ज्ञानी का जीवन-अमरत्त्व की यात्रा अज्ञानी का जीवन-मौत की प्रतीक्षा

ज्ञानी का जीवन-अमरत्त्व की यात्रा
अज्ञानी का जीवन-मौत की प्रतीक्षा
          सद्भावी बन्धुओं आप लोग तो पढ़े-लिखे हैं । पुरुषार्थ तो पढ़े  होंगे । ये मैं ही थोड़े रच रहा हूँ, बना रहा हूँ । पुरुषार्थ क्या कहलाता है यानी पुरुष होने का अर्थ । पुरुष माने यहाँ स्त्री-पुरुष अलग-अलग नहीं, इस पुरुष शब्द में महिला भी है । मेल भी है, फिमेल भी है । स्त्री भी है, पुरुष भी है; लड़की भी है, लड़का भी है । इस पुरुष का माने मानव योनि । इस पुरुष का मतलब स्त्री अलग नहीं, इस पुरुष शब्द में स्त्री समाहित है । तो पुरुष होने का, मनुष्य होने का अर्थ क्या है ? धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष -- ये चारो आपके साथ हांे, ये चारों से युक्त आप हो, तब पुरुष होने का, मनुष्य होने का आप का सफल जीवन कहलाएगा ।
        पारिवारिक पैसा वाला और पारिवारिक होने का मतलब है-- धर्म और मोक्ष ये दो पहले ही माइनस हो गया । पारिवारिक होने का मतलब है कि नीचे धर्म आधार धर्म और मंजिल मोक्ष ये दोनों आपसे पहले ही अलग हट गया । ये दोनों हट गया । शेष बच गया ये बीच वाला अर्थ और  काम । बीच में दो बचा अर्थ और काम । यहाँ पर भी अंतर हो गया । अर्थ की व्यवस्था परमेश्वर वालों के लिए है, माया वालों के लिए नहीं । अर्थ की व्यवस्था धर्म और मोक्ष वालों के लिए है, कर्म और भोग वालों के लिए, कर्म और भोग वालों के लिए माया के पास एक ही चीज है काम । यानी परिवार में पारिवारिक जीवन जीने वाले जो हैं उनके पास केवल एक चीज है काम, कामनायें बस । यानी माया में जो जीवन जीयेंगे उनके पास केवल एक चीज है कामनायें, काम । एक तिनका भी नहीं, एक दाना भी नहीं अर्थ के नाम पर । एक पैसा भी नहीं, माया आपके लिये एक पैसा भी नियत नहीं की है । एक तिनका भी नियत नहीं की है । करिये तो खाइये । करिये तो पाइये । करेंगे नहीं तो मिलेगा नहीं । जो आपकी कामना उत्पन्न हो रही है, मुझे बढि़या भोजन मिलता, तो मेहनत करिए, ये मुझे मकान बनाना है, थोड़ा और श्रम बढ़ाइए । भोग काटिए, श्रम करिए । श्रम बढ़ाइए, बचत हो, भोग घटाइए श्रम बढ़ाइए । बचत शुरू कीजिए मकान भी बन जाएगा । लेकिन आपको श्रम बढ़ाना होगा, भोग घटाना होगा, तब अर्थ आपके पास बचेगा क्योंकि अर्थ आपके लिए व्यवस्थित है ही नहीं । यदि पहले से अर्थ माया दे दे तो आप करबे नहीं करेंगे । आप निकम्मा हो जाएँगे । आप निष्क्रिय हो जायेंगे । आलसी हो जाएँगे । आप प्रमादी हो जाएँगे । इसलिए माया अर्थ की व्यवस्था पहले नहीं करती । कामनायें दे दी । एक पूरा करती है तो दूसरी प्रकट । दूसरी करके पूरा करते हो तो तीसरी प्रकट, तीसरी पूरा करते हो, तो चैथी प्रकट । कामनाओं की पूर्ति करते-करते शरीर ही छूट जायेगी । कामनायें पूर्ति नहीं हो पाती हैं। कामनायें पूरित हो जाए तो माया किसके द्वारा नचाएगी । ये बार-बार जन्म-मृत्यु कैसे होगा? जन्मना और मरना ही खतम हो जाएगा । ये कामना ही तो ऐसी डोर है जिसके चलते, जिसके द्वारा माया आपको नचाती रहती है, नचाती रहती है । एक जन्म से दूसरे जन्म, दूसरे से तीसरे योनि में, तीसरे से चैथे योनि में ये नचाती रहती है केवल कामना के चलते ।

       परमेश्वर के यहाँ ऐसा नहीं है । परमेश्वर किसी को निष्क्रिय रहने नहीं दे सकता । परमेश्वर न निष्क्रिय होता है और न किसी निष्क्रिय को बर्दास्त कर सकता है । परमेश्वर किसी आलसी को बर्दास्त नहीं कर सकता । परमेश्वर किसी प्रमादी को बर्दास्त नहीं कर सकता । परमेश्वर के सामने जड़ पड़ जाए तो भी सक्रिय हो जाए ।
                                        ‘मूकं करोति वाचालं पंगु लङ्घ्यते गिरिं ।’
         गूंगे को वक्ता बना देता है । यदि आपको बोलने का ढंग नहीं है, आप बेवकूफ हैं, आप मूढ़ हैं, ज्ञान से युक्त हो जाइए । देखिए युनिवर्सिटी के प्रोफेसर जी लोगों के सामने बोलने लगते हैं, वे मुँह लटकाते हैं कि नहीं ? ज्ञान से युक्त निशानदेह अंगूठाटेक भी होगा न, तो धरती के किसी प्रोफेसर वाइस चांसलर की हिम्मत नहीं है कि उससे बात कर ले ।
      ज्ञानी से धरती का कोई विद्वान्, कोई गुरुजी, कोई सन्त-महात्मा लोग बात कर ले उससे, बात कर ले उससे, तो हमको जो चाहिए दण्ड दे लीजिए । देवलोक तक में कोई उससे बात करने वाला नहीं मिलेगा । ज्ञान उस विधान का नाम है । मात्र 13-14 दिन की पढ़ाई, मात्र 13-14 दिन की पढ़ाई और सर्वज्ञता से युक्त बनाने लगती है, सर्वोच्चता प्रदान करती है । ये आपका वास्तविक ‘विद्यातत्त्वम्’ कहलाता है । ये आपका तत्त्वज्ञान कहलाता है, गुमानी नहीं बनाता, अहंकारी नहीं बनाता, अभिमानी नहीं बनाता । सर्वज्ञता से युक्त करता है, सम्पूर्णत्त्व से युक्त करता है, सर्वोच्चता दिलाता  है ।
        आप लोगों को ऐसे ज्ञान की जरूरत नहीं थी, इसी तत्त्वज्ञान के लिए मानव जीवन मिला । मानव जीवन को पहले तत्त्वज्ञान से युक्त करिए और तब इस संसार में कदम रखिए । यदि वास्तव में इस संसार का वास्तविक लाभ लेना है, तो पहले अपने जीवन को तत्त्वज्ञान से युक्त कीजिए । ईमान से, ईमान से तत्त्वज्ञान के आधार पर तत्त्वज्ञान के अनुसार अपने जीवन को ले चलिए । फिर क्या है ? फिर दिखाई देगा, न कुछ जानने को शेष, न कुछ पाने को शेष । न ऊपर उठने का जगह; सर्वोच्चता के जगह पर तो तत्त्वज्ञान पहले ही पहुँचा देता है । सम्पूर्णता तो ज्ञान पहले ही दे दिला देता है । आपकी स्थिति उसको बनाए रखने की होती है। जो सर्वोच्चता प्राप्त होता है, उस सर्वोच्चता-सम्पूर्णता के स्थिति को बनाए रखना अपने को गिरने से बचाए रखना, इतना ही आपका कत्र्तव्य है इसी के लिए भक्ति-सेवा बना । इसी के लिए भक्ति-सेवा बना । भक्ति-सेवा का और कोई प्रयोजन नहीं है । जो ज्ञान में प्राप्त होता है । वह वैसा ही बना रह जाए, माया के दुष्प्रभाव में शैतान के दुष्पे्ररण के चलते आप गिर न सकें । जो मिला है उससे बिछुड़ न सकें । इतना ही भर के लिए समर्पित-शरणागत भक्ति की आवश्यकता पड़ी है कि भगवान् के शरण में रहेंगे तो आपकी रक्षा-व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी भगवान् लिए रहेगा ।
संसार में इतनी कामनायें, इतनी कामनायें आपके, आपके श्रीमती जी के, आपके लड़के-बच्चों में इतनी कामनायें भरी हंै कि आप चाहे जितना भी श्रम-परिश्रम करेंगे कामनायें पूरित हो ही नहीं सकतीं । आप चाहे जितना श्रम-परिश्रम कीजिए कामनायें पूरित हो ही नहीं सकतीं । इसलिए कामना ही की पूर्ति नहीं हो पाती है और उसी के गुलाम आप बने रह जाएँगे, जिंदगी ही समाप्त हो जाएगी । जिंदगी ही समाप्त हो जाएगी । परमेश्वर क्या करता है उठाकर के आपको धर्म में बैठा दिया, धर्म में बैठा दिया । धर्म माने धर्म कोई लंगोटी का नाम थोड़े है । धर्म माने कोई केश या तिलक-चंदन, दाढ़ी बढ़ा लीजिए, केश बढ़ा लीजिए, तिलक-चंदन लगा लीजिए, लंगोटी पहन लीजिए इसका नाम धर्म थोड़े  है । कहीं धर्म की परिभाषा में यह नहीं है । धर्म आपको समृद्ध बनाता है, सम्पन्न बनाता है । धर्म माने सत्य का विधान । धर्म माने सत्य का वास्तविक विधान, सत्य प्रधान जीवन । ईमान से संयमपूर्वक, ईमान से सत्य को अपनाना, सत्य पर अपने को बनाये रखना इसी का तो नाम धर्म है । संयमपूर्वक ईमान से सत्य को अपनाना, सत्य पर बने रहना, यही धर्म है । इसका लाभ क्या है ? यदि ऐसा जीवन जीना शुरू करेंगे, यदि ऐसा जीवन आप शुरू करते हैं संयम और ईमान से, ईमान, संयम से सत्य को अपना कर सत्य पर रहना-चलना शुरू करेंगे तो परिणाम क्या होगा ? मोक्ष आपका रिजर्व हो जायेगा । जो मोक्ष है अमरलोक की यात्रा मोक्ष कहलाता है ।
        जीवन आप भी जी रहे हैं । जीवन हम लोग भी जी रहे हैं । जीवन आप लोग भी जी रहे हैं, जीवन हम ज्ञानीजन भी जी रहे हैं । दोनों में अंतर क्या है ? आप अभी कर्म-भोग में हैं । जवानी है पता नहीं चल रहा है, आप की अभी कर्म भोग में जवानी है, विषयों की, व्यसन की उत्तेजना तेज है । अभी कुछ पता नहीं चल रहा  है । जब तीसरापन गुजरने लगेगा, जब पैंसठ-सत्तर में आ जायेंगे, जब साठ-पैंसठ-सत्तर में आ जायेंगे, तब क्या बचेगा ? मौत की प्रतीक्षा । क्या बचेगा ? मौत की प्रतीक्षा । आप लोगों का जीवन क्या है, ये वृद्ध लोगों से पूछिए । वृद्ध माता-पिता, दादा-दादी से पूछिए । उनका जीवन क्या रह गया है । मौत की प्रतीक्षा और कुछ  नहीं । ज्ञानी का जीवन क्या है--- अमरत्त्व की यात्रा । ज्ञानीजनों का जीवन क्या है अमरत्त्व की यात्रा । अज्ञानी जन गृहस्थों का जीवन है, मौत की प्रतीक्षा । ज्ञानीजन का जीवन है अमरत्त्व की यात्रा । ज्ञानीजन की शरीर मनमाना नहीं छूटती है यमराज घसीटकर नहीं ले जाएगा । ज्ञानी जब चाहेगा तभी शरीर छूटेगी । ज्ञानी शरीर छूटने से पहले परमेश्वर के तरफ से उसके अंदर उत्प्रेरण होगा, वह चाहेगा तभी शरीर छूटेगा । ज्ञानी ने यदि थोड़ा सा ईमान-संयम अपना लिया, ईमान-संयम पर बने रह गया । तो यमदूत क्या यमराज नहीं आएँगे । जब ज्ञानी शरीर छोड़कर जाएगा न, तो यमराज के यहाँ अलग तोरण-द्वार लगा रहेगा । इन्द्र के यहाँ अलग तोरण-द्वार लगा रहेगा । ब्रह्मा के यहाँ अलग तोरण-द्वार लगा रहेगा । शंकर के यहाँ अलग तोरण-द्वार लगा रहेगा । सब लोगों के यहाँ अलग तोरण-द्वार रहेगा । सब लोग अगवानी करने के लिए, सब लोग अगवानी करने के लिए, मिलन-जुलन करने के लिए कि भगवद् कृपा पात्र है, ये विष्णु पार्षद जा रहा है, ये भगवान् का सच्चा सेवक जा रहा है । भगवान् का भक्त जा रहा है । सब अगवानी करेंगे । कैसे ? उदाहरण ले लीजिए । जब आप सामान्य नागरिक हैं, मास्टर साहब जी हैं, लेक्चरर साहब जी हैं, क्लर्क साहब जी हैं  तो साधारण छोटे-छोटे से छोटे अधिकारी भी रोब में रहता है । आपको नमस्ते बीडियो साहब, नमस्ते बीडियो साहब, तहसीलदार साहब नमस्ते । एस0ओ0 साहब प्रणाम नमस्ते । नमस्ते एस0ओ0 साहब । आप खुश रहते हैं, आपको भी लगता है कि वे खुश हैं। लेकिन यही आप पर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की दया आप पर हो गयी और कहीं वे बुलाकर के मंत्री बना दिए, कहीं वे मंत्री बना दिए । फिर तो यही गाँव-गाँव, जब मंत्री जी का कार्यक्रम लगेगा कि हमको फलां जगह जाना है तो जौंन गाँव बिल्कुल अपरिचित था, वह भी अपने गाँव में तोरण-द्वार लगाने लगता है । नहीं लगाने लगता है ? जगह-जगह तोरण-द्वार लगने लगता है । अभी मंत्री जी का कार्यक्रम बने तो इन सड़कों पर जगह-जगह तोरण-द्वार दिखाई देने लगंेगे । नहीं दिखाई देने लगेंगे ? तोरण-द्वार समझ रहे हैं न, स्वागत-द्वार जो बनाते है लोग। स्वागत-द्वार जो बनाते हैं उसी को तोरण-द्वार भी कहते हैं । तो स्वागत-द्वार नहीं बनने लगता है मंत्री जी लोगों के लिए ? और मंत्री जी उतरे, थोड़ा सा स्वागत हँस-बोल दिए, जिनके तरफ देखकर के, कहिए भइया क्या हाल-समाचार है ? अब वो बड़ा फूल गए । अब तो सचमुच बड़े आदमी हो गए। मंत्री जी उनसे हाल-समाचार पूछ रहे थे । अरे भइया ! मंत्री जी का सम्पर्क है । साहब जी भी लगेंगे आकर के सिफारिश करने । अरे भइया ! मंत्री जी से हमारा ये कमवा करा दीजिए न । आदमी तो वही हैं न, मास्टर साहब जी, लेक्चरर साहब जी, मंत्री हो गया तो सारे साहब जी लोग नमस्ते-बंदगी करने लगे । ऐ सर, प्रणाम सर, सलूट ..  . एकदम सैलूट देने लगे । सैलूट मारने लगे । प्रणाम सर, प्रणाम सर कहने लगे । वही अधिकारी लोग । कौन ! वही एस0पी0 साहब, वही कलेक्टर साहब, कमिश्नर साहब, डी0आई0जी0 साहब ।
        बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय ! तो ये जो ज्ञान का विधान है कोई कर्म-क्रिया वाला नहीं है । ये कृपा वाला है, परमेश्वर वाला है । जो ज्ञान प्राप्त कर, ज्ञान प्राप्त करते ही जैसे सरकारी नौकरी मिला । आप चोर बेईमान नहीं हैं , आपके नियत में कोई गड़बड़ी नहीं है तो सरकारी नौकरी मिलते ही आपको एक संतुष्टि मिलेगी कि हमारे बुढ़ौती का आधार पेंशन मिलेगा । हो जाता है कि नहीं ? सरकारी सर्विस पाने वाले को एक अलग से संतुष्टि शांति मिलती है कि हमारे बुढ़ापा का सहारा पेंशन मिलेगा । बुढ़ापा का सहारा पेंशन मिलेगा । वैसे ही जैसे पेंशन है । ऐसे ही धर्म में रहने वाले को मोक्ष, मुक्ति और अमरत्त्व रिजर्व हो जाता है पेंशन के रूप में। जीव को मोक्ष, जीवन को यश-कीर्ति और रोटी-कपड़ा- मकान-साधन और सम्मान ये तो ज्ञानीजनों के पीछे अपना भाग्य मना कर रहती है पीछे फिरती-फिरती । रहती है पीछे-पीछे फिरती-फिरती । परमेश्वर अपने लोगों से रोटी-कपड़ा-मकान के लिए कोई भी कार्य नहीं कराता । परमेश्वर अपने जन से रोटी-कपड़ा के लिए कोई नौकरी करावे ऐसा नहीं करता । काहे लिए ? पहले तो कामना उठाकर पीछे ढकेल दिया। धर्म में बैठे, मोक्ष रिजर्व। धर्म में बैठे मोक्ष पेंशन की तरह रिजर्व । बीच में जो जीवन है, जो जीवन है, कामनाओं से युक्त । तो परमेश्वर क्या करता है ? कामनाओं को ढकेल कर पीछे कर दिया, चल पीछे हट । आगे कर दिया अर्थ। आगे कर दिया अर्थ । अर्थ जब भरा-पूरा बना रहेगा, तो चिंतन क्या बनेगा ? मान लीजिये कामना पीछे है, यदि आगे भटक कर कहीं आ ही गई, तो जब अर्थ की व्यवस्था पहले से रहेगी, तो कामना क्या बिगाड़ लेगी । जब अर्थ की व्यवस्था पहले से रहेगा ही, तो कामना क्या बिगाड़ लेगी । परमेश्वर के यहाँ रहने वाला यदि रोटी-कपड़ा सोचने लगे, रुपया-पैसा सोचने लगे तो यह उसका अपराध है। परमेश्वर के शरण मंे रहने वाला रोटी-कपड़ा सोचने लगे, रुपया-पैसा सोचने लगे तो ये तो उसका अपराध है ।
     आप पता कीजिए इस आश्रम में, इस संस्था में रहने वालों से । आप इस संस्था में रहने वालों से एक बार पूछिए जो 10-20 वर्ष के लोग हैं, 25 वर्ष में लोग हैं तो उनको कभी रोटी-कपड़ा-मकान सोचने का मौका लगा है । उनको अपने लिए कभी रुपया-पैसा सोचने का भी मौका मिलता है । ऐसा मौका मिला है उनको, ये भी कोई सोचने की चीज है । ये भी कोई रुपया-पैसा भी कोई सोचने की चीज   है । रोटी-कपड़ा-मकान भी कोई सोचने की चीज है । ये तो मिलेगा ही मिलेगा ।  इसके लिए क्या सोचना-करना है । सोचना है तो जीव का मोक्ष सोच कि तेरा जीव मोक्ष में रिजर्व है कि नहीं ? इसको सोचो देखो सोचना है तो जीवन को यश-कीर्ति से जोड़ देख तेरा जीवन यश-कीर्ति से जुड़ा है कि नहीं ? सोचना ही है तो जीव का उद्धार सोच, जन-कल्याण सोच, समाज का सुधार सोच, जीव का उद्धार सोच । कैसे करेगा ? ये रुपया-पैसा भी कोई सोचने का विषय है । रुपया-पैसा भी कोई सोचने का विषय है । काहे नहीं इस संस्था में रहने वाला कौनो ? मैं बिल्कुल उन्मुक्तता दे रहा हूँ कोई भी इस संस्था में रहने वाला बता दे कि उसको रुपया-पैसा सोचने का अपने लिए मौका दिया गया है । उसको रोटी-कपड़ा सोचने के लिए मौका दिया है । वह सारी जिम्मेदारी तो परमेश्वर स्वयं वहन करता है ।
        उसको तो बस यही सोचना-देखना है । जीव को मोक्ष मिला कि नहीं ? है कि नहीं वह मोक्ष में ? जीवन को यश-कीर्ति। जो जीवन में कर-करा रहा है कि वह देखे रोटी-कपड़ा पैसा के लिए कर रहा है या यश-कीर्ति के लिए कर रहा है । अपने यश-कीर्ति के लिए कर रहा है । जन-कल्याण के लिए कर रहा है कि नहीं ? जन-कल्याण के लिए कर रहा है कि नहीं ? अपने यश-कीर्ति के लिए कर रहा है कि नहीं ? क्या उससे पैसा मागा जा रहा है ? क्या उससे रोटी-कपड़ा-मकान का धन्धा कराया जा रहा है, एक नहीं बोलेगा, एक । ऐसा मौका ही नहीं दिया गया है, वो बोलेगा क्या ? ऐसा मौका ही नहीं दिया गया है वो बोलेगा क्या ? पूछिए आप लोग किसी से जो इसमें रह-चल रहा है । पूछिए आप लोग किसी से । आप लोगों का भी जीवन मैं चाहता हूँ कि ऐसा ही हो जाए । ऐसा ही आप जीवन जीने लगे । फिर रोटी-कपड़ा-मकान सोचने का विषय न रह जाए । रुपया-पैसा सोचने का विषय न रह जाए । यदि सोचना है तो जन-कल्याण सोचा जाए । यदि सोचना है तो अपने जीव का मोक्ष सोचा जाए । जीवन को यश-कीर्ति से जोड़ा जाए । जीवन को यश-कीर्ति से जोड़ा जाए । ये रोटी-कपड़ा-मकान ये पाप-कुकर्म, झूठ-फरेब, बुराई-विकृति, दोष-दुर्गुण इसकी भी जरूरत मानव जीवन को ? क्या कहूँ ऐसे मानव जीवन को ? पुरुषार्थ जब सत्य के क्षेत्र में जाएँगे तो ये चारों आपको मिलता हुआ दिखाई देगा । धर्म में स्थिति, मोक्ष सुरक्षित, रिजर्व, रिजर्व पेंशन जैसे और बीच में कामनायें आपके पास है, उसके पूर्ति के लिए उसके पहले अर्थ । कामना कोई उत्पन्न हो उसके पहले ही अर्थ । यानी व्यवस्था । क्या बिगाड़ लेगी कामना। जब हमको भूख लगने से पहले भोजन ही हमारे सामने आ जाए, चाय पीने की इच्छा के पहले चाय ही आ जाए। हमको कुर्ता खरीदना है, हमारे पाकिट में पैसे आ जाए हजार-दो हजार रुपया तो हमको क्या सोचना है । यदि इच्छा किया तो फट से गए, खरीद लिए । हमको कुछ खाने की इच्छा ही हुई, खरीद लिए । भगवान् अपने भगवद् जन से भीख नहीं मंँगवाता । भूल जाइए आप लोग । ज्ञानी होने का मतलब भीखमंगा नहीं, ज्ञानी होने का मतलब भीखमंगा नहीं । ज्ञानी होने का मतलब पैसे का गुलाम नहीं, ज्ञानी होने का मतलब पाप-कुकर्म का शरण नहीं --- पाप-कुकर्म से परे का जीवन, बुराई-विकृति से ऊपर परे का जीवन, एक सच्चा संतुष्टि प्रदान, संतोष प्रधान जीवन -- चाह गई चिंता गई मनुवा बेपरवाह । चाह गई चिंता गई मनुवा बेपरवाह । जिसे नहीं कछु चाहिए सो शाहं के शाह ।

                  संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस