धर्म की वास्तविक जानकारी भगवदावतारी के पास

धर्म की वास्तविक जानकारी
भगवदावतारी के पास
स्थान-महावीर जैन निकेतन, कमल पोखरी काठमाण्डौ, नेपालदिनांक 12 जुलाई 1993

        आप सभी के बीच इस सत्संग कार्यक्रम को ले करके हम सभी यहाँ पर उपस्थित हुए हैं । इस सत्संग कार्यक्रम का अपना एक विशेष प्रयोजन है । इसका एक विशेष उद्देश्य है वह है जैसा कि आप सभी सुन जान चुके भी होगें कि जीव ईश्वर और परमेश्वर तीनों की पृथक् पृथक् यथार्थतः जानकारी दर्शन-परिचय-पहचान और बातचीत सहित मुक्ति और अमरता का बोध-को लक्ष्य बना करके आप सभी के बीच यहाँ पर उपस्थित होने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। वैसे यह एक धार्मिक सभागार है । यहाँ पर प्रायः बराबर आप सभी सत्संग कथा प्रवचन सुनते आ रहे होंगे; लेकिन उन कथा प्रवचनों से वर्तमान सत्संग में आप सभी को जो कुछ भी अन्तर महसूस हो जो कुछ भी अन्तर जानने समझने में मिले आप सभी उसका समाधान प्राप्त कर सकें -- उसका समुचितहल प्राप्त कर सकें, इसके लिये दोनों वक्त ही, दोनों समय ही सत्संग कार्यक्रम के पश्चात् आधे आधे घण्टे का शंका समाधान का कार्यक्रम रखा गया है । ताकि आप सभी को जिस किसी विषय-वस्तु पर किसी भी प्रकार का शंका संदेह अथवा किसी भी प्रकार की भ्रामकता या गलती की अनुभूति-- आभास यदि होता है तो उसका समुचित जवाब प्राप्त कर सकें -- समुचित समाधाना प्राप्त कर सकें । अवश्यकतानुसार आप सभी प्रमाण भी प्राप्त कर सकें । इन सभी बातों को मद्देनजर रखते हुए आप सभी के बीच यहाँ उपस्थित होने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है । इस प्रकार से कहने के लिए तो ये बातें हास्यास्पद और आश्चर्यजनक हैं ही, कि जीव, ईश्वर और परमेश्वर का कहीं दर्शन होता है ? जीव, ईश्वर, परमेश्वर कहीं पृथक् पृथक् हैं और जीव, ईश्वर, परमेश्वर क्या इतनी आसानी से सात दिन सत्संग सुन करके हम सभी प्राप्त कर लंेगे ? ये सभी बात अपने आप में आश्चर्य को लिए हुए अवश्य हैं । इसमें संदेह नहीं है । मगर आश्चर्य का अर्थ कभी भी गलत नहीं रहा है । आश्चर्य का अर्थ कभी गलत नहीं रहा है और न तो वर्तमान में ही गलत है । हमारी समझ में तो आश्चर्य का अर्थ सत्य की क्षमता-शक्ति जो है -- अपने जानकारी में जो क्षमता-शक्ति है, इससे उपर का सत्य ही वास्तव में  आश्चर्य है ।  उसी आश्चर्य को आप सभी के समक्ष  प्रगट करने के लिए उपस्थित हुए है ।
 बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय ।
        जैसा कि अभी अभी आप बन्धुओं के बीच संकेत किया गया है कि आप सभी कथा प्रवचन तो बहुत कुछ सुने होंगे । एक से एक अच्छे से अच्छे कथावाचक, प्रवचनकर्ता  महात्मन् बन्धु आप सभी के बीच आये होंगे । इसमें संदेह नहीं है । मगर इस सत्संग कार्यक्रम का अपना एक उद्देश्य है, लक्ष्य है जो अपने आप में आश्चर्य तो अवश्य है मगर सत्य भी है । आप सभी देख भी रहे होंगे बैनरों पर महानतम् आश्चर्य किन्तु परम सत्य ! वह आश्चर्य क्या है मात्र सात दिने के सत्संग कार्यक्रम सुनने से जो जिज्ञासा श्रद्धा आप सभी में उत्पन्न होगी, उसके माध्यम से भगवत् समर्पण शरणागत के आधार पर आप सभी जो पृथक् पृथक् जीव-ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन कराने की बात पर्चा में जो कि चारों तरफ वितरित किया गया है, गाड़ी से प्रचार में रेडियों प्रचार में अथवा टी0वी  में भी जो कुछ प्रचारित आज होने वाला है उसमें आप सभी सुने होंगें, जाने होंगे कि जीव- ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन से सम्बन्धित ये कार्यक्रम हो रहा है ! थोडी देर के लिए आप सभी को आश्चर्य के साथ हास्यापद भी लगा होगा । स्वाभाविक  है  । लेकिन आप सभी से कम हास्यास्पद और आश्चर्य मुझे आप सभी के इस व्यवहार पर नहीं लग रहा है जितना आप सभी आश्चर्य महसूस करते हैं-जीव, ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन से, तो उससे अधिक आश्चर्य तो मुझे लगता है कि आप सभी का यह जीवन,  मानव जीवन जिस परमप्रभु परमेश्वर की प्राप्ति के लिए ही है जिस मानव योनि का एकमेव उद्देश्य भगवत् प्राप्ति है, मोक्ष प्राप्ति है, उसी भगवत् दर्शन प्राप्ति पर आप सभी को आश्चर्य हो रहा है । उसी पर जो कि आपके जीवन का लक्ष्य है, जो कि आपके जीवन का उद्देश्य है । मानव जीवन का एकमेव उद्देश्य है- भगवद् प्राप्ति- मोक्ष प्राप्ति । जो आपके जीवन का उद्देश्य है-जो आपके जीवन का लक्ष्य है उसी के प्रति आप आश्चर्य में हैं । हम और तो कुछ कह नहीं रहे है भगवत् प्राप्ति की बात कर रहे हैं और आप सभी को आश्चर्य हो रहा  है । इससे कम आश्चर्य मुझे भी तो नहीं हो रहा है । आखिर आप अपने जीवन का उद्देश्य क्या बना बैठे हैं ? कि आप सभी को अपने जीवन के लक्ष्यभूत भगवत् प्राप्ति पर ही आश्चर्य हो रहा है । हम इसी विधान को ले करके आपके बीच उपस्थित हुए है । ये कोई मनमाना पद्धति नहीं  है । इसमें कोई यन्त्र नहीं, इसमें कोई तन्त्र नहीं, इसमें किसी भी प्रकार का जादू-टोना, मिस्मरीजम और हिप्नोटीजम नहीं। प्रायः सभी सद्ग्रन्थों से प्रमाणित सत्यापित यह विधि विधान  है । जो कुछ भी है आप सत्संग सुन रहे है । जिसमें बार बार ही हम यह कहते  रहेंगे -- नित्य प्रति ही कहते रहंेगे । आप सभी शायद सुनते सुनते ऐसा भी महसूस करने लगें कि रोज बार बार ही यह बात दोहराता रहता है जीव, ईश्वर और परमेश्वर का दर्शन -- जीव, ईश्वर, परमेश्वर का दर्शन  ऐसे होगा -- वैसे होगा, इस तरह से होता है-- उस तरह से होता है । ये ऐसा लगेगा। बार बार रिपीट कर रहें हैं बार बार दोहरा रहे हैं -- बार बार दोहरा रहे हैं लेकिन जिस दिन पात्रता परीक्षण की बारी आएगी उस दिन समझ में आएगा कि बार बार जो दोहराया जाता था उसका क्या रहस्य था। उसका क्या अर्थ था । हमारा मुख्य विषय यही है, इतना ही । उसी के परिप्रेक्ष्य में चार शब्द आप लोगों के बीच रखना है--कहना है-- गाना है। जो कुछ कहना है इसी लक्ष्य के अन्तर्गत, इसी उद्देश्य के अन्तर्गत इन्हीं बातों के अन्तर्गत कि आपको जीव का दर्शन कराया जाएगा, आपको आत्मा- ईश्वर-ब्रह्म का दर्शन कराया जाएगा, आपको परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म- खुदा-गाॅड-भगवान् का दर्शन कराया जाएगा । ये बार बार हम कहते गये क्योंकि इसी एक उद्देश्य से एकमेव इसी उद्देश्य के साथ-साथ मुक्ति और अमरता का बोध भी है।
       आप किताब में पढ.ते आये होंगे मुक्ति, पढ.ते आए होंगे अमरता, सुनते आये होंगे जीव, सुनते आये होंगे आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म, सुनते आए होंगे परमात्मा परमेश्वर परमब्रह्म । मेरे द्वारा आज यह शब्द गढ़ा नहीं जा रहा है । मेरे द्वारा आज शब्द ये लिखा-
गढ़ा नहीं जा रहा है । आप सभी बहुत पहले से इन शब्दों को सुनते आए होंगे । बहुत महात्मन् जन आप सभी के सामन से गुजरे होंगे । बहुत अच्छे-अच्छे प्रवचन करने वाले बहुत अच्छे-अच्छे हँसाने और रुलाने वाले, इसमें संदेह नहीं है । लेकिन एक प्रश्न आपके दिल-दिमाग में अवश्य ही शेष रह गया होगा-बना रह गया होगा कि आखिर ये जीव, ईश्वर, परमेश्वर क्या है ? ये क्या होता है ? कहाँ होता है ? कहाँ रहता है ? कुछ लोग तो ऐसा यहाँ तक भी कह डालते हैं -- अरे ये सब कल्पना है । क्या है ? काल्पनिक है और कोई सन्त महात्मा उतरा और कल्पना करके इसकी रचना कर दिया । इसे लिख पढ. दिया । मगर ऐसी बात नहीं है । हमारे सामने भी यह प्रश्न आया था जहाँ ठहराव लिये थे । इस पर कुछ कड़ा जवाब दिये थे जब कल्पना की बात आयी थी । इसलिये कि पड़ा लिखा सुशिक्षित समाज, बुद्धिजीवी समाज, ये पढाई-लिखाई, सुशिक्षा और बुद्धिमत्ता इसलिये नहीं है कि आप आँखे बन्द करके लकीर के फकीर बन जाइये । ये इसलिये है कि जो कुछ भी सत्य आपके सामने गुजरता है, जो कुछ भी बातें आपके सामने गुजरती हैं आप उसके विषय में यथार्थतः जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करें । आप उसके विषय में यथार्थताके साथ जानने का प्रयास करें । हो सकता है -- यदि ऐसा सम्भाव्यता उसकी है तो उसे देखने का, उसे जाँच परख करने का, उसके असलियत के अनुसार उसको जानते हुए अपने और उसके बीचके  व्यवहार को जान और जहाँ तक सम्भव हो सके आप उस सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त करें । आप भी उस परमगति को, परममति को प्राप्त करें । आप भी उस परम आनन्द, परमशान्ति को प्राप्त करंे । हम तो आप सभी से इसी उद्देश्य को ले करके आप सभी के बीच उपस्थित हुए हैं । यह जो सभा है यह जो कार्यक्रम चल रहा है, ये सत्संग है । सत्संग का अपने आप में अर्थ होता है सत्  और संग । सत् और संग दो शब्द मिल करके सत्संग बना है । यानी ऐसे क्रिया कलाप, ऐसे व्यवहार, ऐसे बचन जिसके माध्यम से आप हम सब को सत्य के संग की प्राप्ति   हो । सत्य का संग हो । वास्तव में सत्संग दो अर्थो में है ।  हर बात संसार में दो अर्थो में है । आप देखेंगे जैसा कि सुनने को मिलेगा नित्य प्रति । जैसे हर चीजें हर वस्तुएँ प्रायः द्वैयार्थक हैं । दो अर्थो को लिये हुए दो प्रकार की दो पद्धतियों को लिए हुए है  । वैसे सत्संग भी दो अर्थ भावों में है । वास्तव में सत्संग वह है -- जिसमें परमप्रभु परमेश्वर को प्राप्त करके उसी परमेश्वरमय उसी परमात्मामय होते-रहते हुए, हम उसके सदासर्वदा सानिध्य में रहें, सच्चा सत्संग तो वही है । सच्चा सत्संग वही है । परमप्रभु को प्राप्त करें, जानें देखे, जाँच परखकर पहचान हो जाने पर, सत्य ही हो जाने पर भक्ति-सेवा हेतु सदा ही सर्वदा ही उसके सानिध्य में रहे-होवें और लगें । वास्तव में सच्चा सत्संग यही है । लेकिन ऐसी अवस्था को प्राप्त करने कराने वाले विधान को भी दूसरे नम्बर के सत्संग में रख दिया गया ।
ऐसा विधान, ऐसी वाणी, ऐसी बातें, ऐसे वचन जिससे सत्य की प्राप्ति होने की बातें जानने सुनने को मिलती हो, जिससे यथार्थतः सत्य की प्राप्ति होने का आशा-विश्वास हो रहा है । उस वाणी, उस विधि-विधान को ही सत्संग की परिभाषा में रखा गया जिसमें सत्य के विषय में ही सत्य के सम्बन्ध में ही उसकी जानकारी से सम्बन्धित, उसकी प्राप्ति से सम्बन्धित, उसके व्यवहार से सम्बन्धित उसके साथ होने रहने वाले विधान से सम्बन्धित जो विषय वस्तुएँ हैं वे सत्संग में आतें हैं ।
 
संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस