अपने अस्तित्त्व-कर्तव्य-मंजिल को जानें ।

अपने अस्तित्त्व-कर्तव्य-मंजिल
को जानें ।
      ‘सो परत्र दुख पावहि, सिर धुनि-धुनि पछताहि’, यानि जो अपने मोक्ष के साधन को नहीं सवार लेगे देव दुर्लभ मानव तन पा करके यदि मोक्ष नहीं सवारेंगे तो उनको क्या मिलेेगा ? कष्ट ही तो मिलेगा लोक, परलोक दोनों में, ‘सिर धुनि-धुनि पछताहि’  इस पर एक किस्सा है ।
      तीन बालक थे एक राजकुमार एक पण्डित बालक और एक गवार कुम्हार बालक । एक ही जगह एक ही स्कूल में पढ़ते थे । राजकुमार, पण्डित बालक और कुम्हार बालक इन तीनों की दोस्ती हो गयी । दोस्ती थोड़ी सघन हो गयी । विद्यालय के मकान में तीनों बालक मिल करके आपस में एक संकल्प लिये । शपथ लिये कि हम तीनों में से जो कोई आगे बढ़ेगा उस दो को सवारेंगा यदि दो आगे बढ़ेगा तो जो पीछे है उसको सवारेंगा, उसको भी सहायता करेंगा।  ये तीनों लोग आपस में शपथ लिये जो कोई भी आगे बढ़ेगा पीछे वाले को सवारेंगा, सहायता करेंगा । आगे चलते-चलते पण्डित बालक, कुम्हार बालक की पढ़ाई छूट गयी । इन दोनों के यहां गरीबी थी । राजकुमार पढ़ लिख करके आगे बढ़ गये । और  पण्डित बालक व कुम्हार बालक दोनों गरीबी के कारण भीख मांग करके किसी तरह से रोजी-रोटी की व्यवस्था करते थे । राजकुमार तीनों में से आगे हो गये जब सयाने हो गये तो राजकुमार तो आगे हो गये पण्डित जी इधर उधर मांग करके आवे और किसी तरह से शाम को भोजन मिल जाय । कुम्हार भी समाज में सेवा कर करा करके अपना दिन काटने लगा। गांव क्षेत्र मे मेला लगा तो कुम्हार और पण्डित जी दोनों मिल गये । मिले तो दोस्ताना याद आने लगा । दोस्ताना में ऐसा होता है कि नहीं ! मिले तो बचपना दोस्ताना याद आने लगा। विद्यार्थी जीवन वाला राजकुमार का जो बचन था यानी जो हम लोग विद्यार्थी जीवन में शपथ लिये थे राजकुमार को थोड़ा याद दिलाना चाहिए । राजा साहब को याद दिलाना चाहिए कि हम लोग एक दूसरे को सहायता करने के लिए शपथ लिये थे । दोनों लोग कहे कि ठीक है उनको याद दिला दिया जाय कदाचित उनको याद हो तो सहायता कर दें । अब जो है दोनों लोग चल दिये सुदामा की तरह से । दोनों लोग गरीबी की हालत में राजा साहब के यहाँ जा करके कह रहे हैं कि हम लोग राजा साहब के दोस्त मित्र रहे हैं मिलने आये हैं हम लोगों का सन्देश राजा साहब के यहां पहुँचा दीजिए । सन्देशा राजमहल में गया । राजा जब सुने तो बचपना याद आया हाँ, हाँ ये मेरे बचपन के दोस्त है। राजा साहब अपने मंत्री को भेजे कि उन दोनों लोगों को आदर सम्मान के साथ अन्दर ले आइये । अब मंत्री जी आये आदर-सम्मान के साथ दोनों लोगों को ले गये, हाल-चाल हुआ । अब हम दोनों का फटे हाल तो देख ही रहे है कहे कि इसमें मैं क्या सहायता कर सकता हूँ ? लोगों ने कहा कि आप तो राजा साहब है बहुत सहायता कर सकते है। कहे कि न न मैं राजा तो जरूर हूँ लेकिन ये खजाना तो मेरा नहीं है । ये तो प्रजा का है । ये तो उसकी देखरेख संचालन का मिला है इसका राजा तो जरूर हूँ । राजा तो जरूर हूँ । हाँ अब आप लोग ऐसा करे धन तो मेरा है नहीं, ऐसा करे मैं राजा हूँ तो राज पद एक-एक दिन के लिए ले लीजिए राजा होकर जो चाहिए आप अपने अनुसार कर लीजिये । मंत्री लोगों से कह देंगे जैसा ये लोग कहे चले । जैसा हमको मान्यता देते हो उन लोगों को भी दे दीजिये । एक-एक दिन के लिए राजा हो जाइये जो आप को लगे वह कर लीजिये, तो वे सब बड़े खुश हुये, तो फिर क्या बचता है ? अब जो जरूरत है वह सब कर लंेगे गौर कीजियेगा । अब तो यह हो गया कि आप लोग एक-एक दिन राजा होइयेगा। ये सूचना भेज दीजिये कि आप लोग कब राजा होना चाहते हो, किस दिन एक-एक दिन के लिए राजपाट ले रहे हों। बात होने लगी कुम्हार बेचारा भोला-भाला, पण्डित जी थोड़ा बुद्विमान, छली-कपटी ।  पण्डित जी थोड़ा सोचने लगे कुम्हार तो जानते ही नहीं राजपाट क्या होता है ? पण्डित जी सोचने लगे कि कुम्हरा कहीं राजा हो गया तो सब यही लेगा तो हमारे पास बचेगा क्या ? हम क्या लेगे ? इसलिए पहले हम ही राजा हो जाये । देखिये ‘जाकी जस भव तव्यता तैसी मिले सहाय’ जिसकी जैसी नियति होती है वैसी उसके सहायक भी हो जाते हैं। जैसी ‘नीयत वैसी बरक्कत’, पण्डित जी की नीयत धूर्तबाजी की हो गयी बेईमानी की हो गयी कि कही कुम्हारा राजा बना तो कहीं खजाना न ले ले । इसलिए पहले हम राजा बन जायँ कुम्हारा बेचारा सीधा-भोला भाला उसकी नीयत अच्छी थी उसने सोचा कि पण्डित जी पहले राजा हो ले ये क्या करते है ? इन्हीं से हम सीखेगें जो अच्छा होगा करेंगे । तय हो गया । हुआ कि एक दो दिन गैप दे करके पण्डित जी राजा होंगे । अगले दिन हम राजा होंगे तय हो गया सूचना चली गयी राजा साहब के यहाँ । अगले दिन जिस दिन पण्डित को राजा होना था ये तय हो गया । पण्डित जी के घर में राजा होने की खुशी में घर वाले उत्सव मनाने लगे । रात भर सोये नहीं । इधर राजा के मंत्री गण लोग सोचने लगे कि किस तरह से इनको उलझा बझा के एक दिन वैसे ही बिता दिया जाए । मंत्री गण लोग पूरे बाजा-गाजा के साथ सुबह ही पण्डित जी के घर पहुँच गये और बड़े सम्मान के साथ पण्डित जी को राज पालकी में बैठा करके बड़े पण्डित जी का जय जय कार लगाते हुए राज महल के तरफ ले चले । राज महल में पहूँचने के बाद दो रास्ता बटा हुआ था । एक रास्ता जाता था दरबार के पास दूसरा महल के पास । मन्त्रियांे ने कहा पण्डित महाराज पहले क्रियाकलाप हो भोजन पानी हो फिर दरबार में आया जायेगा । फिर पण्डित जी को ले गये राज महल की ओर । अब क्या कहना राजा के यहाँ का राज भोग इत्र फूलेल आदि का सुगन्ध, सुन्दर पलंग भोग्य पदार्थ का सारा सामाग्री वहाँ पर मौजूद था ।  इधर पण्डित जी राजा होने की खुशी में रात भर सोये नहीं थे । क्रियाकलाप स्नान आदि के पश्चात् राज महल का राज भोग खाने के पश्चात् मन्त्रीगणों ने भी कहा महाराज कुछ विश्राम के पश्चात् दरबार में चला जाये । जब पण्डित जी राज पलंग में आराम करने लगे दासियाँ चवर से पंखा करने लगी इतने में पण्डित जी को आ गई नींद ।  पण्डित जी ऐसा सोये की एक ही बार सांय काल को मन्त्रीगण आके कहने लगे की उठिये उठिये पण्डित जी अब समय खतम हो गया । इधर पण्डित जी ने देखा कि राज भोग में उनका सारा समय ही खाने और सोने में चला गया । खाली हाथ पण्डित जी बड़े पश्चाताप के साथ अपने घर चले गये । उधर घर में बड़े उत्साह के साथ लोग पण्डित जी की राह देख रहे थे। पण्डित जी को खाली हाथ देख कर सब लोग दुखी हो गये ।
        इधर कुम्हार का राजा बनने का दिन आया, तो कुम्हार ने सोचा जाकर समझ लूँ पण्डित जी ने कैसा राज किया । जब पण्डित जी का हाल सुना तब अपने घर में आकर परिवार वालों से कहा । हम को सुबह ही उठा देना जो खुशी मनाना है आप लोग अपने में मनाना । ब्रह्म मूर्हत में जगने के पश्चात् क्रियाकलाप स्नान आदि से निवृत होकर भोजन आदि करके कुम्हार तैयारी के साथ बैठ गया । उसी तरह से बड़े सम्मान के साथ बाजा गाजा लेकर कुम्हार महाराज की जय कार लगाते हुए कुम्हार के घर मन्त्रीगण राज पालकी लेकर आये । फिर कुम्हार को लेकर चल दिये राज महल की ओर । महल में पहुँचे तो उसी तरह से दो रास्त मिला एक राज महल के तरफ जाता था दूसरा दरबार के तरफ जाता था । इधर नहीं दरबार के तरफ ले चलो । तब मन्त्रीगणों ने कहा महाराज कुछ क्रियाकलाप स्नान भोजनादि तो हो कुम्हार ने कहा नहीं नहीं वो सब हो गया है हमारा । तब कुम्हार ने कहा पण्डित जी की तरह हम को राज भोग नहीं अपना कत्र्तव्य पालन करना है, दरबार के तरफ आप लोग चलें  ।  दरबार के तरफ चलिये आप लोग । फिर दरबार में पहुँच कर कुम्हार ने कहा राज्य के बड़े बड़े अधिकारी सेनापति  सभी मन्त्रीगणों को बुलाया जाए । राजआज्ञा था सब लोग हाजिर हुये । कुम्हार ने सोचा क्यों न मैं ऐसा करूॅ जिससे ये राज एक दिन के लिये मिला है वह हमेशा के लिये हो जाए । कुम्हार ने कहा आज से आप सब लोगों का तनखाह दूगुना करदिया गया । जब ये सुने तो सब लोगों खुशी में कुम्हार का जय जय कार लगाने लगे । कुम्हार महाराज ने हुकुम किया कि यहाँ के जितने भी राज खजाने हैं इस राज्य के सीमा के बाहर आप लोग ले जाकर रखों और हाथी घोडे़े सभी वस्तु धन भी राज्य के बाहर ले जाकर रखो । उसके पश्चात् अपने परिवार वालो को भी  राज्य के बाहर ले जाकर के रखने का आदेश दिया । और सूर्यास्त होने के पहले ही ये सब हो जाना चाहिए । राज आज्ञानुसार सब कार्य यथा समय पर हो गया और कुम्हार ने कहा अब जिसको हमारे साथ हमारे राज्य में रहना हो वह हमारे साथ चले । इतना कह कर के एक पत्र लिख कर राजा को उनका राज्य लौटा दिया और अपने भी सूर्यास्त के पहले ही राज्य सीमा के बाहर चला गया और हमेशा के लिये अपना राज्य कायम कर लिया ।
       अपने कर्तव्य से जुडि़ये कुम्हार की तरह बनिये । राजा हो गया, सारा परिवार राज परिवार हो गया, पण्डित भोग व्यसन वाला जो भी आता वह भी हाथ से निकल गया । ये आप लोगों के हाथ में है कि पण्डित की तरह भोगी व्यसनी बन करके उन करोड़ो जनम का तड़पन लेकर जाते है या कुम्हार की तरह से साधन धाम मिला है मोक्ष के लिए साधन मिला है । आप इसको पहचाने । सबसे श्रेष्ठ शरीर है अर्थात् परमेश्वर वाली शरीर है। कुम्हार पहचाना कि आज मैं राजा हूँ राजा बने रहने के लिए कर्तव्य करना है । यह परमेश्वर वाली शरीर है, सर्वोच्च वाला जीवन बनाना चाहता हूँ आपको । अस्तित्व जान देख करके कर्तव्य से  जोड़ेगे तब कुम्हार की तरह से बनेंगे । यदि पण्डित की तरह से भोग- व्यसन में लग जायेगे तो बर्बाद- विनाश हो जायेगा। कुम्हार परिवार को राजदरबार में बसना पड़ा कि नहीं, राज्य धन कुम्हार के घर नहीं गया, समर्पण शरणागत करके राजधानी में बैठना पड़ा । आप लोगों को भगवत् क्षेत्र में नहीं बैठना चाहिए। उस दरिद्र बेईमान पण्डित की तरह बनना चाहते है । अस्तित्त्व, कर्तव्य, मंजिल पहचानने वाला कुम्हार यदि बनना चाहते हो तो बन जाओ, भगवान् को जो देना चाहिए वे दे हीं दिये हंै दे रहे हंै । मर्यादा बचाना रखना अपने आप पर  निर्भर है। ‘साधन धाम मोक्ष कर द्वारा, ‘पाइ न जेहि परलोक सवारा’ यदि शरीर  (मोक्ष का साधन) पाकर के जो अपने को सवार नहीं लिया, मोक्ष रिजर्ब नहीं कर लिया, भोग व्यवसन में सट गये  ‘सो परत्र दुःख पावाहि, सिर धुन-धुन पछताइ, कालहि कर्महि ईश्वरहि मिथ्या दोष लगाहि’ सर्वोच्च वाली शरीर है सपूर्णत्त्व वाली शरीर है क्या करूँ कि आज मै सम्पूर्णत्त्व वाला हो जाऊँ । यही तो बनाना चाहता हूँ आप को अस्तित्व पहचानते हुये कर्तव्य से जोड़ेगे, कुम्हार की तरह से तब बनेगे । पण्डित की तरह से भोग व्यसन में सट जायेगे बर्बाद विनाश हो जायेगे। कुम्हार परिवार को राज दरबार में फँसना पड़ा कि नहीं राजधन कुम्हार के घर नहीं गया घर परिवार समर्पण शरणागति करके राजधानी में बैठना पड़ा । आप को भगवत् क्षेत्र में नहीं बैठना चाहिए । उस भोग व्यसन क्षेत्र में रहना चलना चाहिए । पण्डित की तरह भोग व्यसन में रहना चलना चाहते हैं आप क्या बनना चाहते  है ? भोगी व्यसनी पण्डित या अस्तित्व कर्तव्य पहचानने वाला कुम्हार । जो बनना चाहते हों तो प्रयत्न करें । भगवान् को जो देना था वे तो दे ही रहे हैं दे ही दिया है। मर्यादा बचाना रखना आपको अपने आप पर है। तो ‘साधन धाम मोक्ष कर द्वारा पाहि न जेहि परलोक सवारा’, राजपद मिला इसको समझा नहीं कि बराबर बना रह जाये राज । भोग व्यसन में सट गये ‘सो परत्र दुख पावहि सिर धुनि धुनि पछताय, कालहि कर्महि, ईश्वरहि, मिथ्या दोष लगाय’।
                  
संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस