मानव जीवन इस सृष्टि में सबसे श्रेष्ठ जीवन

मानव जीवन इस सृष्टि में
सबसे श्रेष्ठ जीवन


      मानव जीवन सबसे श्रेष्ठ जीवन परमेश्वर ने दिया है। ये जो मानव शरीर साढ़े तीन हाथ का पुतला लिये, कहीं गरीब, दुकानदार, मालिक, अमीर, भाई, पिता और कहीं पुत्र-पुत्री आदि बन करके घूम रहे हैं, ये मानव जीवन नहीं है। अभी पता नहीं है कि मानव जीवन क्या हैं ? यानी मानव जीवन इस सृष्टि का सबसे अनमोल रतन है । इसकी कीमत का इस ब्रह्माण्ड में कुछ बना ही नहीं जो इसकी तुलना कर सके। देवलोक का कोई भी देवी-देवता इस मानव जीवन के बराबरी का नहीं है । आप लोगों इसको माटी का पुतला समझ करके घूम नाच रहे हैं । क्या घोषित करा दिये-भिखमंगा, दुखिया, गरीब, ये मानव जीवन नहीं है । कोई भी विद्वान जन ये बता देगें कि ये मानव जीवन क्या हैै ? चाहे वह छोटा सा बच्चा, नंग-धड़ंग गरीब हो, उसकी तुलना में इस सृष्टि में और दूसरी वस्तु है कोई बता देगा ? इसमें किसी बच्चे को खड़ा कर दिया जाय जो सहज हो सांसारिक भाषा में गरीब हो, भिखमंगा हो इसकी तुलना में ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर भी छोटे है छोटे, बशर्ते उसे उस प्रयोजन से लगा दिया जाय जो परमेश्वर का विधान है, इससे उसको जोड़ दिया जाय । जिस उद्देश्य, प्रयोजन के लिए ये मानव जीवन मिला है उससे जोड़ देना लगा देना । परमेश्वर ने ये जो जीवन दिया है इतना मूल्यवान है यदि इसको जान लिया जाय तो देवराज इन्द्र भी नमन करते यानी ये मानव जीवन जो आप लोगों को मिला है देवराज इन्द्र, देवताओं से बढ़कर है यदि इसको ज्ञान से जोड़ करके रहा चला जाय तब । और आप लोग फोर्थ क्लास की चपरासी बनने के लिए घूस दे रहे हैं । हमारे पास नौकरी की सिफारिश के लिए लोग आते हैं हम कहे कितने सचिव साहब जी लोगों से क्या नौकरी चाकरी में लगे हुये है, चार पैसे की नौकरी चाकरी छोड़ो तब इस मानव जीवन को जानोंगे । परमेश्वर ने मानव जीवन को इसलिए दिया है कि ये मानव जीवन लो और अपने को ज्ञान में रख करके भवसागर से पार हो जाओ। भगवत् पार्षद बन करके अमर लोक में सदा वास करो ।
       आज हम लोगों के कार्यक्रम का चैथा दिन है । एक बात पर हम नित्य प्रतिदिन जोर देते चले आ रहे हैं और देते रहेंगे जब भी मंच पर आऊँगा एक बात पर जोर देता रहूँगा कि परमेश्वर ने आप सभी को ये जो मानव योनि दिया है इसको आप सब जानिये, समझिये, पहचानिये, परखिये इसका सही समुचित लाभ लीजिए । यह बात आप सब से बार-बार दोहराता रहूँगा । आप जितना सहज, सामान्य और सरल अपने मानव जीवन को बना डाले हैं वास्तव में ऐसा है नहीं । मानव योनि ब्रह्माण्ड का सबसे अनमोल रतन है । यह बात हम किसी पर थोपते नहीं है - जनाते, दिखाते, पहचान, परख करके देख लीजिए कि ये मानव योनि ब्रह्माण्ड का सबसे अनमोल रतन है कि नहीं । हम भी मानते हैं ये सिद्धांत परमसत्य है, सम्पूर्णत्त्व से युक्त है, सब जानते हैं इसलिए हम इसको थोप नहीं सकते । जो जिस सिद्धांत पर है उसी को सर्वोच्च घोषित कर रहा है, मैं भी सत्य घोषित कर रहा हूँ । जब सब कह रहे हैं और मै भी कह रहा हूँ तो मै किस अधिकार से कहूँ कि मेरा मान लीजिए उनकी मत मानिये इसलिए मैने मानना, मनवाना, थोपना, थोपवाना बिल्कुल यहांँ से किनार कर दिया । मेरा यह कहना है कि भगवत् कृपा विशेष से मेरे पास जो ज्ञान है जो मुझे परमसत्य दिखाई दे रहा है, जो सर्वोच्च दिखाई दे रहा है, सम्पूर्णत्त्व से युक्त दिखाई दे रहा है परमाणु से परमेश्वर तक यानी सारा ब्रह्माण्ड अपने मूल रूप में दिखाई दे रहा है आप लोग भी इस ज्ञान से युक्त होइये, देखिये, जाँच कीजिए, परख कीजिए कि यदि वास्तव में यह सत्य ही हो, सर्वोच्च ही हो, सम्पूर्णत्त्व से युक्त ही हो, फिर आप इसे स्वीकार कीजिए । पहले मैं किसी को नहीं कहूँगा कि आप मेरे इस सिद्धांत को, ज्ञान को स्वीकार कीजिए । एक बात और है जो हर कोई नहीं कह सकता है कि इस ब्रह्माण्ड में जो भी योगी-ऋषि, महर्षि, पैगम्बर का ज्ञान व सिद्धांत है वह इस तत्त्वज्ञान का एक अंशमात्र है-अंशवत है अर्थात इस ब्रह्माण्ड मंे जिस किसी के पास में जो भी सिद्धांत, ज्ञान है बजाय विष्णु, राम, कृष्ण के, वह सब झूठा या आध-अधूरा है । यदि झूठ है तो झूठ है और यदि किसी में तनिक भी सच्चाई था, है तो वह तत्त्वज्ञान का अंशमात्र में है। आप जिस किसी गुरु के शिष्य हैं और आप जिस पन्थ के हैं उस ग्रन्थ को ले लीजिए और जो ज्ञान मिल रहा है वह आपके पन्थ द्वारा दिया गया है जिस ज्ञान का वर्णन है वह इस ‘तत्त्वज्ञान’ में है कि नहीं। यदि नहीं है तब इसका जिम्मेदार मैं हूँ क्योंकि मै जो कह रहा हूँ ऐसा है। वे जानकारियाॅँ चाहे महावीर जैन वाली हों, ईसामसीह वाली हों, गौतम बुद्ध वाली हों, दाउद-सुलेमान, मुहम्मद यानी जिस किसी वाली हों दादू-दरिया, पल्टू, कबीर, तुलसी चाहे परासर व्यास, अष्टावक्र आदि जिस किसी मंे भी, जानकारी की बात है, दिखाई देगा, वह इसमें अंशवत है। अब एक ही बात आप लोगों को जनाना है कि ये मानव जीवन इस सृष्टि का अनमोल जीवन है, सर्वोच्च जीवन है इसको आप सब रोटी-कपड़ा मकान पर बेच दिये है इसको आप सब पैसा और परिवार में साट दिये है इसी से सर्वनाश हो गया । परमेश्वर ने दुनिया बनाया था, सृष्टि बनाया था आपके लिए आपको उसका आनन्द लेने के लिए । सारे सृष्टि की रचना परमेश्वर ने अपने खेलने के लिए बनाया लेकिन आप भी उस खेल के पात्र है-आप भी उस सच्चिदानन्द, परम आनन्द के पात्र है, इस खेल को परमेश्वर के विधान से जान लीजिए और अपने आप को उससे जोड़ दीजिए । यह सही है और यह सही ही है कि इस सृष्टि की रचना परमेश्वर ने अपने खेलने के लिए बनाया   है । वह सदा सच्चिदानन्दमय, शाश्वत आनन्दमय रहने वाला है । उसने अपने आनन्द के लिए सृष्टि की रचना किया, अपने आनन्द में बने रहने के लिए खेल खेला । आप भी यदि इस खेल का रहस्य जानना, देखना चाहते हैं तो बड़े गौर से देख सकते हैं किन्तु ‘तत्त्वज्ञान’ के बिना सम्भव नहीं है। जब भी इस खेल के रहस्य को जानना चाहेगे तो आपको इस तत्त्वज्ञान से गुजरना पड़ेगा । बगैर तत्त्वज्ञान के इस संसार के रहस्य को नहीं जान सकते । जो भी जान रहे हैं यह उसका मामूली अंश है अथवा झूठा है। यदि आज आप इस खेल के रहस्य को जाने देखे होते, तो न ये पैसा, परिवार में जीवन साटे या बेचे होते ? न इतना घृणित इतना निकृष्टता पर उतरे होते ? न ऐसे पतितता में गये होते । एक अनमोल रतन जीवन को जिसके(Parallel)जिसके समानान्तर इस ब्रह्माण्ड में किसी भी चीज की उत्पत्ति नहीं हुई है यानी इस सृष्टि के देवी-देवता भी इस जीवन के नीचे है नीचे, बशर्ते आप जिस प्रयोजन से परमेश्वर ने इसको बनाया उससे जोडि़ये, उस पर रखिये फिर देखिये कोई भी देवी-देवता आपके समानान्तर नहीं मिलेगा, आपके नीचे मिलेगा ।
        बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ! परमेश्वर ने ज्ञान को तीन वर्गो में विभाजित करके रखा । आपको इस तीन सूत्रों को अवश्य ही ग्रहण करना चाहिए अन्यथा आप अपने को बचा नहीं पायेगे । परमेश्वर ने सृष्टि रचना में आपको जो ये मानव तन दिया बहुत जानकारी के साथ इस सूत्र को साटा कि क्या है ? कि आपको मुक्त रहना है, आपको किसी से जुड़ना, सटना नहीं, किसी भी पदार्थ से आपको सटना, चिपकना नहीं । संसार की रचना आश्चर्यमय रचना है इसको ईमान से पकडि़ये और शान से रहिये, चलिये । ईमान से ज्ञान को पकडि़ये, शरीर को ईमान के साथ ज्ञान में साटिये  फिर तो क्या है ? उन्मुक्तता और अमरता से युक्त आप सर्वोत्तमता का जीवन जीयें । मेरा एक ही कथन आप से है यदि आप कहीं भी सटे-चिपके हैं, विनाश से बचना चाहते है तो तुरन्त इसको छोडि़ये और परमप्रभु परमेश्वर में सटिये मुक्ति-अमरत्त्व से होइये ।
     इस पर हम एक किस्सा सुनाना चाहते थे आपको कि जो आप ये मान्यता देने में लगे है कि माया ने हमको जकड़ लिया, पकड़ लिया। क्यों दोष देते है माया को, क्यों दोष दे रहे है परमेश्वर को ? अपने दोषों को दूसरे पर क्यों थोपते हो ? माया को क्या गरज है आपको पकड़ने का ? माया आपको क्यों पकड़े ? परमेश्वर को क्या गरज पड़ी है ? आपको दुःख, तकलीफ देने की, माया को क्या गरज पड़ी है आपको पकड़ने की ? आप माया को पकड़े हंै और अपने दोष को छिपाने के लिए माया की शिकायत करते है कि माया ने हमको पकड़ लिया । इसी पर ये कहानी  थी । उस अहीर बेचारे के नाम पर यह कहानी है-एक गुरुजी थे । बहुत समय से एक अहीर चेला-शिष्य के यहांँ समझा रहे थे कि चेला क्या तू जकड़ा है क्यों माया पकड़ करके अपने को बर्बाद कर रहा है। निकल चल तुझे हम ज्ञान देंगे, तू चिदानन्दमय, आनन्दमय जीवन गुजारेगा, छोड़ माया को । चेला ने कहा गुरुजी ! हम भी चाहते है चलूँ, हम भी चलना चाहते हैं लेकिन मयवा (माया) ऐसी है कि हमको फँसायी है । हम छोड़ना चाहते है लेकिन ये छोड़ ही नहीं रही है । हम चलना चाहते हैं लेकिन ये चलने ही नहीं दे रही है। गुरुजी मैं बड़ा परेशान हूँ । आप ही छुड़ावें तो छूटे । हम तो छोड़ना चाहते है। गुरुजी कहे कि चेला एक बात बताऊँ, यदि चलना चाहते हो तो इस माया को पकड़ने, या नहीं पकड़ने का रहस्य बताऊँ क्या तुम समझोेगे ? चेला ने कहा हाँ गुरुजी ! कहे कि अच्छा चेला बताऊँगा । गुरुजी वहाँं रह गये सुबह हुआ कहे चेला जल लाओ-पानी लाओ- चला जाय शौच क्रिया-कलाप । चेला गुरुजी के लिए और अपने लिए पानी लाया । दोनों जन कुछ दूर इधर-उधर शौच के लिए गये । कुछ समय बाद गुरुजी एक पेड़ पकड़ करके चिल्लाने लगे कि चेला दौड़ो, दौड़ो मुझे पकड़ लिया। चेला बेचारा दौड़ करके आया । कहा सचमुच पेड़ इन्हैं पकड़़ लिया है । अब आ करके लगा   छुड़ाने । हाथ किसी तरह से छुड़ाया तो गुरुजी पैर से पेड़ को पकड़ लिये, तो गुरुजी चिल्लाये कि चेला पैर पकड़ लिया है । चेला ने बैठ करके पैर छुड़ाया तो हाथ से पकड़ लिया, फिर हाथ छुड़ाया तो पैर से पकड़ लिया यानी एक छुड़ावे तो दूसरा पकड़ ले । बुद्धि तो थी नहीं, जब तक ताकत थी तब तक बैठ करके, खड़ा हो करके हाथ छुड़ावे, पैर छुड़ावे तो हाथ पकड़े चेला पकड़ रहा है । तो चेला बेचारा थक गया । जब छुड़ाते छुड़ाते थक गया तो थोड़ी देर बाद सोचने लगा कि पेड़वा तो हमको पकड़ ही नहीं रहा है, ये केवल गुरुजी को काहे पकड़ रहा है। हमको तो पकड़ ही नहीं रहा है । ये गुरुजी कह रहे हैं कि हमको पेड़ पकड़ रहा है। चेला जब गुरुजी का पैर छुड़ाने लगा तो ऊपर देखने लगा कि गुरुजी तो नहीं पकड़े हैं । अब पैर छुड़ा रहा है तो हाथ से पकड़ ले रहे हैं तो देखा कि गुरुजी ही इसको पकड़ रहे हैं। फिर चेला ने कहा कि अरे गुरुजी ! हमको तबाह कर दिये । आप ही तो पेड़ को पकड़ रहे हैं, पेड़ कहाँ आपको पकड़ रहा है । पैर छुड़ा रहा हूँ तो हाथ से पकड़ ले रहे हैं आप स्वयं पकड़ रहे हैं और कह रहे हैं कि पेड़ हमको पकड़ रहा है । हमको परेशान कर दिये । चेले ने कहा छोडि़ये तो पेड़ को देखते हैं कैसे आप को पकड़ रहा है । ये जो पकड़े है इसको छोडि़ये न, गुरुजी ने कहा कि छुडाइये न, तो कहा हाथ को अलग रखिये । हाँ चेला, सचमुच छूट रहा है । अरे चेला ! हम पेड़ को पकड़ रहे हैं कि पेड़ हमको पकड़ रहा है तो कहा कि गुरुजी आप पकड़ रहे हैं, तो कहा, हाँ सही है । बस, बस चेला यही तो मंै तेरे को समझाना चाहता था । हमको छुड़ाने में तू परेशान हो गया। अन्ततः दिखाई दिया कि पेड़ नहीं पकड़ रहा था, मैं पकड़ रहा था । अरे चेला ! माया तुझे नहीं पकड़ी है तू माया को हाथ-पैर से पकड़ रहा है । तेरे जैसे मैं भी परेशान था । छोड़ चल देखते है कि माया क्या करती है ? वही से गुरुजी लेकर चल दिये कहे कि फिर जायेगा तो फँसेगा घर में । इतना सटीक उदाहरण आप के लिए बना हुआ है । इस संसार में जो भी उदाहरण बना हुआ है आपके लिए हैे। ये दुनिया जो है उदाहरणों से भरी पड़ी है। जिस किसी विषय-वस्तु का उदाहरण खोजेंगे सहज ही मिलेगा। उदाहरण तो सब तरफ है हर विभाग में है । ये बिजली जलती है ये बिजली एक मामूली सी शक्ति है यानी आपको हर प्रकार से लाभ पहुँचाने के लिए ये बिजली बनी है। लेकिन बिजली के साथ एक शर्त है । ये मत भूलिये कि बिजली किसी की होती नहीं है । बिजली का लाभ लेना है तो उसके विधान को अपनाना होगा इस शर्त को हर हालत में अपनाना होगा कि छूइये मत इस शर्त को हर हालत में अपनाना होगा बिजली छूइये मत नहीं तो आपका नाश कर देगी। बिजली को पकडि़ये मत नहीं तो आपका नाश कर देगी। परमेश्वर ने इस भव रूपी जंगल को-नगरी को बनाया इतना आकर्षक इतना आकर्षक बनाया कि निःसन्देह आप अपने को रोक नहीं पाते हैं इसमें सटते हैं इसको पकड़ते हैं नाश को चले जाते हैं। कीटभक्षी पौधा है दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में । इतना आकर्षक फूल खिलता है कि कीड़े खींच कर आ जाते है और बैठते है जैसे ही पराग लेने के लिए, फूल में क्या विशेषता है कि वह खिला है ? जब कीड़ा आ करके इस पर बैठा तो उसमें हल्का चिपक गया उड़ नहीं पाया तब तक वह बन्द हो गया । अब फूल कब खिलेगा जब कीड़ा महोदय जी गल करके खुराक बन गये हो। इसी प्रकार से नरभक्षी पौधा है दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में इतना आकर्षक है इतना बढि़या है जंगल में जाने वाला अन्जान आदमी तो निश्चित ही ठहरना चाहेगा तो उस वृक्ष के नीचे जायेगा । यदि वह सामने पड़ जाय तो ठहरने के लिए प्रायः लोग जाते हैं । उसके नीचे जाते ही फिर वहाँ से भागने लायक नहीं रह जाते। उसमें ऐसा ऊर्जा का हा्रस होगा कि वह भागने नहीं पायेगा । तब तक वह पेड़ अपने चारों तरफ बंद कर लेगा । पेड़ जो है चारो तरफ से बन्द हो जायेगा। और कब खुलेगा उससे पहले आप का काम तमाम हो गया होगा । वह अपना आहार बना चुका होगा नाम है नरभक्षी पौधा । यानी मनुष्य का भक्षण करने वाला पौधा, मनुष्य को खाने वाला पौधा । कीटभक्षी का नाम है नेपनथस। बड़े-बड़े फुलवाडि़यों में जो इसके जानकार है इसको लगाते है ताकि ये कीड़े-मकोड़े है फालतू में यहाँ ये उसको खा जायेगा । वह खींचेगा और खा जायेगा। तो ठीक इसी तरह से माया का जाल जो है ये विनाशक है। मछली कभी भी कंटीले काट में फँसने के लिए नहीं आती । वह आती है अपने आहार के लिए । वह तुरन्त अपने आहार को लेने के लिए मुँह खोलती है जब लेती है तो उसे पता नहीं है कि उसमें लोहे की कील है । बंशी है-लोहे की कील है । उसको पता नहीं है । जैसे ही मुँह में लेती है अब उसको चबाना है तो जैसे ही चबाने की कोशिश करती है तो कील धँस गयी और जब कील धँसी तो छटपटाने लगी । तो कील और धँसती चली गयी नतीजा यह हुआ कि बंशी वाला उसको खींच लिया और फिर बंशी वाले का आहार बन गयी । ठीक यही सुख के लोभ में यमराज की बंशी आपको दिखायी नहीं दे रही है। सुख का लोभी जीव  कही पैसे में सुख, कही रोटी में सुख, कही कपड़े में सुख देख रहा हैं। कहीं दाल चटनी, दूध-दही-घी में सुख देख रहा है। माता-पिता का शिशु जब जन्म लेता है, शिशु का जन्म ब्रह्ममय होता है, आत्मामय होता रहता है ब्रह्मशक्ति से युक्त होता है। माता-पिता क्या करते   है ? इतना घात करते है कि उस बच्चे का ब्रह्ममय और आत्मामय होने रहने का सम्बन्ध तोड़ देते है ये माता-पिता कुंभीपाक, नरक के गामी होते है लेकिन इनका रक्षक यही अनजान करता है कि माता-पिता के अनजाने में होता है क्योंकि परमेश्वर इस सृष्टि का सबसे बड़ा न्यायकर्ता होता है। परमेश्वर सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों का सबसे बड़ा न्यायकर्ता होता है। इस अनजान का लाभ इन माता-पिता जी लोगों को मिला फिर ये सिरमाथे चढ़ते चले गये और हर आने वाले अपने सम्पर्क के जीवों का नाश कराते चले गये हम विनाश में है तू भी विनाश में हो जा अपने तो नाश विनाश में बैठे ही है । आने वाले संतान के जीवों को भी नाश में डाल रहे है। ये माता-पिता इतना मीठा जहर है-स्वीट प्वाइजन है-हाट प्वाइजन है । पोटेशियम साइनाइट अब तक के जानकारी में सबसे बड़ा खतरनाक जहर है वह इतना झट से समाप्त करता है कि आप सोच भी नहीं सकते, यानी दोनों वैज्ञानिकों ने अपना जीवन दे दिया इसलिए कि इसका स्वाद बताऊँगा कि कैसा है मै इसका स्वाद बताऊँगा कि कैसा है ? जानते है कि मुझे मरना है विश्व स्तरीय वैज्ञानिक, वह जान रहा है कि मुझे मरना है लेकिन इस दुनिया को कुछ नई जानकारी दे जाय। इसलिए वह एक तरफ पोटेशियम सायनाइट लिया और एक तरफ कलम लिया कि कलम झट से चल जाय । ये सब सामने रख करके जैसे ही सायनाइट जीभ से सटाया, कलम घिसा गयी । अपना गोल यानी ‘एस’ घिसा गया, कलम जो है ‘एस’ लिख पायी । अब बड़ा खतरनाक निर्णय होगा यानी ‘एस’ माने स्वीट और ‘एस’ माने सावर खट्टा अर्थात् एस से स्वीट मीठा भी बनता है और एस से सावर खट्टा भी बनता है। अब क्या माना जाय इसका टेस्ट क्या लिखा जाये खट्टा या मीठा । यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया । फिर एक और कोई तैयार हुआ कि इस निर्णय को मै करूँगा । स्वीट है कि सावर ये निर्णय मै करूँगा तैयारी किया । कहा कि इसके बाद जो दूसरा अक्षर है मै लिखूँगा । अब उसने भी सायनाइट की गोली लिया और जब सटाया जीभ में तो ‘ओ’ लिखाया गया। इसका मतलब पोटेशियम सायनाइट खट्टा है पढ़ाया जाने लगा दुनिया में । पोटेशियम सायनाइट का स्वाद जो है खट्टा है। पोटेशियम सायनाइट इतना खतरनाक जहर है, उससे करोड़ गुना खतरनाक ये परिवार है । वह एक शरीर को छुड़ाता है, वो एक जीव के एक शरीर को नाश करता है लेकिन ये परिवार, ये नरभक्षी परिवार ये जीवों का भक्षण करने वाला परिवार करोड़ो, करोड़ों जीवन का भक्षण कर जाता है । खास करके उस बेला में जिस बेला में एलर्जी वाला भगवान् इस धरती पर हो। इस संसार में किसी को उतना एलर्जी नहीं है पोटेशियम सायनाइड से जितना एलर्जी परमेश्वर से है । हर प्रकार से सुरक्षा करना पिता का काम और व्यवस्थापिका माता होती है यानी माता-पिता संरक्षक होते हैं लेकिन माता-पिता का अपना स्वार्थ सधना चाहिए चाहे आपका नाश हो जाय । बेटा तेरा नाश हो जाय लेकिन मेरी बेटा रूपी ममता की पूर्ति चाहिए तेरा सर्वनाश हो जाय हो जाय लेकिन मेरी ममता मोह की पूर्ति चाहिए, किस बात की हितैषी है ? कैसा हितैषी है ? कैकेयी केवल लंका का विनाश नहीं करायी, ममता का शिकार हो करके अयोध्या का भी विनाश करा दिया यानी राम वन-गमन, दशरथ मरण, सीता हरण, शक्ति बाण । घटनाये कहाँ से आयीं ? कैकेयी के ममता ने कैकेयी को इतना अन्धा बना दिया कि पति का नाश हो रहा है लेकिन अपना बचन नहीं बदल रही है। जाये दशरथ, हो जाय नाश, इसका सोच ही खतम कर दिया कि दशरथ हमारे पति है । पति रहता है, पुत्र दे सकता है, पुत्र पति नहीं दे सकता है, पति पुत्र दे सकता है लेकिन पुत्र पति नहीं दे सकता। धिक्कार है ऐसी मति-गति वालो का यानी कैकेयी की ममता ने राम-रावण युद्ध करा दिया, पूरे त्रेता युग का सबसे भयंकर युद्ध। धृष्टराष्ट का पुत्र मोह-दुर्योधन के प्रति मोह, पूरे इतिहास, पूरे भारत का सबसे बड़ा यु़द्ध कहाया । देख रहा है कि लड़के मारे जा रहे है लेकिन एक दुर्योधन के चलते सैकड़ो बेटा वाला धृष्टराष्ट्र सबको खा चबा गया; केवल मोह के चलते लेकिन समझौता नहीं कर सका । ये ममता मोह इतना घाती है । ये प्रसूति गृह से ही जन्मे हुये संतान के घाती द्रोही है जिनको आप माता-पिता कह करके बैठे हैं । कभी सोचा कि ये आप लोगों के किस बात के हित हैं । एक ममता रूपी मोह की पट्टी बाँध दिया कोल्हू की बैल की तरह से, इन लोगों के पास क्या है ? ममता है, ममता मोह रूपी पट्टी । यदि आप जीवों की जो सूक्ष्म दृष्टि थी को बनाये रखते हुये मुक्त रहते, कहीं फँसते नहीं । यदि सूक्ष्म दृष्टि आपकी बनी रहती, सूक्ष्म दृष्टि आपकी कायम रहती तो आप कही फंस नहीं पाते । दुनिया दिखाई देता कि कुछ नहीं है, ये दुनिया स्वप्न से भी बदतर झूठ है, ये दिखलाई देता रहता । जब इस तरह से दिखलाई देता रहता कि दुनिया बद से बदतर झूठ है यदि दुनिया के किसी भी पदार्थ को पकड़ेंगे तो अपनी नाश की व्यवस्था कर लिये । चाहे माता जी को पकड़े चाहे पिता जी को पकड़े, पति देव जी को पकड़े और चाहे प्राण प्रिया जी को पकड़े, चाहे पुत्र-पुत्री जी को पकड़े, चाहे रुपया-पैसा को पकड़े जिस किसी भी चीज को पकड़ेगे आप अपने विनाश का दावत दे दिये । परमेश्वर ने कहा था मुक्त रहने के लिए और मुक्त रहने का साधन दिया था कि ज्ञान से युक्त रहो मुक्त रहने के लिए ज्ञान से युक्त रहो । ईमान पर बने रहना, मनमाना मत होना ये सब शब्द है जो हमारे आपके लिए अनिवार्यतः ग्रहणीय है यदि सर्वनाश से बचना है ।
 
संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस