जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि परमेश्वर के समर्पित-शरणागत बने रहना है !

जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि
परमेश्वर के समर्पित-शरणागत
बने रहना है !


      सत्यान्वेषी बन्धुओं ! दुनिया का जो भी कर्म हो, कोई नीच से नीच कार्य हो, यदि उस कार्य के माध्यम से परमप्रभु मिल जाय तो उससे उच्च कार्य हो ही क्या सकता है ? यही काकभुषुण्डि जी ने कहा था। जब कौए की योनि बदलने की बात आयी तो कि इस योनि को छोड़ दो । तब काकभुषुण्डि जी ने कहा कि धन्य है यह काग शरीर! धन्य है यह चाण्डाल पक्षी काग शरीर जिसके माध्यम से हमारे परमप्रभु मिल रहे हैं । इस शरीर से उच्च हम किस शरीर को समझें ? परमप्रभु द्वारा दी गयी यही शरीर हमको प्रिय है । वशिष्ट जी भी कहे थे कि धन्य हैं, धन्य हैं हमारे भाग्य! अरे पुरोहित क्या, परमप्रभु को पाने के लिये जो भी कार्य करना पड़े, जो योनि धारण करना पड़े, सब उच्च कोटि के होंगे ही ! तो कुल मिलाकर चाहे जिस किसी प्रकार से भी हो, जिस किसी माध्यम से भी हो, इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी करने से परमेश्वर मिले और हमारा अस्तित्त्व परमेश्वरमय बना रहे । हम परमेश्वर के प्रति समर्पित-शरणागत बने रहें -- यह सृष्टि का सर्वोत्तम विधान कहलाता है, सर्वोच्च स्थिति कहलाती है । सर्वोत्तम स्थिति कहलाती है ।
         एक महल की बहू, राणा सांगा की बहू, घर में रहने वाली बहू मीरा बाई ! ‘पद घुघरू बांध मीरा नाची रे पद घुंघरू । लोग कहें मीरा हो गई बावली, सासु कहे कुल नाशिनी रे ।’ ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।’ वही पगली मीरा, वही बावरी मीरा, वही पगली मीरा । आज दो-चार-दस गो भजन आ रहा होगा रेडियो पर तो प्रेम दीवानी मीरा का भजन जरूर होगा उसमें। वही मीरा मेवाड़-चित्तौड़ में राजा जी के जगह पर यानी कृष्ण के बगल में मूर्ति बनाई जा रही है । प्रेमदीवानी मीरा, वही कुलनाशिनी मीरा की ये टाइटिल है, प्रेम दिवानी मीरा । आज तो मीरा को कोई गाली नहीं दे रहा है आज तो मीराको कोई कुलनाशिनी नहीं कह रहा है ं। कोई संग बैठ-बैठ लोक लाज खोयी । और भी आगे है असुँवन जल सींची-सींची प्रेम बेल बोई । अब तो बेलि फैल गयी का करिहैं कोई । मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, आ जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई । रविदास तो उनके गुरु थे ही तो काहे उनको ही भगवान् नहीं मान लिया।  भगवान् उनको मिला नहीं था जैसे और पण्डाल में भरे है सब गुरुजी । अरे गुरु कहीं भगवान् होता है ? इसी में तो सब फँस कर पतन और विनाश को जा रहे हैं सब । गुरु कहीं भगवान् होता है ? कहीं गुरुजी भगवान् जी होते हैं ? अरे उ तो सब कहते कहेंगे कि हम भगवान् जी हैं । ‘‘गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरुःदेव महेश्वर’’, वो कान में फूँक रहें हैं थूक रहें हैं । ये पता नहीं। वो ब्रह्मा, विष्णु, महेश बनने में लगा है । उसको अपने जीव का अता-पता नहीं है, वो भगवान् जी बनना चाहते है । ये सब दुकान छानि-छानि के जनता के धन-धर्म दोनों का दोहन करने के लिये ई सब सौदाबाजी करत बाड़न सन । ई सब भगवान् जी हई।  गुरु कहीं भगवान् जी होता है। प्रधानमंत्री आदरणीय है सही है । इसका मतलब सब आदमी प्रधानमंत्री है । ई सही है कि प्रधानमंत्री आदरणीय होते है तो सब आदमी प्रधानमंत्री है। ई सही है कि भगवान् जी जिसको ‘ज्ञान’ देते हैं उसके गुरु हो जाते हैं सद्गुरु हो जाते है । एकर मतलब ए सब गुरुवा भगवान् जी हो गये ? ई सब गुरु जी हैं गुरुजी भगवान् जी हो गये ? अरे गोरू जैसे है गोरू  जैसे । चारा मिलना चाहिये , बेटा बना रह, गृहस्थ बना रह, बीबी बच्चे का, माता-पिता का सेवा कर, बीबी बच्चा में बना रह मेल से रह बच्चा बना रह झूठ मत बोलना, चोरी-बेईमानी मत करना । यही सब वह बेटा ज्ञान है । प्रेम से परिवार में रहवाहे लिये भेज रहे हैं ? खर्चा कहाँ से आयेगा ? जो खायेंगे उ चारा कहाँ से आयेगा, जायेगा घर में तभी तो कुछ लेकर आयेगा । उनको भगवान् की भक्ति से कुछ लेना देना नहीं है । उनको तो चारा चाहिये। यदि वास्तव में सच्चा गुरु होगा वह शिष्य के कल्याण में जुड़ा होगा त चाहे लाख तकलीफ हो कभी शिष्य को उस ममता-मोह-आसक्ति में; उस पतन-विनाश में, उस घृणित और निन्दनीय भोग व्यसन में लौटायेगा ? गुरु लौटायेगा ? कहेगा तेरे पर आश्रित बहुत लोग हैं । उनको भीख माँगने के लिये मत छोड़ो , उनको भ्रष्टाचार के लिये मत छोड़ों । भगवान् इतना असमर्थ नहीं होता है । अरे तुम्हारे पीठ पर सैकड़ो हैं तो क्या हैं। लेकर चल भगवान् के पीछे, वह भी जीव हैं, उनको भी मो़क्ष चाहिये । वह भी भगवान् का ही है। तू भगवान् का है वह तो भी भगवान् का है । भगवान् का है । भगवान् जो तेरे लिये व्यवस्था देगा वह उसके लिये भी  देगा । यानी भगवान् कभी नहीं ये कहता कि तुम घर से इस तरह भगो, माता-पिता को भीख माँगने के लिये छोड़ दो। अपने बेटे बच्चों को भीख माँगने के लिये छोड़ दो। करटेशन के लिये बेटी-बहुओं को छोड़ दो ऐसा भगवान् कभी नहीं कहता । भगवान् कहेगा कि जो-जो तेरे आश्रित हैं जो-जो तेरे सहारे हैं जब तू भगवान् जी से जुड़ जा रहा है भगवान् जी परम सत्य है परम कल्याणकारक हैं उसको भी साथ ले लो वह भी जीव है उनको भी भगवान् चाहिये, उनको भी मुक्ति-अमरता चाहिये । अब क्या चाहिये ? नौकरी करने के लिये, चार गो पैसा के लिये जायेंगे बीबी-बच्चा पीछे-पीछे झूलेंगे उसमें बेइज्जती अपमान नहीं है सन्मार्ग पर भगवान् के राह में परिवार जाता है तो बेइज्जती अपमान है । नंगा नाच कर रही हैं कार्यालय में सब जा-जा करके । आफिस में जा जा करके क्या-क्या कुकर्म नहीं करतो हैं ? वह अच्छा है नौकरी है राजनीति है और यहाँ धर्म में चलने में अपमान और बेइज्जती है ? सब जगह कुकर्म करने में आफिस में इन्टरेस्ट कैसा हो रहा है क्या-क्या दुगर्ति आफिस में वर्क करने वाली महिलाओं का नहीं हो रहा है ? चार गो पैसा मिल रहा है, नौकरी है सहारा है। बेचारी को भर दिया गया है तुम अबला हो, तुम असहाय हो तो क्या स्थिति है ? माँ बैठी है, बहन बैठी है, भाई बैठा है आप बैठे हैं उसी में विज्ञापन में , हिजड़ी सरकार जो है , चार पैसा पाने के लिये नंगा नाच करती है । क्या इज्जत-मर्यादा रह गयी बेटी-बहुओं की बच्चों की ?
        अच्छा सीरियल दे रहे हो जनमानस को दिखाने के लिये अच्छी नीति सिखाने के लिये । आ चार गो पैसा के लिये नंगा नाच करा रहे हो। सभी भरे पूरे परिवार में बेटी है लड़की, उस नंगे दृश्य को देख करके  क्या वह नहीं देख रही है क्या बात   है ? उससे वो क्या करे , वह बेटी-बहू क्या करे उस समय ? क्या ये हिजड़ी सरकार है । अपने जनता का शोषण कर रही है चार पैसा पाने के लिए उसके तरफ तो अरबों रुपया खर्च करती है नशाबन्दी पर और दूसरे तरफ शराब की फैक्ट्री-भट्ठी कहाँ से आती है, लाइसेंस कहाँ से आते हैं ? ये हिजड़ी सरकारें चारो तरफ विज्ञापन देती हैं कि शराब पीकर गाड़ी मत चलाओं, शराब पीकर गाड़ी मत चलाओं । और चाय की दुकानों से अधिक शराब की दुकानों का लाइसेंस सड़क के बगल में मिल रहा है । किसके पीने के लिये ? किसके पीने के लिये लाइसेंस सड़क के बगल में दिये जा रहे हैं ? क्या इन सबों को, इतनी हिजड़ी स्थिति इतनी दरिद्र स्थिति इन सबों की होनी चाहिये कि टैक्स के लालच में, कर के लालच में , अपनी जनता को शराबी बना दिया जाय । अपनी जनता को विनाश के मुँह में डाल दिया जाय ? जब तुम कहते हो, सार्वजनिक स्थान पर सिगरेट नहीं पीया जायेगा--बीड़ी नहीं पीयी जायेगा, शराब नहीं पिया जायेगा । आखिर किसी नुकसान के नाम पर ही तो कहते हो हानि के नाम पर ही तो कहते हो ? कि सार्वजनिक स्थान पर सिगरेट नहीं पीया जायेगा तुम घर ही में क्यों पीने दे रहे हो ? जब घर में पीने-खाने की आदत बनी रहेगी तो चुरा कर सार्वजनिक स्थान पर भी होगा । ये जो मधु बेचने वाले जो हैं पाँच किलो मधु लेकर के यदि गांव से गुजरने लगे , अरे ! सीड़ा होगा सीरा, अरे ! बड़ा मँहगा दे रहा है मँहगा । अरे ! ये असली नहीं होगा । उसको शायद पाँच किलो मधु बेचने के लिये कितने गाँव जाने पड़ेंगे ।
     शाम को शराब का टाल गाँव में घुसा ला दीजिये आ कहिये कि सबेरे दरोगाजी छापा मारने वाले हैं । शराब का पता तो नहीं चलेगा ढोल भी खोजने पर नहीं मिलेगा। कौनो कहने नहीं जायेगा कि शराब असली नहीं है, शराब मँहगा है । कौनों नहीं कहेगा कि शराब में जहर है, शराब में क्या है ? उ ढकेलना शुरू करेंगे ढकेल के रात मेें सब बोमेट कहीं कर देंगे । ये तो स्थिति है जमाना की ।
     ये नचनियाँं-बजनियाँं अमिताभ जीत गया इलाहाबाद से किसको हराकर ? बहुगुणा जैसे नेता को हराकर । बहुगुणा जैसे राजनेता को हराकर नचनियां-बजनियां अमिताभ जीत गया । इससे क्या जाहिर होता है समाज की मेन्टालिटी ! ये नचनियां-बजनियां राजनीति कर रहा है । इसका मतलब राजनीति भी वही होगी। इस तरह से हम लोग आवै मूल विषय पर इन सबों का नाम लेने से जुबान जैसे गन्दी लगती है । बिचवा-बिचवा में इ सब आता रहता है तो कुल्ला अधिक करना पड़ता है जिभि या गन्दी हो जाया करती है । साफ करने की जरूरत पड़ती है तो कुल्ला करना पड़ जाता है । इस गन्दे जीव से भगवान् जी का गुणगान, भगवान् जी का अस्तित्त्व गान कैसे किया जाय ? बीच-बीच में साफ करना पड़ता है । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय !
         बोलने के लिये बोलते रहा जाय समय दिन, महीना, बरस भर जायेगा । भगवान् जी का शरीर है इसलिये आल ओवर युनिवर्स का चैनल स्टेशन जुड़ा हुआ है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों का सम्पूर्ण स्टेशन इससे जुड़ा हुआ है । जिधर खुल गया उधर चलता रहेगा ; क्योंकि परमेश्वर वाला रेडियों सेन्टर है ये । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय !
        भइया हमलोग आवैं मूल विषय पर आज और कल दो ही दिन है । हम बता रहे थे कि सृष्टि भगवान् की जो है बहुत बड़ी सिस्टेमेटिक है, जितनी इसकी संरचना जटिल है इस सृष्टि की रचना जितनी ही जटिल है उतनी ही सिस्टमेटिक है । जितनी ही तिलस्म है जानने, समझने व्यवहार करने के बाद उतना ही सहज और सरल है ।
       अनजान में ये शरीर और संसार अज्ञानता में ये शरीर और संसार, ये ब्रह्माण्ड और साढे़ तीन हाथ का पिण्ड, इतना काम्पलिकेट इतना जटिल संरचना पर आधारित है इतना जटिल संरचना पर आधारित है कि दुनिया के सारे तिलस्मी इन दोनों के सामने फेल हैं । दुनिया के सारे शेष तिलस्मी इस शरीर (पिण्ड) ब्रह्माण्ड के सामने फेल हैं । लेकिन जान लेने के बाद ज्ञान से गुजरने के बाद, यदि हम अपने जीवन को इससे जोड़कर ले चलने लगें , चलने लगें तो जितनी ही ये काम्पलिकेटेड, जितना ही ये जटिल है उतना ही सहज और सरल   है । ज्ञान केे बाद, अपने को जब ज्ञान से जोड़ देगे , सत्य से जुड़करके, परमेश्वर से जुड़ करके जब परमेश्वर के अनुसार, ज्ञान के अनुसार जब शरीर को ले चलने लगेंगे क्या पता चलेगा कि जितना ही ये जटिल है, जितना ही ये जटिल है, गूढ़ और गहन है जानने के बाद, ज्ञान के अनुसार, सत्य परमेश्वर के अनुसार रहने-चलने पर उतना ही ये सरल और सहज भी है । उतना ही ये सरल सहज भी है । पता चलेगा कि हमको देकर . . . . . . . . . .
     देखिये दो सिस्टम है करना और होना । अज्ञान में जितने लोग होते हैं वे कर्म-क्रिया प्रधान होते हैं । अज्ञान में जितने लोग होते हैं वे कर्म-क्रिया प्रधान होते हैं। यानी करना प्रधान होते हैं, क्रिया प्रधान होते हैं लेकिन जो ज्ञानी पुरुष होते हैं जो ज्ञान प्राप्त होते हैं । उनका सिस्टम टू डू नहीं है । उनका सिस्टम टू बी है ।
        अरे ! होना, भव, भव । संस्कृत का शब्द है- भव । हिन्दी का शब्द है हो होना। और अरबी का शब्द है कुन । अंग्रेजी का है टू बी, अंगे्रजी में टूबी यानी होना। भव्, हो, कुन, टूबी । चँूकि हम उससे बिछुड़ चुके हैं अज्ञानतावश माया, मोह, आसक्ति के चलते, व्यसन और भोग के चलते, हम बिछुड़ चुके है परमेश्वर से, इस बिछुड़ जाने में हमारी अज्ञानता ने हमको घेर लिया है और उसमें क्या प्रधान हो गया है कर्म । यानी हम जो करेंगे वह पायेंगे । नहीं करेंगे नहीं   पायेंगे । जैसी करनी वैसी भरनी; लेकिन जैसे ही ज्ञान होगा, जैसे ही ‘ज्ञान’ से गुजरेंगे, जैसे ही भगवान् मिलेगा और अपने को, भगवान् जी को देखेंगे तो पता क्या चलेगा ? पता क्या चलेगा ? दिखायी क्या देने  लगेगा ? ‘सबहि नचावत राम गोसाई नाचत नर मर्कट की नाई’ ये देखने को मिलेगा । ये प्रैक्टिकल का विषय है । ये दिखायी देगा कि रामजी हमको नचा रहे हैं और हमलोग बन्दर के तरह से कठपुतली के तरह से, एक बन्दर की तरह से कठपुतली की तरह से नाच रहे हैं । यानी हमलोग कुछ कर नहीं रहे हैं, हमलोग कुछ कर नहीं रहे हैं भगवान् हमको अपने अनुसार करा ले रहा है । इसलिये न झूठ की जरूरत, न चोरी की जरूरत, न बेइमानी की जरूरत किसी लूटपाट की जरूरत नहीं। कोई कमी नहीं है, कोई भय नहीं कोई कमी नहीं कोई भय नहीं । बशर्ते कि अपने को उस ‘ज्ञान’ में बनाये रखे । अपने को उस ‘ज्ञान’ की स्थिति में बनाये रखने भगवान् को देखने जानने के लिये ‘तत्त्वज्ञान’ है । ‘तत्त्वज्ञान’ आपको पूरा बना देगा, सर्वोच्च बना देगा, परम बना देगा परमसत्य बना कर दिखा देगा । ठहरेगा तभी तक अर्थात् भगवान् आपकी जिम्मेदारी सभी जिम्मेदारियाँ तभी तक लेगा जब आप उस पर आश्रित होंगे । जब आप उसी पर आश्रित होंगे । जब आप उसी पर समर्पित-शरणागत रहेंगे । तो कोई आप पर भार नहीं । वह कैसा जीवन होगा ? ‘तो, चाह गयी चिन्ता गयी मनुवा बेपरवाह, जिसे नहिं कुछ चाहिये, सोे शाहन के शाह’। ई प्रेक्टिकल का लाइन है। ये जीवन में आपको दिखायी देने लगेगा । बशर्ते आपको अपने को ज्ञानमय बनाये रखना होगा । एक ही ड्यूटी होगी ज्ञानमय बने रहे जो ज्ञान मिलता है बने रहें । नौकरी मिलना एक बात है । नौकरी मिल जाने का मतलब, आपकी नौकरी रिजर्व हो गयी सुरक्षित हो गयी ऐसा नहीं है । नौकरी को विभाग के विधि-विधान के अनुसार कायम रखना आप की जिम्मेदारी है । कोई मनमाना करके उल्टा-सीधा, लूटपाट, लूट-खसोट करने लगेंगे तो नौकरी आपकी चली जाती है, छीन जाती है ।
      उसी तरह से भगवान् का ज्ञान पा करके समर्पित-शरणागत की शर्त पर । आप संगम नहा करके और गंदेनाले में खड़ा हो करके हम तो संगम नहाये हैं- संगम नहाये हैं । झूमते रहिये कौन पूछेगा ? वह तो थूक की जगह है मैला, पेशाब की जगह है ,नाले में खड़े रहो और बोलते रहो- संगम नहाये हैं संगम । संगम स्नान का मतलब है कि पवित्रता को बनाये रखो । अपने शरीर की शुद्धता- पवित्रता को बनाये रखो। बगैर झूमने-चिल्लाने के भी देखने वाले समझेंगे की आप शुद्ध हो पवित्र हो । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ।
       फिर हम लोग प्रैक्टिकल वाले मैटर पर आवें सत्संग तो होता ही  रहेगा । आप लोग जब डबल स्टेशन कैच करता है तो सूई थोड़ा दायें-बायें कीजिये ना। मेन स्टेशन पर आ जायेगा। बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ।
       जिनको दर्शन में भाग नहीं लेना है कहेंगे कि हमको परमेश्वर से क्या मतलब ? हमकों तो यही सब होता रहे तो ठीक है हमलोग दर्शन में भाग थोड़े लेंगे । हम लोगों को बोलने की क्या जरूरत ? उनके जय बोलने न बोलने से परमेश्वर का थोड़े कुछ बिगड़ता है । परमेश्वर के यहाँ जय-विजय दोनों दरबान रहते हैं । इसलिये किसी के बोलने न बोलने का परमेश्वर पर कोई फर्क नहीं पड़ता है । परमेश्वर के यहाँ धन-दौलत नहीं रहता है कि आप का समर्पण खोजता है कि धन दे जाओं ? परमेश्वर की त्रिया कौन है ? परमेश्वर की अर्धांगिनी कौन है ? जो सम्पूर्ण धन-धान्य की अधिष्ठात्री लक्ष्मी जी वही तो परमेश्वर की दासी सेविका, अर्धांगिनी जी हैं । अर्धांगिनी, दासी, सेविका देखते होंगे फोटो में, जब भाव आता है तब भगवान् जी विष्णु जी बगल में बैठा लेते हैं ; लेकिन सहजतापूर्वक जब लेटते हैं तब देखते होंगे आप चल-चल चरण के पास बैठ दासी है दासी के तरह बैठ । चल-चल। शंकर जी के पार्वती को कभी चरण के पास नहीं देखेंगे । ब्रह्मा जी के ब्रह्माणी को कभी चरण के पास नहीं देखेंगे । इसीलिये ये लोग भी उनके गुलाम बने रहते हैं । लेकिन विष्णु गुलाम बनेंगे ! अरे ठीक से रहेगी तो आजा तू अर्धांगिनी है और नहीं जो थोड़ा सा अइठन पइठन होगा चल-चल चरण के पास चल वही बैठ ! दासी है दासता कर । सारी दुनिया के सारे देवलोक को ब्रह्मा-इन्द्र-शंकर को नचाती है ई माया । भगवान् जो है अपने नाचेगा ? अरे ! इनको-नचाते रहता है । शुद्ध भाव है तो बगल में आ भक्तिन बन कर बैठ । आ नहीं तो ऐंठेगी माया का रोल करेगी तो चल-चल दासी बन कर चरण के नीचे रह । सबको ई नचाती है, भगवान् माया को नचाते हैं । सबको माया नचाती है भगवान् माया को नचाते हैं । चल नाच यहाँ सिर पर मत चढ़। चल चरण के पास । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की ऽ जय । परमप्रभु परमेश्वर की जय । 


संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस