अपना जीवन परमेश्वर के मालिकान में रखिय

अपना जीवन परमेश्वर के
मालिकान में रखिय


        बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय । इस प्रकार से जीवन देख लीजिये । हम लोग क्या चाहते हैं ? आपके जीवन को भी सफल-सार्थक बनाने को कह रहे हैं । आखिर जीवन को भगा ही रहे हैं अर्थ के पीछे । आप लोग जीवन को लगा ही रहे हैं भोग के लिये , अर्थ खोज रहे हैं । भोग के लिये अर्थ खोज रहे हैं । यही जीवन आखिर जीवन लगा ही रहे हैं, भगा ही रहे हैं अर्थ खोजने के लिये, पूरित नहीं हो पा रहा है कामना पूरित नहीं हो पा रही है तो पाप-कुकर्म भी कर रहे हैं, साइड भी मार रहे हैं, पाप-कुकर्म भी कर रहे हैं । हम लोगों को देखिये डाल दिये अपने को धर्म में, मोक्ष रिजर्व । जीव को मोक्ष और जो कर रहे हैं यश-कीर्ति, जीवन को यश-कीर्ति और पीछे-पीछे रहती है पूर्ति फिरती-फिरती । पीछे-पीछे रहती है पूर्ति फिरती-फिरती ! ये रोटी-कपड़ा-मकान-साधन-सम्मान ये सब पीछे-पीछे अपने गरज से अपनी मर्यादा के लिये उसके पीछे-पीछे रहना हैं । क्यों भाई ? परमेश्वर वाले हैं । प्रकृति क्या करेगी ? परमेश्वर वाले हंैं, व्यवस्था उसको देना ही है । परमेश्वर वाले हैं व्यवस्था उसको देना ही है । इसके लिये हमको चोरी करना पड़ेगा ? आशाराम की तरह से भीख मांगना पड़ेगा, श्रीराम शर्मा की तरह से, गायत्री वालों की तरह से भीख मांगना पड़ेगा ? ठगहाई करनी पड़ेगी ? प्रजापिता ब्रह्माकुमारी वालों की तरह से ठगहाई करनी पड़ेगी । हरदेव की तरह से सरकारी चाटुकारिता करनी पड़ेगी । ऐसा कुछ नहीं, भगवान् के हैं, भगवान् व्यवस्था   जाने । देख-रेख मालिकान उसका है, वो जाने-समझें ।
      बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय । आप बन्धुओं से एक बार नहीं, चाहें मातायें-बहनें हों या चाहे आप बन्धुजन हों, कोई मेरा दुश्मन नहीं । एक बात सहज सोचिये आप लोग ये कपड़ा यदि फैक्ट्री में बना है, ठीक है । फैक्ट्री में रह जाता न तो सड़-गल कर के फिर मिट्टी हो जाता। र्ये इंट भट्ठा में बनता है, पकता है । यदि भट्ठे में रह जाता न तो फिर सड़-गल कर के मिट्टी हो जाता । उसमें से बाहर निकला है राजगीर के हाथ मंे गया है, काटो-पीटो जैसा जोड़ो, तब आज ये महल दिखलाई दे रहा है । ये वस्त्र फैक्ट्री से बाहर निकल कर आगे चलकर दर्जी के हाथ में गया है कि चाहे जैसे काटो पीटो । इसको पहनने योग्य बना दो । जब ये वस्त्र अपने को दिया है तो दर्जी जो है इसको इसकी मंजिल कुर्ता, कमीज, शर्ट, पैजामा, शूट तक बना रहा है । ये अपने मंजिल को पा रहा है । यदि ऐसा नहीं होता न तो सड़-गल कर के मिट्टी हो जाता । कोई भी चीज आप जहाँ पैदा हैं, उसी घर-परिवार में रहेंगे तो उसी तरह से सड़-गल कर के नाश हो जायेंगे । अपने दादा के दादा जी को देख लीजिये अधिक दूर मत जाइये । दादा जी के दादाजी का नाश हो गया । रूप तो रह ही नहीं गया, नाम भी नहीं रह गया । यादगार भी नहीं रह गया कि दादाजी के दादाजी कौन थे, कैसे थे ? दादी जी के दादी का नाश हो गया । यादगार के लिये भी नहीं रही कि कैसी थी क्या नाम था ? वैसे ही आपका भी पौत्र का पौत्र आयेगा तब तक आपका नाश हो गया रहेगा । न रूप का पता, न नाम का पता। ये सब नाश ही विनाश के पात्र बने रहेंगे ? धन्यवाद है उस कौवे का, धन्यवाद है उसे चण्डाल पक्षी कौवे का जो रामजी को दे दिया अपने को, काकभुशुण्डि हो गया । महादेव शंकरजी का गुरु हो गया । तीन युग बाद कौवे का नाम हम लोग रट रहे हैं। तीन युग बाद कौवे का नाम रट रहे हैं । दादाजी के दादाजी का नाश हो गया । नाम ही पता नहीं और कौवे का नाम रट रहे हैं । धन्यवाद उस गिद्ध का, त्याज्य पक्षी गिद्ध लगा दिया अपने जीवन को रामजी के कार्य-व्यवहार में, सीताजी के रक्षा-व्यवस्था में। नहीं सफल हुआ, मत सफल हो, अपना अपने प्रयत्न का जिम्मेदार था, प्रयत्न किया । आज तीन युग बाद हम लोग उसका नाम रट रहे हैं । दशरथ जी का श्राद्ध करने का मौका रामजी को नहीं मिला लेकिन उस गिद्ध का श्राद्ध रामजी ने किया । धन्यवाद उस बन्दरा का, बन्दरा था पहले जो बन्दरा जब प्रधानमंत्री था तो बन्दरा था, जब रामजी का दास हो गया तो महावीर बजरंगबली संकटमोचन हनुमान हो गया । देखिये न पूज्यमान हो गया । क्या प्रभाव है -- भगवान् का । अपने दादी के दादी का नाश हो गया । पोता के पोता बनते-बनते आप लोगों का भी नाश, पोता के पोता आते-आते आप लोगों का भी नाश लेकिन अधम से अधम अधम अति नारी बेचारी सेवरी जंगल में बैठी थी । आज उसका नाम रट रहे हैं । दादी के दादी का नाम ही पता नहीं । क्या स्थिति है - धर्म और मोक्ष के बीच जीवन जीने का ! भगवान् के देख-रेख में जीवन डाल देने की । सब लाभ थोड़े मिलेगा ? भोग-व्यसन भी और भगवान् भी ? भोग में भी, कर्म-भोग के बीच में रहेंगे और भगवान् इतना बेवकूफ हैं, पूजा-पाठ भगवान् जी के कर रहे हैं, भगवान् जी हमको मुक्ति दे देंगे ? अरे ये गुरु सर्वनाश करने में लगे हैं सर्वनाश । इन लोगों का नाश तो होगा ही गुरुजन लोगों का उनके सब शिष्य विनाश को प्राप्त होंगे यदि सम्हले नहीं तो । यानी कर्म और भोग के बीच किसी को मोक्ष मिलता है ? माया को मोक्ष देने का अधिकार है ? वहाँ मालिकान है, देख-रेख मालिकान माया का है । मोक्ष देने का, मुक्ति-अमरता देने का अधिकार भगवान् को है । जब धर्म और मोक्ष के बीच का जीवन जीने लगेंगे वह मालिकान जो है, देख-रेख मालिकान भगवान् का है वहाँ मोक्ष रिजर्व है । जीव को मोक्ष और जीवन को यश-कीर्ति । जितना काम चाहिए उतना भर का अर्थ तो पीछे-पीछे रहेगा फिरती-फिरती । अब कामना के लिये, खाने-पीने-भोगने के लिये धन खोजने के लिये नौकरी करने जाना पड़ेगा ? खाने के लिये कुछ करना पड़ेगा ? कपड़ा करने के लिये कुछ करना पड़ेगा ? अर्थ काम तो बीच में है ही है । धर्म मोक्ष के बीच में है क्या जरा आप लोग पढि़ये-खोजिये तो । जब धर्म मोक्ष के बीच में आप अपने जीवन को करेंगे तो अंदर भी कुछ है कि नहीं ? धर्म और मोक्ष के बीच में क्या है देखने की कोशिश तो कीजिये । यानी अर्थ और काम ही तो मिलेगा तो भगवान् किसी को लंगोटी पहना कर के और भीख नहीं मंगवाता है । भगवान् समृद्ध जीवन बनाता है । लोक भी भरा-पूरा, परलोक तो भरा-पूरा है ही है । परलोक तो भरा-पूरा है ही है, लोक को भी भरा-पूरा बनाता है । ‘जो परलोक इहां सुख चहहुँ ।’ जब रामजी का उपदेश आयेगा शाम तो जरा आप लोग देखियेगा क्या उपदेश दिया था रामजी ने । वही उपदेश तो है यहाँ । क्या उपदेश कृष्ण जी का है, वही तो है ।
     आप चाहे जिस किसी देवी-देवता का पूजा करें, जितनी श्रद्धा पूर्वक से करें, सब कुछ अविधिपूर्वक है, अवैध है, उसका कोई फल मिलने को नहीं है पहले श्लोक में कहा । दूसरे श्लोक में ‘अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्तां च प्रभुरेव च’ । हे अर्जुन ! जितने भी प्रकार के योग-जाप और हवन-सामग्री, योग-जाप देवी-देवता का किया जा रहा है सबका भोक्ता और स्वामी मैं ही तो हूँ । सबका भोगने वाला और मालिक स्वामी मैं ही तो हूँ लेकिन मैं ही तो हूँ लेकिन न तू मां अभिजानाति तत्त्वेन नातश्च तरन्ति ते । चूँकि ये लोग भक्त-सेवक लोग, भजन करनेवाले लोग, देवी-देवता वाले लोग मेरे को तत्त्वतः नहीं जानते इसलिये च्यूत हो जाते हैं, पतन को प्राप्त हो जाते हैं । मेरे को तत्त्व से नहीं जानने के चलते सब कुछ मेरा ही है सब भोग-राग, पूजा-पाठ मेरा ही कर रहे हैं सब मेरा ही है । इसके बावजूद भी चूँकि तत्त्वतः मुझको नहीं जानते इसलिये सब करते रहने के बावजूद भी च्यूत हो जाते हैं, च्यूत । पतन को प्राप्त हो जाते हैं, पतन को, गिर जाते हैं । पतन को प्राप्त हो जाते हैं, विनाश को जाते हैं ।
ये कहाँ हम कह रहे हैं ? सब व्यर्थ जायेगा, च्यूत हो जायेंगे। ये तो भगवान् कृष्ण कह रहे हैं । भइया ! हम नहीं कह रहे हैं भगवान् कृष्ण कह रहे हैं तो हम क्या करें ? हमारा भी तो लाइन वही है, हमको भी तो आप सब लोगों के बीच उसको रखना होगा न । हमको सच्चाई के लिये आप लोग बुलाये, चाटुकारिता के लिये नहीं । ये उन गुरुओं में से नहीं है कि आप जाओ जहन्नुम में, मेरा कमीशन भेजते जाओ । मेरा कमीशन दो आप जहन्नुम में जाओ । अरे मेरा कमीशन सब खा जाओ अपने को पार लगाओ । मुझे एक पैसे कमीशन में मत दो । अपने उद्धार को तो प्राप्त करो । मानव जीवन भइया भोग-व्यसन के लिये नहीं । झूठ-मूठ में आप लोग ये जीवन अपना लिये हो, निकालो नहीं तो करोड़ों-करोड़ों जीवन बर्बाद हो जायेगा । करोड़ों-करोड़ों जीवन बर्बाद हो जायेगा । ढेर आन-मान-शान के चक्कर में मत पड़ो । इससे कम आन-मान-शान परमेश्वर के यहाँ नहीं रहेगा। जो कर्म-भोग के बीच में आप अपना आन-मान-शान समझ रहे हैं । ये आन-मान-शान जो है जब धर्म और मोक्ष के बीच में परमेश्वर के देख-रेख और मालिकान में रखेंगे तो इसमें कमी नहीं बल्कि इसमें बढ़ोत्तरी ही आयेगी । हाँ प्रारम्भ में, भई प्रारम्भ में तो कोई जगह छोड़ता है गाय-भैंस भी जगह छोड़ते हैं तो दो-चार दिन तो उनको भी दुःख-तकलीफ होता ही है । ऐसा ही होता है । साहब जी लोग रिजाइन दे-देकर के हमारे यहाँ आकर के और वे कह दे न एक बार और साहब रहे हैं उसमें और यहाँ रह रहे हैं इसमें कौन बेटर है उनके लिये ? जब रहने लगेगा कोई न तो साफ दिखाई देने लगेगा वास्तविकता क्या है ? हम तो भइया इसीलिये आये हैं । हम आपको धरती का भार बनाने नहीं, धरती का भार हरण करना भी हमारे जिम्मे है । आप धरती के भार वालों को जीवन के मंजिल से जोड़ते हुये धरती के उद्धारक के रूप में काम करने आये हैं । क्यों धरती का भार बने हैं ? क्यों काम के पीछे, भोग के पीछे दौड़ रहे हैं ? धर्म और मोक्ष में रिजर्व कर दीजिये। कामना भर का अर्थ तो वहाँ पड़ा ही है । धर्म और मोक्ष के बीच में है क्या अर्थ और काम ही तो है । अब लोग सोचते हैं कि ये धर्म पर बैठे हैं धर्मात्मा कहला रहे हैं, ऐसा पहने हैं, वैसा पहने हैं गाड़ी में चलते हैं ! अरे भाई ! हम ही नहीं चल रहे हैं, परमेश्वर वाला भी चल रहे हैं, सब गाडि़यों में हम ही नहीं न बैठ रहे हैं ? जो इसमें और हैं वे भी तो बैठ चल रहे हैं। जो भी आयेगा सब चलेगा । जो भी आयेगा सब चलेगा । ये केवल हम ही नहीं न सब बैठ रहे हैं । जो भी आयेगा, सब बैठेगा, सब चलेगा अर्थ-काम यहाँ हैं । बढि़या जीवन कौन जियेगा ? भरा-पूरा जीवन कौन जियेगा ? अर्थ-काम तो धर्म और मोक्ष के बीच में है । बढि़या जीवन जीने को किसको मिलेगा ? भरा-पूरा जीवन चाहे लोक का हो, चाहे परलोक का  हो । भीखमंगा न बनना पड़े । दान-दक्षिणा की तरफ आँख न गड़ाये रखने पावे कि दान-पात्र टंगा है तो कितना दान पड़ रहा है । अपना तो चूरन बेचते हैं सब, अपना तो बुकलेट बेचे तो क्या बेचे चूरण तक बेचते हैं सब । और दान-पात्र भरपूर टांगे रहते हैं । लोग डाल दो । जनता की उदारता का दोहन-शोषण है । जनता के उदार भाव, धर्म भाव का ये दोहन-शोषण है । 
झूठा गुरु अजगर भया, लख चैरासी जाय ।
और उनके चेलवा सब क्या होंगे ?
चेला सब चीटीं भए नोच-नोच के खाए ।  
      हमारा जीवन बर्बाद किये हो, तेरे को नोच-नोच कर खायेंगे। हमारा जीवन भगवान् से वंचित करायें हो तेरे को नोच-नोच कर खायेंगे । अरे वे सौंवे बार नोच-नोच कर खाइये तो इससे उद्धार थोड़े मिलने को है । आप उनको नोच कर खाते रहिये। वे आपको नोच कर खाते रहेें । गुरुजी जब पाये हैं तो आपको नोच कर खा रहे हैं । अजगर बन जायेंगे, चींटीं बनकर आप लोग उनको नोच कर खाइयेगा । गुरुजी कह देंगे बराबर हो गया । मुक्ति तो नहीं मिली न ?
        बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय । सत्यमेव जयते नानृतम्। भइया आप लोग सम्हलिये-सम्हालिये । जीवन जीयें लेकिन धर्म और मोक्ष के बीच, धर्म और मोक्ष के बीच । कोई कमी नहीं, कोई विकृति झूठ-फरेब, चोरी-बेईमानी की जरूरत नहीं ।

संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस