मानव जीवन गुलामी के लिए नहीं बल्कि ‘‘ज्ञान’’ प्राप्ति के लिए मिला है ।

 मानव जीवन
गुलामी के लिए नहीं बल्कि
‘‘ज्ञान’’ प्राप्ति के लिए मिला है ।


      ये जो आप लोग आँख पर जो ममता-मोह का पट्टी बाँध लिये हैं । वो आप लोग अपने को तेली के कोल्हू के बैल जैसे जीवन जीने लगे । आप लोगों ने अपने मानव जीवन के अस्तित्त्व को समझा ही नहीं । तेली का जैसे बैल होता है जो सरसों का तेल पेरता है कोल्हू में तो उसके बीच में जाट होती है, तेल पेरने वाला होता है और चक्कर काटना होता है बैल को । बैल की आँख पर पट्टी बाँधी जाती है । कोल्हू को बैल का जो पट्टी होता है, आँख पर ऐसा बाँधेगा कि केवल नीचे ही दिखाई दे । ऐसा पट्टी रहेगी कि केवल नीचे दिखाई दे । सामने न दिखाई दे । ऐसा क्यों ? इसलिये कि बैल एक पशु है भोग योनि का जन्तु है । कुछ करना तो जानता नहीं बस चलना और भोगना चलना और भोगना । हर जन्तु यही दो चीज जानते हैं, चलना और भोगना । बैल कोई काम थोड़े करता है, वह तो उसके चलने से हम काम ले लेते हैं । जुआठी बनाकर, बँधना बनाकर, गले में फँसा करके वह तो खाली चल रहा है ।  अब चलने के क्रम से हम साधन बनाकर के उससे कार्य ले रहे हैं। बैल खेत नहीं जोतता है । बैल के चलने से साधन बनाकर के हम आप खेत जोत लेते हैं बैल से खिंचवा करके । बैल बैलगाड़ी नहीं खींच रहा है । हम आप उसको ऐसा फँसाकर के गले में और गर्दन पर रख देते हैं । वह चल रहा है बैलगाड़ी चल रही है, वह खींचें जा रहा है ।
        आप लोगों ने आँख पर ममता-मोह का पट्टी बाँध लिया है । यदि पट्टी न बँधे तब बैल दो-चार चक्कर करके गिर जाएगा । जो पास ही में चक्कर लगाना है तो उसको चक्कर लगाते-लगाते स्वयं चक्कर आ जाएगा और बैल तेल पेरने के बजाय गिर जायेगा । पट्टी बँध जाने से उसको पता ही नहीं चलता है कि हम पास ही में चक्कर काट रहे हैं । उसको लगता है कि हम चल रहे हैं । हम चल रहे हैं । अब चल रहे हैं, तो चलना और भोगना तो उसका काम ही है । चल रहा है, भोगे । उसी तरह से आप लोग एक गो रानी मक्खी लाकर के घर में रख दिये । एक रानीमक्खी घर में रख दिये और खेत से, खलिहान से, आफिस से, दुकान से, चारों ओर से कमा-कमा कर ला करके और रानीमक्खी के लिए जमा कर रहे हैं और रानीमक्खी उसका वितरण कर रही है । रानीमक्खी आप लोगों को श्रमिक बना डाली । सब श्रमिक मक्खी अब जाओ घूम-घूम कर तीन कि0मी0 तक घूम-घूम कर के फूलों से पराग लाओ और रानीमक्खी को चढ़ाओ । आप लोग तीस दिन घर से आफिस, आफिस से घर और पहली को पाओ और रानी मक्खी के पास लाकर के जमा कर दो । तनखा पाओ और लाकर के घर में जमा कर दो । यही आप लोगों का जीवन रह गया, ममता-मोह की पट्टी बँध गई। पता नहीं चल रहा है मकान से दुकान, दुकान से मकान, मकान से दुकान, दुकान से मकान ।
अगर आप न चाहें सूरज हिल नहीं सकता । आप यहाँ बैठे हैं नहीं चाहेंगे गाड़ी स्टेशन से आगे हिल नहीं सकती है । आप जायेंगे पैर, गाड़ी पर रख कर बैठेंगे तब गाड़ी चलेगी । आप नहीं चाहेंगे तो आपके लिये सूर्येदय नहीं हो सकता है । आप नहीं चाहेंगे तो 10 बजे, 12 बजे रात तक आपके लिये सूर्यास्त नहीं हो सकता है । ये सब थोड़ा सा हम लोग जना-बता दें आप दुरुपयोग करने लगेंगे । ये बस, ये ट्रेन अपने मनमाना चल देगी! अरे आप जाकर पैर ही से रोक देंगे और जब तक आप जाकर बैठेंगे नहीं वो चलेगी नहीं । इसका लाभ-स्वार्थ रहित बनिये, सृष्टि संचालन प्रैक्टिकल करके देखिये । हनुमान मना कर दिये सूरज को । मैं लौटूँ नहीं, तो उदित मत होना । मैं धौलागिरी पहाड़ लेकर न लौटॅँू तो उदित मत होना। नहीं उदित हुआ । नहीं उदित हुआ । आप नहीं चाहेंगे वो कार्य नहीं होगा ब्रह्माण्ड में देवलोक तक में । बशर्ते कि थोड़ा अपने अस्तित्त्व को पहचान कर अपने कत्र्तव्य से जुडि़ये । मैं और क्या करने को कह रहा हूँ ? मैं कोई आपसे रुपया पैसा धन खर्च करने की बात तो नहीं कर रहा हूँ । मैं कोई यज्ञ जाप करने की बात तो नहीं कर रहा हूँ । मैं ये तो नहीं कह रहा हूँ कि ऐसा यज्ञ करना पड़ेगा, इतना रुपया मेरे को दे दो और चलो मैं यज्ञ करा दे रहा हूँ और तू ऐसा हो जाएगा । कुछ नहीं । ज्ञानयज्ञ सृष्टि में सबसे बड़ा यज्ञ होता है । भगवान् कृष्ण ने कहा है गीता अध्याय 4 का श्लोक 33 देखिये न
श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप ।

     सारे यज्ञों का वर्णन करते-करते अध्याय 4 में भगवान् कृष्ण ने सभी प्रकार के यज्ञों का वर्णन किया है । यज्ञों का हानि-लाभ समझाया है । सारे यज्ञों का वर्णन किया है, यज्ञों का हानि-लाभ समझाया है । आप वर्णन करते-करते-करते-करते 28 वाँ श्लोक तक तो वर्णन किया है और आगे चलकर के लास्ट में रिजल्ट दिये हैं यानी 32 वाँ में बताये हैं कि एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो यानी ब्राह्मण के मुख से इस प्रकार के बहुत यज्ञों का वर्णन किया जा चुका है । 
    लेकिन 33 वाँ में वो वर्णन कर रहे हैं कि --- 
श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप । 
    हे अर्जुन ! द्रव्यमय होने वाले जितने और जो भी यज्ञ हैं, द्रव्यमय होने वाले और जितने भी यज्ञ हैं ज्ञानयज्ञ उसमें हर प्रकार से श्रेष्ठ है । हर प्रकार से श्रेष्ठ   है । क्यों क्या विशेषता है ज्ञानयज्ञ में ? जो भी द्रव्यमय यज्ञ है, उसमें वस्तुएँ लगती है, उसमें कर्म होता है, क्रिया होती  है । यानी उसमें जब कोई कर्म करेंगे तो फल बनेगा । फल बनेगा तो भोग भोगना होगा, भोग भोगने के लिये पुनर्जन्म में आना होगा । कर्म करेंगे, कोई भी कर्म करेंगे तो फल बनेगा और फल बनेगा तो भोग बनेगा । भोग बनेगा तो भोगने के लिये जन्म लेना पड़ेगा और पुनर्जन्म-पुनर्जन्म-पुनर्जन्म होता रहेगा । पुनरपि जनमम् पुनरपि मरणम् । यानी ये चरपट पंजलिका लिखा चालीस श्लोकों का आदिशंकराचार्य ने, चरपट पंजलिका । पुनरपि जनमम् पुनरपि मरणम् । बड़ा है हमको तो कुछ याद भी नहीं होता है । काम भर का दो शब्द, चार शब्द बोल लेते हैं । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय !
तो ये ज्ञानयज्ञ क्यों श्रेष्ठ है, हर प्रकार से क्यों श्रेष्ठ है ? तो-
 
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ।। 

      हे पृथापुत्र अर्जुन ! ज्ञानयज्ञ एक ऐसा यज्ञ है जब ज्ञान प्राप्त होगा आपको तो क्या दिखाई देगा कि सारा कर्म ही आपका समाप्त हो गया । सर्वं कर्माखिलं पार्थ हे अर्जुन ! आपके सम्पूर्ण कर्म सम्पूर्णतया समाप्त हो जाते हैं ज्ञान पाते ही। ज्ञान में होते ही सब समाप्त हो जाता है । सब कर्म -  न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी न रहेगा कर्म, न बनेगा फल, न बनेगा फल, न होगा भोगा-भोगी और न रहेगा भोग और न होगा पुनर्जन्म । न होगा पुनर्जन्म । और ज्ञानयज्ञ में कोई वस्तु लगता नहीं है । हम आपको रुपया-पैसा कैसे आगे कर देंगे ? जब कोई वस्तु लगता ही नहीं । ज्ञानयज्ञ रुपया से नहीं होता है। ज्ञानयज्ञ वस्तु से नहीं होता है । ज्ञानयज्ञ कपड़ा-लत्ता से नहीं होता है, हम माँगेंगे कैसे आपसे ? हाँ, ज्ञानयज्ञ जो है लेकिन कैसे होता है ? लेकिन जब अर्जुन सुने तो इनको लपक होने लगा । कि ज्ञान कैसे मिलेगा ? कहाँ मिलेगा ? फिर आगे 34, 35, 36 ये वर्णन है । यह मानव जीवन गुलामी करके पेट भरने के लिए नहीं बल्कि सृष्टि का सर्वोत्तम विषय ‘‘ज्ञान’’ प्राप्ति के लिए मिला है । ज्ञानमय-भगवद्मय होने के लिए मिला है । जब आप ज्ञानमय-भगवद्मय हो जायेंगे तब आपको दिखलाई देगा कि मेरा जीवन देवी-देवताओं से भी श्रेष्ठ हो गया जब शरीर छोड़कर जीव जायेगा तो सीधा भगवान् के धाम (परमधाम) जायेगा । ऐसा आपको ज्ञान - मेरे तत्त्वज्ञान में मुक्ति-अमरता दिखलाई देगा


 संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस