करने के लिए भक्ति-सेवा है-पाने के लिए मुक्ति अमरता है-उपलब्धि परमधाम है । परिवार में करने के लिए कर्म है-पाने के लिए विषय-भोग है । उपलब्धि पतन-विनाश है ।

करने के लिए भक्ति-सेवा है-पाने के
लिए मुक्ति अमरता है-उपलब्धि परमधाम है ।
परिवार में करने के लिए कर्म है-पाने
के लिए विषय-भोग है । उपलब्धि
पतन-विनाश है ।

        ये करोड़ों बार की नारकीय जीवन देने वाला है गृहस्थी । ये नारकीय जीवन की कैसे इसकी तुलना हो सकती है ? ये गृहस्थी ही है जिसके वजह से करोड़ों बार आप लोगों को नरक की यातनाओं से गुजरना पड़ेगा । मृत्यु की यातनाओं से गुजरना पड़ेगा करोड़ों-करोड़ों बार। पतन-विनाश में गिराने वाली यही गृहस्थी परिवार है । जब तक आप गृहस्थी-परिवार से, सांसारिकता से बाहर नहीं निकलेंगे मुक्ति-अमरता मिल नहीं सकती । दो-टूक बात है । मिल ही नहीं सकती है । जब माया में रहेंगे ही तो मुक्ति माने क्या ? जब घर-परिवार में रहेंगे तो मुक्ति माने क्या ? माया माने क्या ? मुक्ति माने क्या ? अरे घर-परिवार ही तो माया है। नौकरी-चाकरी घर-परिवार ही तो माया है । जब उसमें बने ही रहेंगे तो मुक्ति माने क्या ? और मुक्ति नहीं मिलेगी तो परमेश्वर नहीं मिलेगा । मुक्ति नहीं होगी तो अमरत्त्व नहीं मिलेगा ।
         आश्रम में भक्ति-सेवा होता है । भगवान् की भक्ति-सेवा । आश्रम में कोई साधना नहीं है । कोई क्रिया-कर्म नहीं है, भक्ति-सेवा है । परमेश्वर के यहाँ सीधे भक्ति की भी महत्ता नहीं है, सेवा की महत्ता है । जब परमेश्वर दूर होता है तो भक्ति की जरूरत है, भाव से जुड़े रहने के लिये । परमेश्वर के शरण में रहेंगे तो सीधे सेवा चाहिये । सेवा ही सब कुछ है । अब रही परमेश्वर की सेवा । तो इससे मिलने के लिये तो तत्त्वज्ञान है । यही जानने-देखने के लिये, परख-पहचान के लिये ही तो परख-पहचान है कि हमारी सेवायें परमेश्वर की ही हो रही हैं कि किसी और की । परमेश्वर के नाम पर कोई और सेवायें तो नहीं ले रहा है । हमारी भक्ति सच्ची है कि नहीं, हमारी सेवा सच्ची है कि नहीं । सत्य के प्रति है कि नहीं, परमेश्वर के प्रति है कि नहीं । इसी के लिये तो ‘तत्त्वज्ञान’ है । क्यों इसी के लिये तो तत्त्वज्ञान है । तत्त्वज्ञान मिलेगा तो आपको दिखाई देगा कि हमारी शरीर किसकी है ? हमारा तन-मन-धन किसका है ? ये देखने को मिलेगा। और बस जिसका है उसी को वापस कर देना है । मुक्त हो जायेंगे और जब मुक्त हो जायेंगे तो परमेश्वर आपको अमरत्व से युक्त कर देगा । फिर आप अमरपुरुष हो जायेंगे । शरीर छूटेगी तो सीधे अमरलोक को जायेंगे । जब तक मुक्त नहीं होंगे तब तक परमेश्वर अमरत्व देगा ही नहीं । अमरत्व नहीं देगा तो चैरासी का चक्कर  काटिये । करोड़ों बार नारकीय यातनाओं से गुजरिये। भोग-व्यसन से गुजरते रहिये । ये स्थिति है इसकी। अन्य की तरह से चाटुकारिता करते तो सबको बड़ा अच्छा लगता । ये थोड़ा सा सत्य बात है । ये खरी-खरी बाते हैं । इसलिये थोड़ा सा तीखा लग रहा होगा । जो असत्य में बंधे गुथे लोग हैं, जो भोग-व्यसन में गुथे लोग हैं जो ममता-मोह से ग्रसित हैं, भोग-व्यसन से ग्रसित हैं, उनके लिये तो ये तीखा ही है । उनके लिये तो ये तीखा ही है । जिसमें संस्कार है, जिसमें जिज्ञासा है उनके लिये तो ये अमृत वचन है । जिसमें संस्कार है जिसमें अपने जीव को उद्धार करने-कराने का भाव है उसके लिये तो ये अमृत वचन है । लेकिन जो भोगी-व्यसनी है, जो मनमाना रहने-चलने वाले, शैतान के वश में रहने चलने वाले शैतानी चाल में हैं उनके लिये तो ये दुःख-कष्ट का कारण है ही है । तीखा लगेगा  ये । क्यों ?
       ये हम कह रहे हैं कि गृहस्थी परिवार में किसी को मोक्ष नहीं मिल सकता । यदि मुक्ति किसी को चाहिए तो भगवत् क्षेत्र आश्रम में शरण में आना होगा ।  भगवत् क्षेत्र में शरण में रहना होगा । हमारे आश्रम में आप आइये, मत आइये । हमको क्या गर्ज है आपको बुलाने की ? आपको गर्ज होगा तो आप दोबारा   आयेंगे । हमको क्या गर्ज है किसी को बुलाने की ? मोक्ष जो है, मुक्ति-अमरता जो है घर में नहीं मिल सकती । जब घर ही में रहेंगे तो घर ही रहना तो माया है तो मुक्ति माने क्या ? जब परिवार ही में रहेंगे तो मुक्ति माने क्या ? परिवार से बाहर हुये ही नहीं तो मुक्ति माने क्या ? मुक्ति का विधान है पारिवारिक बन्धन से बाहर होना, छोड़ देना, भगवदीय रहन-सहन में स्थित होना, तब हम परिवारिक बन्धन से मुक्त होगें । जब जेल ही में है तो रिलीज(रिहाई) माने क्या ? जब जेल ही में बैठे हैं तो रिलीज आर्डर माने क्या ? जब परिवार ही में रहेंगे तो मुक्ति माने क्या ?

 
संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस