले में नास्तिकता क्या हो गई -- देख तो कुछ नहीं रहे, मान लिए कि आत्मा का दर्शन हो गया । देख तो कुछ नहीं रहे हैं । मान लिए कि परमात्मा का दर्शन हो गया । मान लिए कि सत्य का दर्शन हो गया । हमारा कहना है कि नहीं, नहीं आप मनुष्य हैं । भगवान् ने आपको बुद्धि विवेक दिया है मान लेने के लिए नहीं जानने के लिए । किसी भी चीज को जानिए-देखिए-समझिए-परखिए-पहचानिए और तब सत्य की कसौटी जो आप हम सभी के सद्ग्रन्थ हैं उससे कसिए । सत्य हो स्वीकार कीजिए क्योंकि आप सभी का उत्थान, आप सभी का कल्याण सत्य में है, सत्य से है, सत्य में है । किसी का भी उत्थान-कल्याण-विकास सत्य से है, सत्य में है मानने में नहीं है ।
एक उदाहरण लीजिए न । एक स्कूल-कालेज में गणित पढ़ रहे थे तो ब्याज निकालना होता था, चाहे मूल-धन निकालना होता था, चाहे मिश्रधन निकालना होता था तो हम लोग क्या करते थे । माना मूलधन 100 रु0 है । माना मूलधन 100 रु0 है तो इसका मतलब ये नहीं कि मूलधन 100 रु0 है । हम एक प्रोसेस प्रारम्भ करने की प्रक्रिया शुरू किए । रिजल्ट नहीं है 100 रु0, रिजल्ट को निकालना है । ये रिजल्ट कि आत्मा है ऐसा नहीं है वह रिजल्ट मानने की चीज नहीं है । कोई पूछे कि साथ में हम आप चल रहे हैं ये कौन है ? हम कहे कि मान लीजिए हमारे भाई है । तो मान लीजिए हमारे भाई हैं, तो हमारे भाई हैं नहीं । हमारे भाई हैं नहीं । मान लीजिए कि ये गुलाब का फूल है। और जब तौलिया कहना है । तो मान लीजिए तौलिया है कहने की क्या जरूरत ? ये तो तौलिया है, तौलिया है । तो मानना हमारा कहना है कि हर मानना सच भी कहीं हो सकता है अपवाद स्वरूप । लेकिन प्रायः झूठ ही होता है । आप मानकर मत चलें । अपने जीवन को मानकर धोखे में मत रखें ।
आप मनुष्य हैं, मानव योनि में है । आपको भगवान् ने बुद्धि दिया है, विवेक दिया है । जिस प्रकार से हर चीज जानने के प्रयास में है आप अपने अस्तित्त्व को भी जानिए । धर्म मानने की वस्तु नहीं है । धर्म एक सच्चा ज्ञान है, सत्य ज्ञान है ।
हम बार-बार आप बन्धुजनों से एक बात बतावें ईमान और सच्चाई के साथ कि धर्म किसी को दुर्भावना नहीं सिखाता । दुर्भावित होने को नहीं सिखाता । धर्म हमेशा आप हम सभी को सद्भावित होने-रहने को सिखाता है, अपनत्त्व सिखाता है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि हम सभी सत्य को छोड़कर के अपनत्त्व को अपनावें । सत्य में रहते हुए जो अपनत्त्व होगा वास्तव में वह अन्तःकरण का होगा, अन्तःकरण से होगा । जब तक आप हम सभी अपने अस्तित्त्व को जानेंगे नहीं, अपने कर्तव्य को जानेंगे नहीं, अपने अस्तित्त्व और कर्तव्य को देखेंगे नहीं, अपने मंजिल को जानेंगे-देखेंगे-परखेंगे-पहचानेंगे नहीं, तब तक हमारे आपके अंदर भावना आ ही नहीं सकती यहाँ और जब सद्भावना हमारे आपके अंदर आयेगी तब जाकर के सच्चा अपनत्त्व खिलेगा । निःसन्देह आप हम सभी एक के ही हैं, एक से ही हैं, एक के ही हैं । आप हम सभी एक से ही हैं एक के ही हैं आवश्यकता है जानकारी की । जब तक अज्ञान है, जब तक भ्रम है तब तक आप हम सभी अलग-अलग हैं । अलग-अलग परिवार के हैं, अलग-अलग वर्ग के हैं अलग-अलग जात के हैं, अलग-अलग सम्प्रदाय के हैं कब तक -- जब तक अज्ञानता है जब तक भ्रम और भूल में हैं । जिस समय आप हम सभी एक सच्चे ज्ञान से गुजरेंगे उस समय दिखलाई देने लगेगा कि हम आप सभी जो है एक ही के हैं । एक से ही हैं, एक से ही हैं । किसी प्रकार का भेद नहीं है । भेद-भ्रम तो आता है भ्रम से, भ्रम है अज्ञानता में । किसी भी प्रकार का हमारे आपके में जो भेद है वह भ्रमवश है और भ्रम है अज्ञानतावश ।
बार-बार हम कहते हैं, हर बैठक में हम कहते हैं कि किसी से भी, किसी एक से भी हमारा बैर विरोधी नहीं है । कोई हमारा विरोधी नहीं है । हमारे आँख में कोई हमको विरोधी दिखाई नहीं देता । अब रही चीजें हम आपको सत्य जनाने मेे लगे हैं कि आप बन्धुजन सत्य को समझें । किसी के गुरु से हमारा कोई व्यक्तिगत झगडा. टकराव टेंशन नहीें है । किसी भी गुरु के शिष्य से हमारा कोई झगड़ा टकराव-टेंशन नहीं है । लेकिन सवाल है सत्य का, सवाल है सत्य का । आप बन्धुजन चाहे जिस किसी भी गुरु के शिष्य हों हमको लग रहा है कि आप सत्य के लिए ही गुरु के पास गए हैं । ज्ञान के लिए ही किसी गुरु के पास गए होंगे । अब जब गए हैं , ठीक है , आप सब भी गुरुजी से पूछिए आपको लगा कि सत्य है, आपको लगा कि सत्य ही है ।
हम भी जो बोल रहे हैं इसको जरा जाँच कीजिए, जाँच कीजिए और जो इसमें असत्य हो हम तो सुनने को भी तैयार हैं। हम उस असत्य वाले अंश को सुनने के लिए भी तैयार हैं । जानने को भी तैयार हैं । शायद इन्हीं धारणाओं को लेकर के इन्हीं बातों को लेकरके हमने भरे समाज में खुले मंच से आदर-सम्मान के साथ कुर्सी देने का, माइक देने का कोशिश किया । हमारे तरफ से हर बन्धु का आदर-सम्मान है । हमारे तरफ से हर बन्धु का जो शंका-समाधान के लिए आते हैं या अपने बात को बताने के लिए आते हैं या हमारी कोई बात ग़लत लगी हो उसको हमको जनाने के लिए आते हैं उसका सम्मान है। मेरा कहना किसी भी तरह के किसी दुर्भावना के अन्तर्गत नहीं है। ये एक सच्चाई है जो बोल रहे हैं, वह एक सच्चाई है । आप सभी की उत्थान, विकास और कल्याण जिस किसी, जो कोई भी उसका उत्थान-विकास-कल्याण सत्य में ही स्थित है । आप लोग जाँच कीजिए । हमको भी थोड़ा बताने का कष्ट कीजिए ।
अब रही चीजें हम बार-बार कह रहे हैं कि आप इस भौतिक चकाचैंध में न पड़ें । ये भगवान् का खेल है । ये दुनिया जो आप देख रहे हैं बिल्कुल पूर्णतया मायावी है । पूर्णतया मायावी है । मायावी कहने का मतलब पूर्णतः झूठ है । बिल्कुल अस्तित्त्वहीन है । इसलिए हम बार-बार कह रहे हैं कि इस लौकिक जीवन में फँसकर के आप अपने परलोक को बर्बाद न करें । आप अपने पारलौकिक जीवन को बर्बाद न करें । आपका सच्चा जीवन वास्तव में पारलौकिक जीवन ही है । आपका जो सच्चा जीवन है वह पारलौकिक जीवन ही है ! यह एक ऐसा लोवर-पर्त-एक भ्रम फैला दिया कि परलोक शरीर छोड़ने के बाद, मरने के बाद मिलता है । ऐसा नहीं है । मोक्ष शरीर छोड़ने के बाद मिलता है ऐसा नहीं है । परलोक आपको जीते जी जानने को मिलता है । जब परलोकी के जीवन को आप जानेंगे-देखेंगे, जब परलोक के जीवन को आप जानेंगे-देखेंगे निःसन्देह आपको दिखलाई देगा कि उसमें किसी भी प्रकार की कोई विकृति नहीं है । आवश्यकता ही नहीं है विकृति की । आवश्यकता ही नहीं पड़ती है विकृति की और हमारा मतलब है, आप बन्धुजन जब अपने परलोकी जीवन से जुड़ जायेंगे, और जब उसकी प्रधानता में अपने जीवन को प्रवाहित करने लगेंगे, अपने जीवन को ले चलेंगे तो इस लौकिक जीवन में भी झूठ-फरेब-चोरी-बेईमानी की आवश्यकता नहीं रह जाएगी । कोई कमी रह ही नहीं जाएगी । यानी परलोक का जीवन इसलिए नहीं है कि आप मर जाएँ और परलोक में चले जाएँ । परलोक का जीवन इसलिए है कि पहले आप उसको जानिए । अच्छी प्रकार से समझिए, देखिए-परखिए-पहचानिए । मैं कभी किसी से नहीं कहता कि आँख मूँदकर के मान लीजिए । इस्लाम बन्धुओं की तरह से, ईसाई बन्धुओं की तरह से हमारी लाइन यकीन करो, भरोसा रखो । यकीन करो, भरोसा रखो आगे बढ़ो । यानी कोई ध्यान-ज्ञान नहीं, आगे की कोई जानकारी नहीं । न रूह की, न नूर की, न अल्लाहतऽला की, न सेल्फ की, न सोल की, न गाॅड की कोई जानकारी नहीं, जानकारी की आवश्यकता भी नहीं । यकीन करो, भरोसा रखो, आगे बढ़ो । पूर्णतया अंधविश्वास यानी जानने की जरूरत भी कोशिश मत करो । विश्वास रखो, विश्वास करो, भरोसा रखो आगे बढ़ो । ईसामसीह का कहना है विश्वास करो पिता पर, परमपिता पर भरोसा रखो । दरवाजा खटखटाओ व तुझे मिलेगा, देगा। यानी केवल विश्वास करो, भरोसा रखो, आगे बढ़ो ।
हमारे यहाँ हम ऐसा नहीं कह सकते । किस पर विश्वास करें ? किस पर विश्वास करें ? जो विश्वसनीय चीज है वह पहले हमारे सामने हो । वह जो विश्वसनीय चीज है वह हमारे सामने हो, जिसको हम जानें, देखें, परखें और तब हम अपने को डाल दें कि ठीक है हमको विश्वास है, यकीन है, भरोसा हुआ आगे बढ़ रहे हैं । मैं कभी भी आप बन्धुजनों को ये नहीं कह सकता कि आप अंधेरे में कदम रखिए , आप टटोलकर कर चलिए ऐसा नहीं। आप मनुष्य हैं, आप मानव जीवन वाले हैं । आप अनमोल रतन वाले हैं । आपका जीवन वास्तव में अनमोल रतन है। देव दुर्लभ है । देवता लोगों को भी यदि मोक्ष चाहिए न, तो पहले मानव जीवन में आना होगा, बगैर मानव योनि के कोई देवता जो है, कोई भी देववर्ग का मोक्ष नहीं पा सकता । यदि उनको मोक्ष की आवश्यकता होगी न, तो पहले मानव जीवन में आना होगा । ये मानव जीवन देव दुर्लभ योनि है ।
आप लोग ऐसे अनमोल रतन पाकर के , ऐसे अनमोल रतन पाकर के आप बन्धुजन इसे जानने-समझने का प्रयास ही नहीं किए, सोचने-समझने का प्रयास ही नहीं किए । ये जीवन क्या है बस अन्य योनियों की तरह से बहा दिए इसको भोग-व्यसन में। आप बन्धुजन बहा दिए इसे भोग-व्यसन में। रुपया जानने का तो खूब कोशिश किया आप लोगों ने, धन-दौलत जानने-पहचानने की तो खूब कोशिश किया आप लोगों ने, घर-परिवार हित-नात जानने-समझने का तो खूब कोशिश किया आप लोगों ने, लेकिन अपने आप को नहीं, अपने आप को जानने का कोशिश नहीं किया आप बन्धुजनों ने । वास्तव में आपका सच्चा हित कौन है ? आपका वास्तविक कर्तव्य क्या है ? आपकी मंजिल क्या है ? आप लोगों ने जानने का कोशिश नहीं किया । आप स्वाभाविक सोचिए हमको आज तीन दिन आपके बीच बोलते हुए हो गया । तीन दिन बोलते हुए हो गया । बहुत बन्धुओं को थोड़ा तकलीफ भी हो रहा है । हमारे बोलने से बहुत से बन्धुजन ऐसे भी हैं जो कहीं न कहीं किसी न किसी गुरु से चिपके हुए हैं, सटे हुए हैं । उनसे कुछ पाए हुए हैं, उनसे जुड़े हुए हैं । उनको थोड़ा कष्ट जरूर हो रहा है । लेकिन एक बार हर किसी को उनको भी सोचना-समझना चाहिए, उनको भी सोचना-समझना चाहिए। क्या मैं उनके लिए सत्य की बात नहीं कर रहा हूँ ? क्या उनको सत्य की आवश्यकता नहीं है ? क्या उनको ऐसे सत्य की आवश्यकता नहीं है जो सर्वोच्चता लिए हुए हो, जिसमें सम्पूर्णता हो । निःसन्देह उनको भी सत्य की आवश्यकता होनी चाहिए । हर किसी को सत्य की आवश्यकता होनी चाहिए । झूठ-मूठ में अपना विरोधी मान बैठे हैं कि हमारे गुरुजी की निन्दा कर रहे हैं तो हमारा ये कर रहे हैं, वो कर रहे हैं । किस बात की निन्दा ? किस बात की हमने निन्दा किया ? सत्य की जगह पर असत्य को रखकर सत्य मनवाया गया आप बन्धुओं से । यही तो मैं कह रहा हूँ वह सत्य नहीं है । गुरुजनों ने सत्य की जगह पर, परमेश्वर के जगह पर अन्यथा कुछ चीज रखकर के और मनवाने लगा मनवा दिया आप बन्धुजनों से कि बस-बस यही सत्य है और इसी को धारण किए रहो । मैं क्या कह रहा हूँ ? मैं जब कह रहा हूँ कि वह सत्य है तो ये टकराव का विषय-वस्तु थोड़े है, मैं कह रहा हूँ कि वह सत्य है तो आपको सुख होना चाहिए । हम कहीं असत्य में फँसे थे, कोई हमारा भाई-बन्धु आकर के इस असत्य को हमारे इस फसान का सही रूप दे रहा है । इसको भी समझा रहा है और वास्तव में सत्य को भी समझा रहा है ।
जब हम ये कहें कि गायत्री कोई देवी नहीं है तो मन्त्र का विरोध नहीं किए, ये कहे कि वह मन्त्र जो है सही है ¬देव का है, देवी का नहीं । मन्त्र को तो हमने ग़लत नहीं कहा । आपका जो भ्रम-भटकाव था उसमें हमने सुधार किया । आप भी मन्त्र का अर्थ कीजिए, मन्त्र का अर्थ देखिए । मन्त्र का अभीष्ट को जानिए- समझिए-देखिए वह देव का है कि नहीं । ॐ देव का ही है कि नहीं । निःसन्देह आपको तो प्रसन्न होनी चाहिए, आपको तो खुश होना चाहिए कि हम किसी गलत चीज में भरमे-भटके थे, फँसे थे, हमको उसकी सही जानकारी मिल रही है । मान लीजिए कहा गया कि ये आत्मा है । हरदेव ने निरंकारियों बन्धुओं को बताया कि ये आत्मा (दोनों हथेलियों को उठाकर दोनों हथेलियों के बीच के स्थान को दिखाते हुये) है और ये परमात्मा (दोनों हथेलियों के बीच के स्थान बढ़ाकर दिखाते हुये) है । अब हम आप बन्धुजनों से ये जानना चाहते हैं कि क्या है ये जो आत्मा है ? क्या है जो परमात्मा है ? पहले कुछ तो रखिए इस बीच में । आत्मा के जगह पर कुछ तो इस बीच में लाइए । जिसको जाना-देखा जाए और स्वीकार किया जाए । ठीक है भाई ये आत्मा है और ये परमात्मा है । कुछ तो सामने रखिए ।
अब इसमें कौन सी बात ग़लत हो गई। हम इसकी जगह पर मान लीजिए इसको नकार रहे हैं कि इसमें कुछ है ही नहीं। ये नास्तिकता है । आस्तिकता के चोले में, यानी आस्तिकता क्या हो गया मान्यता । इसके चोले में नास्तिकता क्या हो गई -- देख तो कुछ नहीं रहे, मान लिए कि आत्मा का दर्शन हो गया । देख तो कुछ नहीं रहे हैं । मान लिए कि परमात्मा का दर्शन हो गया । मान लिए कि सत्य का दर्शन हो गया । हमारा कहना है कि नहीं, नहीं आप मनुष्य हैं । भगवान् ने आपको बुद्धि विवेक दिया है मान लेने के लिए नहीं जानने के लिए । किसी भी चीज को जानिए-देखिए-समझिए-परखिए-पहचानिए और तब सत्य की कसौटी जो आप हम सभी के सद्ग्रन्थ हैं उससे कसिए । सत्य हो स्वीकार कीजिए क्योंकि आप सभी का उत्थान, आप सभी का कल्याण सत्य में है, सत्य से है, सत्य में है । किसी का भी उत्थान-कल्याण-विकास सत्य से है, सत्य में है मानने में नहीं है ।
एक उदाहरण लीजिए न । एक स्कूल-कालेज में गणित पढ़ रहे थे तो ब्याज निकालना होता था, चाहे मूल-धन निकालना होता था, चाहे मिश्रधन निकालना होता था तो हम लोग क्या करते थे । माना मूलधन 100 रु0 है । माना मूलधन 100 रु0 है तो इसका मतलब ये नहीं कि मूलधन 100 रु0 है । हम एक प्रोसेस प्रारम्भ करने की प्रक्रिया शुरू किए । रिजल्ट नहीं है 100 रु0, रिजल्ट को निकालना है । ये रिजल्ट कि आत्मा है ऐसा नहीं है वह रिजल्ट मानने की चीज नहीं है । कोई पूछे कि साथ में हम आप चल रहे हैं ये कौन है ? हम कहे कि मान लीजिए हमारे भाई है । तो मान लीजिए हमारे भाई हैं, तो हमारे भाई हैं नहीं । हमारे भाई हैं नहीं । मान लीजिए कि ये गुलाब का फूल है। और जब तौलिया कहना है । तो मान लीजिए तौलिया है कहने की क्या जरूरत ? ये तो तौलिया है, तौलिया है । तो मानना हमारा कहना है कि हर मानना सच भी कहीं हो सकता है अपवाद स्वरूप । लेकिन प्रायः झूठ ही होता है । आप मानकर मत चलें । अपने जीवन को मानकर धोखे में मत रखें ।
आप मनुष्य हैं, मानव योनि में है । आपको भगवान् ने बुद्धि दिया है, विवेक दिया है । जिस प्रकार से हर चीज जानने के प्रयास में है आप अपने अस्तित्त्व को भी जानिए । धर्म मानने की वस्तु नहीं है । धर्म एक सच्चा ज्ञान है, सत्य ज्ञान है ।
संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस