भगवद् समर्पण-शरणागति से ही मोक्ष प्राप्ति


भगवद् समर्पण-शरणागति  से ही 
 मोक्ष प्राप्ति

         श्री भगवान् के चरणों में कोटि-कोटि प्र्रणाम करते हुए प्रार्थना है कि अपने चरणों की सेवा-भक्ति से युक्त करते हुए जीवन पर्यन्त समर्पित-शरणागत बनाये रखें यही प्रभु से विनय-प्रार्थना है ।
       जब भी श्री भगवान् की असीम कृपा अपने कृपा पात्र जीवात्माओं के ऊपर होती है तब परमलाभ का ऐसा अवसर यानी भगवदवतार का समय, मानव जीवन की प्राप्ति, तीव्र मुमुक्षु भाव, भगवदवतार का संदेश, भगवद् शरणागति ज्ञान वैराग्य से युक्त भक्ति-सेवा की प्राप्ति होती है ।
        श्रीभगवान् ने अपने इस सृष्टि में अनन्त विषयों को उत्पन्न किया बनाया । इतनी विशाल-विराट सृष्टि में भगवान् ने सबसे सुन्दर सर्वश्रेष्ठ यदि किसी योनि को बनाया है तो वह है मानव जीवन । 
इस मानव जीवन की श्रेष्ठता-सर्वोत्तमता-दुर्लभता को सभी महापुरुष- सत्पुरुष-भगवदवतारियों ने तथा सभी सद्ग्रन्थों ने गाया है कि यह मानव जीवन विषय भोगों के लिए नहीं बल्कि अनन्य भगवद् भक्ति सेवा समर्पण शरणागति होते-रहते हुए मुक्ति-अमरता को प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का एकमेव एक प्रयोजन तथा अन्तिम मंजिल है ।
         इस संसार में जीव को गुण और दोष ये दो वृत्तियों में बंधकर अपने कर्म और भोग के संस्कारों के अनुसार मोक्ष पर्यन्त चैरासी लाख योनियों में जन्म-मरण का चक्कर काटते ही रहना पड़ता है यानी जब तक जीव को मोक्ष न मिले तब तक जनम-करम- भोग-मरण के इस दुःसह दुःख के चक्कर में माया जीव को नचाती ही रहती है । माया जीव के थैली में इतना कामना भर देती है कि जो करोड़ों-करोड़ों योनियों तक पूरित नही हो सकती एक पूरित होती है तो दूसरी प्रकट होती है, दूसरी पूरित होती है तो तीसरी प्रकट हो जाती, इस प्रकार से प्रकट, पूरित होती हुई चैरासी का चक्कर कटवाती रहती है । इसी प्रकार माया चैरासी के चक्कर लगवाती रहती है ।
       माया के इस चक्कर में जीव को तब तक नाचते ही रहना पड़ता है जब तक मानव जीवन पाकर भगवद् समर्पित-शणागत न हो जाए । तब तक जीव को इसी तरह दुःसह दुःख से गुजरना ही पड़ता है । जीव को मुक्ति-अमरता ‘मोक्ष’ देने वाला यानी माया के इस कर्म-भोग, जनम-मरण के चक्कर से निकालने वाला एकमेव एक भगवदवतार ही  हैं । भगवदवतार के सिवाय माया के इस बन्धन से निकालने वाला दूसरा इस सृष्टि-ब्रह्माण्ड में कोई भी नहीं है । स्वयं ब्रह्मा-शंकर-इन्द्रादि लोक पाल, ऋषि-महर्षि- सन्त-महात्मा भी माया के इस बन्धन में नाचते ही रहते हैं इसलिए इस बन्धन को काटने स्वयं भगवदवतार ही सामथ्र्यवान हैं क्योंकि वही माया से परे, माया से श्रेष्ठ, माया को भी नचाने वाले माया पति भगवान् हैं ।
                                        

 यह सवमाया कर परिवारा । प्रबल अमिति को बरनै पारा ।।           
 सिव चतुरानन जाहि डेराही । अपर जीव केहि लेखेें माही ।।
                                                                 रा0 उत्तरकाण्ड 60/4
यह सारा संसार मायाका बड़ा बलवान परिवार है । यह अपार है, इसका वर्णन कौन कर सकता है ? शिवजी और ब्रह्मा जी भी जिससे डरते हैं; तब दूसरे जीव तो किस गिनती में है ?
          जो माया सब जगहि नचावा । जासु चरित लखि काहुँ न पावा ।।
         सोई प्रभु भ्रू बिलास खगराजा । नाच नटी इव सहित समाजा ।।
                                                            रा0 उ0 दो0 71 /चै01

जो माया सारे जगत् को नचाती है और जिसका चरित्र (करनी) किसी ने नहीं लख पाया हे खगराज गरुड़ जी ! वही माया प्रभु श्रीरामचन्द्रजी की भ्रकुटी के इशारे पर अपने समाज (परिवार) सहित नटी की तरह नाचती है ।
           अर्थात माया जो सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्माण्डों के जीव को चैरासी लाख योनियों के चक्कर में नचाती है उस माया को भी भगवान नचाने वाले होते हैं जब तक जीव उस भगवान को पाकर उसके प्रति समर्पित-शरणागत नहीं हो जाता तब तक जीव को माया के चक्कर में मोक्ष पर्यन्त चक्कर काटते ही रहना पड़ता है । मुक्ति-अमरता रूप मोक्ष तब मिलेगा जब हम भगवदवतार को जान-देख-पहचान करके उसके प्रति पूर्णतया अनन्य श्रद्धा, भक्ति-सेवा-समर्पण भाव से शरणागत हो जायेंगे तब ही मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है । अर्थात् मुक्ति-अमरता या मोक्ष पाने का एक ही विधान है-वर्तमान अवतार से ‘‘तत्त्वज्ञान’’ प्राप्त करके जान-पहचानकर उनके प्रति समर्पित-शरणागत होकर अनन्य श्रद्धा-भक्ति-सेवा भाव से युक्त होना ।
         वर्तमान भगवदवतार परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस ने अपने समर्पित-शरणागत भक्त-सेवकों को ‘‘तत्त्वज्ञान’’ देकर जीते जी मुक्ति-अमरता का बोध करा दिया यानी जब भी मुक्ति-अमरता रूप मोक्ष का लाभ मिलेगा तो वर्तमान अवतार से ही मिलेगा ।
        प्रस्तुत पुष्पिका परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस के सत्संग कार्यक्रम के संकलन से बनायी गयी है जिसमें संसार, शरीर, जीव, आत्मा, परमात्मा, मुक्ति-अमरता - ‘‘मोक्ष’’ आदि सम्पूर्ण सनातन धर्म को, सरल-संक्षिप्त-बोधगम्य भाषा में दिया गया है जो आपके हस्तगत है । इस सद्ग्रन्थ का अध्ययन करके अपने देव दुर्लभ मानव जीवन को मुक्ति-अमरता रूप मोक्ष से युक्त करें इसी में आपके मानव जीवन की सार्थकता होगी ।

            शेष सब भगवत् कृपा ।

 कमल जी
‘परमतत्त्वम् धाम आश्रम’, लखनऊ